Book Title: Agam 02 Suyagado Bieiyam Angsuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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[७०३] आचार्य आह-तत्थ खल भगवया दुवे दिढता पन्नत्ता तं जहा- सन्निदिढते य असन्निदिद्वंते य, से किं तं सन्निदिढते ? जे इमे सन्निपंचिदिया पज्जत्तगा एतेसिं णं छज्जीवनिकाए पडुच्चं, तं जहा पुढवीकार्य जाव तसकायं, से एगइओ पुढविकाएणं किच्चं करेइ वि कारवेइ वि तस्स णं एवं भवइ
एवं खल अहं पढविकाएणं किच्चं करेमि वि कारवेमि वि, नो चेव णं से एवं भवइ- इमेण वा इमेण वा से एतेणं पढविकाएणं किच्चं करेइ वि कारवेइ वि से य तओ पढविकायाओ असंजय-अविरयअप्पडिहय पच्चक्खाय-पावक्कमे यावि भवइ,
एवं जाव तसकाएत्ति भाणियव्वं ।
से एगइओ छज्जीवनिकाएहिं किच्चं करेइ वि कारवेइ वि, तस्स णं एवं भवइ एवं खल छज्जीवणिकाएहहिं किच्चं करेमि वि, कारवेमि वि नो चेव णं से एवं भवइ- इमेहिं वा, इमेहिं वा से य तेहिं छहिं जीवनिकाएहिं किच्चं करेइ वि कारवेइ वि, से य तेहिं छहिं जीवनिकाएहिं असंजय-अविरयअप्पडिहय पच्चक्खाय-पावकम्मे तं जहा- पाणाइवाए जाव मिच्छादसणसल्ले,
एस खलु भगवया अक्खाए अस्संजए अविरए अप्पडिहय-पच्चक्खाए-पावकम्मे सुविणमणि न पस्सइ पावे य से कम्मे कज्जइ से तं सन्नि दिलुते ।
से किं तं असन्निदिहते ? जे इमे असण्णिणो पाणा तं जहा- पुढविकाइया जाव वणस्सइकाइया छट्ठा वेगइया तसा पाणा, जेसिं नो तक्काइ वा सण्णा इ वा पण्णा इ वा मणे इ वा वई इ वा सयं वा करणाए अन्नेहिं वा कारवेत्तए करेंतं वा समजाणित्तए, तेऽवि णं बाला सव्वेसिं पाणाणं जाव सव्वेसिं सत्ताणं दिया वा राओ वा सत्ते वा जागरमाणा अमित्तभूया मिच्छासंठिया निच्चं पसढविओवाय चित्तदंडा तं जहा पाणाइवाए जाव मिच्छादंसणसल्ले, इच्चेवं जाव नो चेव मनो नो चेव वई पाणाणं [भूयाणं जीवाणं] सत्ताणं दुक्खणयाए सोयणयाए जूरणयाए तिप्पणयाए पिट्टणयाए परितप्पणयाए ते दुक्खण-सोयण जाव परितप्पण-वह-बंध-परिकिलेसाओ अप्पडिविरया भवंति ।
इति खल ते असण्णिणोऽवि सत्ता अहोनिसिं पाणाइवाए उवक्खाइज्जति जाव अहोनिसिं परिग्गहे उवक्खाइज्जति जाव मिच्छादंसणसल्ले उवक्खाइज्जंति, सव्वजोणिया वि खल सत्ता-सन्निणो हच्चा असन्निणो होति असन्निणो हच्चा सन्निणो होति होच्चा सन्नी, अदुवा असण्णी तत्थ से अविचिता अविघूणिता असमुच्छित्ता अनन्तावित्ता असन्निकायाओ वा सन्निकाय संकमंति सन्निकायाओ वा असन्नीकायं संकमंति सन्निकायाओ वा सन्निकायं संकमंति असन्निकायाओ वा असन्निकायं संकमंति, जे एए सन्नी वा असण्णी वा सव्वे ते मिच्छायारा निच्चं पसढ-
विओवाय चित्तदंडा तं जहासुयक्खंधो-२, अज्झयणं-४, उद्देसो
पाणाइवाए जाव मिच्छदंसणसल्ले, एवं खलु भगवया अक्खाए असंजए अविरए अप्पडिहय-पच्चक्खायपावकम्मे सकिरिए असंवड़े एगंतदंडे एगंतबाले एगंतसुत्ते से बाले अवियार मन वयण काय- वक्के सुविणमवि न पासइ पावे य से कम्मे कज्जइ ।
७०४] चोयगः- ते किं कव्वं कि कारवं कहं संजय-विरय-पडिहय-पच्चक्खाय-पावकक्मे भवइ ? आचार्य आह- तत्थ खल भगवया छज्जीवनिकायाहेऊ पण्णत्ता, तं जहा- पढवीकाइया जाव तसकाइया,...
[दीपरत्नसागर संशोधितः]
[71]
[२-सूयगडो]

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