Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 46
________________ Fr-.'- - 12 . नवमास परियाओजाव कालमासे कालकिच्चा उडदिमा जाव नवेयगेविजविजयविमाण । 'पत्थडे उड़े दुरंवितिवइत्ता सन्वटुंसिद्धे महाविमाणे देवत्ताए उववन्ने ॥ ४९॥ थरा सहिब उत्तरंति जाव इमेसे आयरभंडए ॥ ५० ॥ भंतेत्ति, भगवं मोयमे तहेव पुच्छइ जहा E. खंधयस्स भगवं वागरति जाव सबसिद्धि विमाणे उववन्ने । ५१॥ धन्नस्सणं M. भंते ! देवस्स केवइयं कालं ठिइपन्नत्ते ? गोयमा ! तेत्तीसं सागरोइमाई द्विति पन्नंते ॥ ५२ ॥ सेणं भंते ! ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं मवक्खएणं ट्रितिक्खा एक महीने की सलेषना, नक्महीने पूर्ण संयम पालकर यावत् काल के अवसर काल पूर्ण करके उई चन्द्रमा मूर्य से भी ऊपर यानत् प्रयवेक विजय विमान उल्लंघकर सर्वार्थ सिद्ध महाविमानमें देवतापने उत्पा हुवे ।। ४९ ।। स्थवी पवन नीचे उतरे यावत् धन्न अनगारके भंडोप करण भगवंत के सुपरत किये।।५०॥ बार भगवती खंदक की पूछा की है उस ही प्रकार गौतम स्वामीने यहां भी पछा कीतब भगवंतने कहा कि-ह गौतप ! धना धनगार यावत् सर्वार्थ सिद्ध महाविमान में देवतापने उत्पन्न हुवा है ॥ ५१ ॥ अहो भगवन् ! धन्ना देवता की कितने काल की स्थिति है ? हे गौतम ! तेतीस सागरोपम की स्थिति कही है. ॥ ५२ ॥ अहो भग्वम् ! वह देवलोक से.आयुष्य पूर्ण कर कहा जायगा 4.2 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी WEANIKinaruwarmirmandir प्रकाशक राजबहादुर लाला मुखदेवसहायजी.ज्वालाप्रसादजी ........ .. Mmmmmmmmmm PARIYARINE. | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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