Book Title: Agam 02 Suyagado Bieiyam Angsuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 16
________________ ......... तइए अज्झयणे बीओ उद्देसो समत्तो . सयक्खंधो-१, अज्झयणं-३, उद्देसो-३ ० तइओ उद्देसो . [२०४] जहा संगामकालंमि, पिट्ठओ भीरु वेहइ । वलयं गहणं नम, को जाणइ पराजयं? ।। [२०५] मुहुत्ताणं मुहुत्तस्स, मुहत्तो होइ तारिसो । पराजियाऽवसप्पामो इति भीरु उवेहई ।। [२०६] एवं तु समणा एगे, अबलं नच्चाण अप्पगं । अनागयं भयं दिस्स, अवकप्पंतिमं स्यं ।। [२०७] को जाणइ विऊवातं, इत्थीओ उदगाउ वा । चोइज्जंता पवक्खामो न, नो अत्थि पकप्पियं ।। [२०८] इच्चेव पडिलेहंति, वलयाइ पडिलेहिणो । वितिगिंछसमावन्ना, पंथाणं व अकोविया ॥ [२०९] जे उ संगामकालंमि, नाया सूररंगमा । नो ते पिट्ठमवेहिति, किं परं मरणं सिया ।। [२१०] एवं समुट्ठिए भिक्खू, वोसिज्जाऽगारबंधणं । आरंभ तिरियं कट्ट, अत्तत्ताए परिव्वए ।। [२११] तमेगे परिभासंति, भिक्खुयं साह्जीविणं । जे एवं परिभासंति, अंतर ते समाहिए । [२१२] संबद्धसमकप्पा उ, अन्नमन्नेस् मच्छिया । पिंडवायं गिलाणस्स, जं सारेह दलाह य ।। [२१३] एवं तुब्भे सरागत्था, अन्नमन्नमनुव्वसा । नट्ठ-सप्पह-सब्भावा, संसारस्स अपारगा ।। [२१४] अह ते परिभासेज्जा, भिक्खू मोक्खविसारए । एवं तुब्भे पभासंता, दुपक्खं चेव सेवहा ।। [२१५] तुब्भे भुंजह पाएस्, गिलाणोऽभिहडंमि या । तं च बीओदगं भोच्चा, तमुद्देस्सादि जं कडं ।। [२१६] लित्ता तिव्वाभितावेणं, उज्झिया असमाहिया । नाइकंडूइयं सेयं अरुयस्सावरज्झई ।। [२१७] तत्तेण अनुसिट्ठा ते, अपडिण्णेण जाणया । न एस नियए मग्गे, असमिक्खा वई किई ।। [२१८] एरिसा जा वई एसा, अग्गे वेणु व्व करिसिया । गिहिणो अभिहडं सेयं, भुजिउं न उ भिक्खुणं ।। [दीपरत्नसागर संशोधितः] [15] [२-सूयगडो]

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