Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 04
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Dadar Aradhana Bhavan Jain Poshadhshala Trust

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Page 19
________________ करनारो मुनि कहेवाय छे. मात्र कोई झाडनी छाल पहेरवाथी तापस कहेवातो नथी पण आत्माने शोधनारं तप करे ते ज तापस कहेवाय छे.' आ उपरांत आठ गाथामां भगवाने खास करीने ब्राह्मणर्नु स्वरूप बताव्युं छे.' धम्मपद अने सुत्तनिपातमां भगवान बुद्धे पण ब्राह्मण- आ जात, लक्षण केटलीक गाथामां बतावेलुं छे. आ उपरथी आपणे स्पष्ट जाणी शकीए छीए के ते बन्ने महापुरुषोनो शुष्क जातिवाद सामे मोटो विरोध हतो. आने लीघे ज तेमना तीर्थोमां शूद्रो, क्षत्रियो अने स्त्रीओ ए बधांने एक सरखं मानभंयु स्थान मळेलं छे. जातिवादनी पेठे ते चखते जडमूळ घालीने बेठेली केटलीक जडक्रियाओ सामे पण भगवान महावीरे ते वखतना लोकोनी सामे विरोध उठावेलो. ए क्रियाओमां खास करीने यज्ञ, स्नान, अर्थना भान विनानुं वेदगें अध्ययन, भाषानी खोटी पूजा- अमिमान, सूर्यचंद्रना ग्रहणने लगतुं कर्मकाण्ड, दिशाओनी पूजानो प्रघात, युद्धथी स्वर्ग मळवानी मान्यता-ए बधी जडप्रक्रियाओने लीघे समाजनी आत्मशुद्धिनो हास थतो जाणी आ सूत्रमा अने बीजा सूत्रमा भगवाने ते ते क्रियाओगें खरं खरूप बताव्युं छे अने तेना जड स्वरूपनो चोक्खो विरोध कर्यो छे. श्रीउत्तराध्ययनसूत्रमा यज्ञना स्वरूप विषे कहेवामां आव्युं छे के बधा वेदोमां विहित करेला यज्ञो पशुहिंसामय छे. ते पशुहिंसारूप पापकर्म द्वारा जे यज्ञ करवामां आवे छे ते यज्ञ याजकने पापथी बचावी शकतो नथी तेथी ज ते खरो यज्ञ नथी पण खरो यज्ञ आ प्रमाणे छ:-"जीवरूप अनिकुंडमां मनवचनकायानी शुभ प्रवृत्तिरूप वाढीथी शुभप्रवृत्तिनुं घी रेडीने शरीररूप छाणां अने दुष्कर्मरूप लाकडांने प्रदीप्त करीने शान्तिरूप प्रशस्त होमने ऋषिओ नित्यप्रति करे छे. खरो होम आ जै छे." १ "न वि मुंडिएण समणो न ओंकारेण बंभणो। | १ मात्र माथु मुंडाववाथी श्रमण थइ शकातुं नथी, ॐकारना जापथी न मुणी रण्णवासेण कुसचीरेण न तावसो ॥ २९ ब्राह्मण थइ शकातुं नथी, जंगलमा रहेवाथी मुनि थइ शकातुं नथी समयाए समणो होइ बंभचेरेण बंभणो। अने डाभ पहेरवाथी तापस थइ शकातुं नथी. (२९) नाणेण य मुणी होइ तवेणं होइ तावसो ॥३० समताथी श्रमण थवाय छै, ब्रह्मचर्यथी ब्राह्मण थषाय छे, चिंतनथी मुनि कम्मुणा बंभणो होइ कम्मुणा होइ खत्तियो। थवाय छे अने तपथी तापस थवाय छे. (३०) वइस्सो कम्मुणा होइ मुद्दो हवइ कम्मुणा" ॥ ३१ कर्मथी ब्राह्मण थवाय छ, कर्मथी क्षत्रिय थवाय छे, कर्मथी वैश्य थवाय -उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन-२५ छे अने कर्मथी शूद थवाय छे. (३१) "जो न सज्जइ आगंतुं पव्वयंतो न सोअह । २ "जे आसक्ति न राखे, शोक न करे, अने आर्यना वचन प्रमाणे रहे रमए अजवयणम्मि तं वयं बूम माहणं ॥ २० तेने अमे ब्राह्मण कहीए छीए. (२०) जायरूवं जहामढे निद्धतमलपावर्ग। धमेला भने संस्कारेला सोनानी पेठे जे शुद्ध छे अने राग, द्वेष तथा रागद्दोसभयाईयं तं वयं बूम माहणं ॥२१ भयथी विमुक्त छे तेने अमे ब्राह्मण कहीए छीए. (२१) तसे पाणे वियाणित्ता संगहेण य थावरे। गतिशील अने अगतिशील प्राणीओनी स्थिति जाणीने जे मन, वचन जो न हिंसइ तिविहेण तं वयं बूम माहणं ॥ २२ अने शरीरथी हिंसा नथी करतो तेने अमे ब्राह्मण कहीए छीए. (२२) कोहा वा जह वा हासा लोहा वा जइ वा भया । क्रोध, मश्करी, लोभ के भयथी जे जूढुं बोलतो नथी तेने अमे ब्राह्मण मुसं न वयह जो उ तं वयं बूम माहणं ॥ २३ कहीए छीए. (२३) चित्तमंतमचित्तं वा अप्पं वा जइ वा बहुं । सजीव के निर्जीव वस्तुनी जे थोडी के बहु चोरी करतो नथी तेने अमे न गिण्हइ अदत्तं जो तं वयं बूम माहणं ॥ २४ ब्राह्मण कहीए छीए. (२४) दिव्वमाणुस्सतेरिच्छं जो न सेवेह मेहुणं । जे मन, वचन ने कायाथी ब्रह्मचर्य पाळे छे तेने अमे ब्राह्मण कहीए मणसा काय-बक्केणं तं वयं बूम माहणं ॥ २५ छीए. (२५) जहा पोम्मं जले जायं नोवलिप्पइ वारिणा । जेम कमळ पाणीमाथी थाय छे छतां पाणीथी लेपातुं नथी तेम जे एवं अलित्तं कामेहिं तं वयं वूम माहणं ॥ २६ कामोथी अलिप्त रहे छे तेने अमे ब्राह्मण कहीए छीए. (२६) अलोलुयं मुहाजीविं अणगारं अकिंचणं । जे लोलुप नथी, स्वार्थने कारणे जीवतो नथी, अकिंचन छ भने गृहअसंसत्तं निहत्थेहिं तं वयं बूम माहणं ॥२७ स्थोमा संसक्त नथी तेने अमे ब्राह्मण कहीए छीए. (२५) एवंगुणसमाउत्ता जे हवंति दिउत्तमा । जे द्विजोत्तमो आवा प्रकारना गुणवाळा होय छे तेओ ज पोतानो अने ते समत्था उद्धत्तुं परं अप्पाणमेव य" ॥ ३३ परनो उद्धार करवाने समर्थ छे. (३३) -उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन-२५ ३ "किं माणा जोइ समारभंता उदएण सोहिं बहिया विमग्गहा ।। । ३ हे ब्राह्मणो, अग्निमा आलभन करता तमे पाणीवडे बहारनी शुद्धिने जं मग्गहा बाहिरियं विसोहिं न तं सुदिटुं कुसला वयंति ॥ ३८ शुं शोधो छो ? तमे जे बहारनी शुद्धि शोधो छो ते सारं नथी एम फुशळ माणसो कहे छे. (३८) कुसं च जूवं तणकट्ठमग्गि सायं च पायं उदयं फुसंता। कुश, यूप, घास, लाकडा, अमि अने पाणीनो सांजे अने सवारे स्पर्श पाणाई भूयाई विहेठयंता भुजो वि मंदा पकरेह पावं ॥ ३९ करता तमे मंदो प्राण भूतोनी हिंसा करो छो अने तेथी वारंवार पाप करो छो. (३९) तवो जोइ जीवो जोइठाणं जोगा सुया सरीर कारिसँग । खरो होम तो आ छ:-तप ए अमि छे, जीव ए अमिनुं स्थान छे, कम्म एहा संजमजोग संती होम हुणामि इसीणं पसत्यं" ॥ ४४ प्रवृत्तिओ ए वाढी छ, शरीर ए छाणां छे, पुण्य पाप ए लाकडां छे -उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन-१२ | भने संयम ए शान्ति छ. ऋषिओए आवा होमने वखाणेलो छे. (४४) Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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