Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
42 अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी :
उवसोभेमाणे २ चिट्ठइ ॥ ४२ ॥ तेणंकालेणं तेणंसमएणं रायगिहे जयरे, गुणसिलए चेइए, समणे भगवं महावीरे समोसढे परिसाणिगया सेणिओ णिगओ, धम्मकहा, परिसा पडिगया ॥ ४३ ॥ तएणं से सणिएराया समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मंसोच्चा निसम्म समणं भगवं वंदइ नमसइ वंदइत्ता नगंसित्ता एवं वयासी इमेसिणं भंते ! इंदभूई पामोक्खाणं चउद्दसण्हं समणं साहसीणं कयरे अणगारे महादुक्कर कारएचेव महाणिज्जरकाराएव ? ॥४४॥ एवं खलु सेणिया! इमीसिं इंद
भूइ पामोक्खाणं चउद्दसण्हं समण साहस्सीणं धन्ने अणगारे महादुक्कर कारएचव, शरीर करतो मूक गये थे न्तुि तप कर पुष्ट हुये सूर्य की तरह तप तेजकर दिप्त थे बहुत २ शोभते हुवे रहे। थे ॥ ४२ ॥ उस काल उस समय में, राजग्रही नगरी, गुनसिला चैत्य, श्रेणिक राजा, श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी पधारे, परिषदा आई, श्रेणिक राजा भी आया, धर्म कथासुनाई, परिषदा पीछी गई ॥४३ तब श्रेणिक राजा श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी जीके पास धर्म श्रमण कर हर्ष संताप पाय, श्रमण भगवंत महावीर स्वामीजी को वंदना नमस्कार किया, वंदना नमस्कार कर पूछने लगा-अहो भगवान ! यह इन्द्रभूतीजी प्रमुख चउदह हजार साधु हैं. इन में दुक्कर करनी के करने वाले कौन साधु हैं महानिर्जरा के करने वाले कौन साधु है ? ॥ ४४ ॥ तब भगवन्तने कहा यों निश्चय हे श्रेषिक ! यह इन्द्रभूती प्रमुख
*प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी।
।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org