Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari

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Page 47
________________ सत्र अर्थ 4000+ नवमांग- अणुतरोववाई दशांग सूत्र एणं कहिंगच्छति कहिंउववजेहिंति ? गोयमा ! महाविरेवासे सिज्झिर्हिति बुज्झिहिति मुचिर्हिति परिणिव्वार्हिति सव्वदुक्खाण मंतं करेंहिंति ॥ ५३ ॥ एवं खलु जंबू!, समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठे पण्णत्ते ॥ ५४ ॥ इति तियवग्गस्स पढम अज्झयणं सम्मत्तं ॥ ३ ॥ १ ॥ जइणं भंते ! उक्खेवओएवं खलु जंबू ! तेणंकालेणं तेणंसमएणं काकंदी नामं नयरीहोत्था, महासत्यवाही परिवसइ, अड्डा ॥ १ ॥ तीसे भद्दाए सत्यवाहीपुत्ते सुनक्खत्ते नामं दारएहोत्था, अहिण जाव सुरू, पंचधाइ परिक्खित्ते जहा धन्ने तहब बत्तीस्त उदाओ जाव कहां उत्पन्न होगा? हे गौतम ! महाविदेहक्षेत्र में अवतार ले संयम धारन कर यावत् सिद्ध होंगा बुद्ध होंगा {मुक्त होगा, परिनिर्वान होगा यावत् सब दुःख का अन्त करेगा ॥ ५३॥ हे जम्बू ! निश्चय श्रमण भगवंत महावीर स्वामी यावत् मुक्ति पधारे उनोंने प्रथम अध्ययन का यह कथन कहा । इति तृतीय वर्ग का प्रथम अध्ययन संपूर्ण ॥ ३ ॥ १ ॥ यदि अहो भगवान दूसरा अध्याय, यो निश्चय, हें जम्बू ! उस काल उस समय में काकंदी नाम की नगरी में भद्रा नाम की सार्थवाहीनी यावत् ऋद्धिवन्त रहती थी ॥ १ ॥ उस भद्रा सार्थवाहीनी का पुत्र सुनक्षत्र था, पंचेन्द्रिय से पूर्ण: यावत् सूखा था, पांव घाई से वृद्धि पाया जिस प्रकार धन्ना का अधिकार कहा उस ही प्रकार बत्तीस स्त्रीयों कचीस दात यात्रतू प्रसाद के उपर सुख भोगवता For Personal & Private Use Only Jain Education International तृतीय वर्गका द्वितीय अध्ययन www.jainelibrary.org

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