Book Title: Agam 02 Suyagado Bieiyam Angsuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 13
________________ सव्वत्थ विनीयमच्छेरे, उंछं भिक्खू विसुद्धमाहरे । सयक्खंधो-१, अज्झयणं-२, उद्देसो-३ [१५७] सव्वं नच्चा अहिट्ठए, धम्मट्ठी उवहाणवीरिए । गुत्ते जुत्ते सया जए, आयपरे परमायतहिए । [१५८] वित्तं पसवो य नाइओ, तं बाले सरणं ति मन्नई । एए मम तेवि अहं, नो ताणं सरणं न विज्जई ।। [१५९] अब्भागमियंमि वा दुहे, अहवा उवक्कमिए भवंतिए । एगस्स गई य आगई, विद् मंता सरणं न मन्नई ।। [१६०] सव्वे सयकम्मकप्पिया, अवियत्तेण दुहेण पाणिणो । हिंडंति भयाउला सढा, जाइजरामरणेहिऽभिद्दया ।। [१६१] इणमेव खणं वियाणिया, नो सुलभं बोहि च आहियं । एवं सहिएऽहियासए, आह जिने इणमेव सेसगा ।। [१६२] अभविंसु पुरा वि भिक्खुवो, आएसा वि भवंति सुव्वया । एयाइं गुणाई आहु ते, कासवस्स अनुधम्मचारिणो ।। [१६३] तिविहेण वि पाण मा हणे, आयहिए अनियाण संवुडे । एवं सिद्धा अनंतसो, संपइ जे य अनागयावरे ।। [१६४] एवं से उदाहु अनुत्तरनाणी अनुत्तरदंसी अनुत्तरनाणदंसणधरे । अरहा नायपुत्ते भगवं, वेसालिए वियाहिए || त्ति बेमि ।। बीए अज्झयणे तइओ उद्देसो समत्तो . परत्नसागरेण संशोधितः सम्पादितश्च "बीअं अज्झयणं समत्तं" 0 तइयं अज्झयणं - उवसग्गपरिण्णा 0 • पढमो उद्देसो . [१६५] सूरं मण्णइ अप्पाणं, जाव जेयं न पस्सई । जुज्झंतं दढधम्माणं सिसुपालो व महारहं ।। [१६६] पयाया सूरा रणसीसे, संगामंमि उवट्ठिए । माया पुत्तं न जाणाइ, जेएण परिविच्छिए || [१६७] एवं सेहे वि अप्पुढे, भिक्खुचरिया अकोविए । सूरं मन्नइ अप्पाणं, जाव लूहं न सेवए ।। [१६८] जया हेमंतमासंमि, सीयं फसइ सवायगं । तत्थ मंदा विसीयंति, रज्जहीणा व खत्तिया ।। [१६९] पुढे गिम्हाहितावेणं, विमाने सुपिवासिए । तत्थ मंदा विसीयंति, मच्छा अप्पोदए जहा ।। [१७०] सया दत्तेसणा दुक्खा जायणा दुप्पणोल्लिया । ___कम्मत्ता दुब्भगा चेव, इच्छाहंसु पुढोजना ।। [दीपरत्नसागर संशोधितः] [12] [२-सूयगडो]

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