Book Title: Agam 09 Ang 09 Anuttaropapatik Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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समणं भगवे महावीर बंदइ नमसइ २ त्ता एवं क्यासी-इच्छामिणं भंते ! तुमहिं अभणुणाय समाणे गुणरयण संवच्छरंतवो कम्मं उवसंपजिताणं विहरित्तए ? अहासुहं देवाणुप्पिया ! मडिबंध करह ॥ १०॥ तएणं से जली अणगारे समणेणं भगवया महावीरेणं अब्भणुणाय समाणे समणं भगवं महावीरं वंदइ . नमसइ २ त्ता गुणरयणं
बच्छरं तबो कम्मं उपस पजित्ताणं विहरइ तंजहा-१ पढमं मासं चउत्थं चउत्थेणं अणिक्खित्तेणं तयो कम्मेणं दियटुणुकटुय सूराभिमूहे आयावणभूमीए आयावेमाणे
रत्तिं वीरासणेणं अबाउट्ठणय ॥ २ दोचं मासं छ? छट्टेणं. अणिक्खित्तेणं तवो अर्थमहावीर स्वामी के वंदना नमस्कार करके यों कहने लग-यों निश्चय अहो भगवान ! आपकी आज्ञा
हानो में चहाताहूं कि गुगरत्न संवत्लर तपकर्म अंगीकार कर विचरूं ? भगवंतने कहा-हे देवानुप्रिया. जैसे 11 सखी वैने कगे प्रतिध मतकरो ॥ १० ॥ तव श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी की आज्ञा हुवे जाली में अनगार श्रमग भगवंत श्री महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार करके गुजरत्त संवत्सर तप कर्म प्रारंभ किया तद्यथा-प्रथम महिने एकमहिने नक एकान्तर उपावास के पारने निरन्तर किये. तपश्चर्या के दिनको । उसाटासन सर्य के सन्मुख हे सूर्य का ताप सहन किया और रात्रि को वस्त्र रहित वीरासन से
84वांग-अणुत्तरोवाई दशांग सूत्र-80
मथम वर्गका प्रथम अध्ययन
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