Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust
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भगवाननां जमानामां वैदिक के डीफिक संस्कृतने ज महल अपातुं ते एटलं बधुं के एज भाषा बोलवामां पुण्य छे बने बीजी भाषा बोलवामां पाप छे. आ हकीकतनो प्रतिध्वनि महाभाष्यनो आरंभमां आजे पण जोवामां आवे छे. तेमां संस्कृत सिवायनी बाकी माषाओने अपभ्रष्ट तरीके गणावी छे अने तेनो प्रयोग करनाराओने दोषी ठराययामां आव्या छे अने आ रीते ते वखतना केटलाक लोको शब्दने ब्रह्म समजी तेनी ज पूजा पाछळ पडेला. आ संबंधमां भगवाने पोतानां सर्व प्रवचनो ते वखतनी लोकभाषामा करीने एख जामेलो भाषानो छोटो महिमा सोडी नांखेलो के अने एक मात्र सदाचार ज आत्मशुद्धिनुं कारण छे पण मात्र भाषायी
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एम बतावी आप्णुं छे.
श्रीउत्तराध्ययनमां कहेयामां आव्युं छे के जुदीतुदी भाषाओ आत्मानुं रक्षण करी शकती नैथी. भगवान बुद्धे पण भाषानी खोटी पूजानो प्रवाद भगवान महावीरनी पद्धतिए ज अटकाववानो प्रयास कर्यो छे.
सूर्यग्रहण के चंद्रग्रहण किये जे मान्यता असारे चाले छे तेवी ज मान्यता भगवानना जमानामां पण चालती राइ सूर्यने गळी गयो अने ग्रहण पूरुं थाय त्यारे राहुए सूर्य के चंद्रने छोडी दीधो एम राहुने सूर्य अने चंद्र साथै वैरभाव जाणे के न होय ते लोको समजता अने एवं रूपकात्मक वर्णन हजुसुधी वैदिक परम्परामां पौराणिक ग्रंथोमां टकी रह्युं छे. आ ग्रहण वखते धर्म मानीने म लोको स्नान माटे अत्यारे दोडधाम करे छे तेम ते वखते पण करता हशे एम मानतुं खोटं न कहेवाय. कहेबानी मतलब एछे के ग्रहणना प्रसंगने धार्मिक प्रक्रियानुं रूप आपीने लोको जेम अत्यारे धमाधम मचावे छे तेम ते वखते पण मचावता हशे . तेमनी सामे भगंवाने कह्युं छे के राहु चंद्र के सूर्यने गळतो नथी तेम ते बे बच्चे कोई जातनो वैरभाव पण नथी. ए तो गगनमंडळमां राहु एक गतिमान पदार्थ छे तेम चंद्र अने सूर्य पण गतिमान पदार्थ छे. ज्यारे गतिवाळा तेओ एक बीजानी आडे आवी जाय छे त्यारे अंशथी के पूर्णपणे एकबीजाने ढांकी दे छे अने पछी छूटा पण पडी जाय छे एटले कोई एक वीजाथी गळातो नथी. ज्यारे एक बीजाने ढांक छे त्यारे लोको तेने प्रहृण थयुं कहे छे एटले ए ग्रहण कोई धर्ममय उत्सव नथी तेथी ए माटेनी दोडधाम पण धर्ममय नथी, ज ए उघाडुं छे. (भा० ३ पा० २७९ )
आ रीते ग्रहण निमित्ते चाटती जडक्रियानो ग्रहणनुं स्पष्ट स्वरूप आपने भगवाने आ स्थळे स्पष्ट खुटासो कर्यो छे. अने बधारामां शशी अने आदित्यना स्पष्ट अर्थो पण जणाव्या छे. शशी शब्दनो पौराणिक अर्थ शश- ससला-वाळो एवो थाय छे अने आदिक्ष्यनो अर्थ अदितिनो छोकरो एवो थाय छे. भगवाने आ पौराणिक परम्परा सामे जाणे के टकोर करवा खातर ज शशी अने आदित्यना तद्दन जुदा अर्थो बतावेला छे.
भगवान शशिनो सश्री - श्री सहित - शोभा सहित एवो अर्थ करे छे अर्थात् जे तेजवाळो, कांतिवाळो अने दीप्तिवाळो छे शशी - सश्री. तेने जिनप्रवचनमां ससी - सश्री कहेवामां आवे छे. अने आदित्य एटले भगवानना कहेवा प्रमाणे जेने मुख्यभूत-आदिभूत करीने काळनी गणतरी चाय ते आदिल, काळनी गणतरीमां सूर्यनुं स्थान सर्वधी प्रथम छे माटे भगवाने कहेडो आ अर्थ व्याजची छे अने व्युत्पत्तिनी दृष्टिए पण बराबर छे. भगवाने आदित्यनो जे उपर्युक्त अर्थ बताव्यो छे ते मैत्स्यपुराणमां पण उपलब्ध छे.
तेना नवा अर्को योग्या छे. अने तेम करीने से वे प्रत्येनी लोकोनी
आ प्रमाणे शशी अने आदित्यना पौराणिक अर्थों खसेडीने गैरसमज ओछी करया प्रयास करेलो ले.
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“भूयांसोऽपशब्दा अल्पीयांसः शब्दाः । एकैकस्य हि
शब्दस्य बहवोऽपभ्रंशाः तद्यथा - गौरित्यस्य शब्दस्य गावी -गोणीमोठा गोपोनिका इत्येवमादयोऽपभ्रंशाः । यस्तु प्रयुक्ते कुशलो विशेषे शब्दान् यथावद् व्यवहारकाले । सोऽनन्तमाप्रोति जर्म पर शम्योगविद् दुष्यति अपशब्दः ॥ (महाभाष्या प्रथम सूत्र प्रारंभ )
"न चित्ता तायए भासा कओ विज्जाणुसासणं ? | विसण्णा पावकम्मेहिं बाला पंडिअमाणिणो ॥ " उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन- ६ "आदिवाविभूतत्वाद"मरस्यपुराण अ० २ को० ३१.
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अपशब्दो घणा छे अने शब्दो ओछा छे. एक शब्दनां भ्रष्टरूपो घणां थाम के एक गो शब्दमा जनानी, गोणी येता, नोपोतलिका वगेरे घणां भ्रष्टरूपो थाय छे.
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जे कुशळ माणस वहेवारने वखते यथावत शब्दोनो प्रयोग करे हे ते वायोगविद अनंत जयने पाने के भने अ
नारो दोषवाळो थाय छे ( भाष्यकार पतंजलिना वखतम सामान्य लोको जे शब्दो बोलता तेने अहीं अपशब्दो कहेवामा आग्या छे अने आम कहीने तेमनो आशय ते वखतनी प्रचलित कभाषानी अवज्ञा करवानो अनेकवादी
स्थान आपवानो नथी ? )
चित्रविचित्र भाषा कोइनुं रक्षण करी शकती नथी तेम शुष्क शास्त्राभ्यास पण पोताने पंडित मानता अज्ञानीओ पाप करवामां खुंची रहे छे.
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