Book Title: Agam 02 Suyagado Bieiyam Angsuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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अप्पडिविरया जावज्जीवाए सव्वाओ हिरण्ण सुवण्ण- घन धन्न मणि मोत्तिय संख सिल-प्वालाओ अप्पडिविरया जावज्जीवा सव्वाओ कूडतुल- कूडमाणाओ अप्पडिविरया जावज्जीवा ।
सव्वाओ आरंभसमारंभाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए सव्वाओ करण-कारावणाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए सव्वाओ पयण-पयावणाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए सव्वाओ कुट्टण-पिट्टणतज्जण-ताडन-वह-बंधपरिकिलेसाओ अप्पडिविरया जावज्जीवाए, जे यावण्णे तहप्पगारा सावज्जा अबोहिया कम्मंता परपाणपरियावणकराजे अनारिएहिं कज्जंति ततो अप्पडिविरिया जावज्जीवाए |
से जहानामए केइ पुरिसे कलम- मसूर- तिल- मुग्ग- मास- निप्फाव - कुलत्थ- आलिसंदगपरिमंथग मादिएहिं अयते कूरे मिच्छादंडं पउंजति, एवमेव तहप्पगारे पुरिसजाए तित्तिर- वट्टग लावगकवोय-कविंजल-मिय -महिस - वराह -गाह - गोह-कुम्म- सिरीसिवामादिएहिं अयंते कूरे मिच्छादंडं पउंजति, जा वि य से बाहिरिया परिसा भवइ, तं जहा- दासे इ वा पेसे इ वा भयए इ वा भाइल्ले इ वा कम्मकरए इ वा भोगपुरिसे इ वा तेसिं पि य णं अन्नयरंसि अहालहुगंसि अवराहंसि सयमेव गरुयं दंड निव्वत्तेइ, तं जहा-इमं दंडेह इमं मुंडेह इमं तज्जेह इमं तालेह इमं अदुयबंधनं करेह इमं नियलबंधनं करेह इमं हड्डिबंधनं करेह इमं चारगबंधनं करेह इमं नियल - जुयल-संकोडिय मोडियं करेह इमं हत्थच्छिन्नयं कह इमं पायछिन्नयं करेह, इमं कण्णछिन्नयं करेह इमं नक्कछिन्नयं करेह इमं ओट्ठच्छिन्नयं करेह इमं सीसच्छिन्नयं करेह इमं मुहच्छिण्णयं करेह इमं वेयवहितं करेह इमं अंगवहितं करेह इमं पक्खाफोडियप करेह इमं नयनुप्पाडियं करेह इमं दंसणुप्पाडियं करेह इमं वसणुप्पाडियं करेह इमं जिब्भुप्पाडियं करेह इमं ओलंबियं करेह इमं घसियं करेह इमं घोलियं करेह इमं सूलाइयं करेह इमं सूलाभिन्नयं करेह इमं खारवत्तियं करेह इमं वज्झपत्तियं करेह इमं सीहपुच्छियगं करेह इमं वसहपुच्छियगं करेह इमं कडग्गिदड्ढयं करेह इमं कागणिमंसखावियगं करेह इमं भत्तपाणनिरुद्धगं करेह इमं जावज्जीवं वहबंधणं करेह इमं अन्नतरेणं असुभेणं- कुमारेणं मारेह, जावि य से अब्भिंतरिया परिसा भवइ तं जहाःसुयक्खंधो-२, अज्झयणं-२, उद्देसो
माया इ वा पिया इ वा भाया इ वा भगिनी इ वा भज्जा इ वा पुत्ता इ वा धूया इ वा सुण्हा इ वा, तेसिं पि य णं अन्नयरंसि अहालहुगंसि अवराहंसि सयमेव गरुयं दंडं निव्वत्तेति तं जहासीओदगवियडंसि उच्छोलेत्ता भवइ जहा मित्तदोसवत्तिए जाव अहिते परंसि लोगंसि, ते दुक्खंति सोयंति जूरंति तिप्पंति पिट्टंति परितप्पंति ते दुक्खण-सोयण-जूरण-तिप्पण-पिट्टण-परितप्पण-वह-बंधनपरिकिलेसाओ अप्पडिविरया भवंति,
एवमेव ते इत्थिकामेहिं मुच्छिया गिद्धा गढिया अज्झोववन्ना जाव वासाइं चउपंचमाई छद्द समाइं वा अप्पयरो वा भुज्जयरो वा कालं भुंजितुं भोगभोगाई पविसुइत्ता वेरायतणाई संचिणित्ता बहूइं पावाइं कम्माइं, उस्सण्णाई संभारकडेण कम्मुणा से जहानामए अयगोले इ वा सेलगोले इ वा उदगं पक्खित्ते समाणे उदग - तलमइवइत्ता अहे धरणितलपइट्ठाणे भवति, एवामेव तहप्पगारे पुरिसजाते वज्जबहुले घूयबहुले पंकबहुले वेरबहुले अप्पत्तियबहुले दंभबहुले नियडिबहुले साइबहुले अयसबहुले उस्सन्न तसपाणघाती कालमासे कालं किच्चा घरणितलमइवइत्ता अहे नरगतलपइट्ठाणे भवति ।
[६६८] ते णं नरगा अंतो वट्टा बाहिं चउरंसा अहे खुरप्पसंठाणंसंठिया निच्चधगारतमसा ववगय-गह-चंद-सूर-नक्खत्त- जोइसप्पहा मेद-वसा - मंस - रुहिर - पूय - पडल - चिक्खल्ललित्ताणुलेवणतला असुई
[दीपरत्नसागर संशोधितः ]
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[२-सूयगडो]

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