Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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नवमांग-अणुत्तरोववार्ड' दशांगः सूत्र 488
क्खमइ रत्ता बहिया जणवय विहरति ॥ १६ ॥ तएणं से धणेअणमारे समणस्स . भगवओ महावीररस तहारूवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस्सअंगाई अहिझंति, सजमेणं तबसाअप्पाणं भावमाणे विहरंति ॥१७॥तएणं से धण्णे अणगारे तेणं उरालेणं तबो करमेणं जहा खंदओ जाव सुहुथ हुयासणेइव तेयसा जलंति . उवसोभेमाणे चिट्ठति॥१८॥धन्नसेणं अणगारस्स पायाणं इमेयारूवे तवरूवलावण्णहोत्या
से जहा नामए-रुक्खछाल्लीइवा, कट्ठपाउयाइवा, जरगाउवादगाइवा, एवामेव धन्नस्स
अणगारस्स पाया सुक्का भुक्खा लुक्खे निमंसा अढि चम्म छिरत्ताए पन्नायंति, नो भी नगरी के सहश्रम्ब उद्यान से निकले निकलकर बाहिर जनपद देश में विचरने लगे। १६ ॥ तब वे का अनगार श्रमण भगवंत श्री महावीर के पासके तथारूप स्थविर भगवंत के पास सामायिकादि इग्यारे अंगमा अभ्याम किया, संयम तपकरके अपनी आत्माको भावते हुवे विचरने लगा ॥ १७ ॥ तब वह धना अनगार उस औदार्य प्रधान तप कर सूक्षगये भूकवने रूक्ष हुवे तद्यपि तप तेज कर खन्धक अनगार की परे जिस प्रकार राख से ढकी हुई अग्नि शोभती है. इस प्रकार शोभादेते थे ॥ १८ ॥ धन्ना अनगार के पति
इस प्रकार तप कर लावण्यता को प्राप्त हुवे, यथा दृष्टान्त-वृक्ष की छाल, लकडकी पवंडी / खंडाग पुरानी है। -पगरस्सी (जूते) जिस प्रकार के होते हैं, इसप्रकारके धन्ना अर्नमार के पवि मूके मूक्षमा मांस रहित हुवे थे,
तृतीय-चनका थप अध्ययन
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