Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अज्झयणा पण्णत्ता,पढमस्सणंभंते!अज्झयणस्स समणेणं जाव संपत्तणं के अट्रे पण्णत्ते? ॥३॥एवं खलु जंबू! तेणं कालणं तेणं समएणं काकंदी नाम नरी होत्था, रिद्वत्थामया समिड, सहसंववणे उज्जाणे सव्वओय, जियसत्तुराया, ॥४॥ तत्थणं काकंदीय नयरीए भद्दाणामं सत्थवाही परिवसंति, अट्ठा जाव अपरिभुया ॥५॥ तीसणं भदासात्यावाहीए पुत्ता धन्ना नामए दारए होत्था अहीणा जाव सुरूवा, पंचधाई परिग्गहिइ,
4. अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
यावत् मुक्ति प्राप्त हुवे उनोंने तीसरे वर्ग के दश अध्ययन कहे हैं तो अहो भगवन् ! प्रथम अध्ययन का
मण यावत् मुक्ति प्राप्त हुवे उनोंने क्या अर्थ कहा है ?॥३॥ यों निश्चय, हे जम्बू ! उस काल उस समय में काकंदी नामकी नगरी थी. वह ऋद्धि समृसिकर संयुक्त थी, उस के ईशान कौन में सहश्रम्ब नाम का उध्यान था, वहां जीत शत्रु नाम का राजा राज्य करता था ॥ ४ ॥ तहां काकंदी नगरी में है भद्रा नामकी सार्थ वाहिनी रहती थी, वह ऋद्धिवंत यावत् अपराभवित थी ॥५॥ उस भद्रा सार्थ वहीनी के धनानाम का पुत्र था वह पांचोइन्द्रियों कर पूर्ण यावत् मुरूपवंत था, वह पांच धायमाता से परिवरा हुवा बृद्धिपाया जिन के नाम-१ क्षीर-दूधपिलाने वाली ध्याय २ मज्जन कराने वाली, ३ भूषण पहनाने वाली, ४ गोद में खिलाने वाली और ५ क्रीडा कराने वाली, यावत् महावल कुमार को तरह
प्रकाशक-राजाबहादुरलाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
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