Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

View full book text
Previous | Next

Page 401
________________ 'कसेहि १७६ MY 2 १७ V ३१० प्रथमे परिशिष्टे विशिष्टशब्दाः सूत्राकाः । विशिष्टशब्दाः सूत्राङ्काः कम्ममूल १११ कसाय [रसः कम्मसमारंभ ५, ८, ९, १२, १४, १८, | कसाय [क्रोधादिः] २२४, २२८, २३१ २३, २५, ३४, ३६, ३९, १४१ ४२, ४४, ५२, ५७, ५९, कस्सइ २२२ २०३ कहा २६३ कम्मसरीर १६७ कम्मसरीरग कहकहे २२४, २२८ कम्मावह २७० कहिंचि २०४, २०५ कम्मावादी काऊ कम्मुणा ११०, १४५, २६७, २७१ काणत्त कम्मोवसंती काणियं १७९ कयवर काम ७०,७१, ९०, १०९, ११३, १४७, कयविक्कय १८०, १८३, १९०, २५१. कयाइ कामकामी कर कामकंत १९८ अकरिस्सं कामसमणुण्ण ८०, १०५ अकासी ३३, ३१४ काय १६३, १९८, २०३, २११, २१२, कजति २२४, २२८, २४३, २४९, २५६, कजति ६७, ७३, ८७ २९९, ३०३ करए कायर १९३ करिस्सति कायसंफास १६३ करिस्सामि ४०, ६६, ९४, १९३ कारण १२२, १९१ करेंति ११३ काल ७८, ८८, १६६, २१० करेति(इ) ९३, ९४, ११२, कालखी ११६ ११५, १२२ कालग्गहीत १३४ कारवे कालण्ण ८८, २१० काराविरसं कालपरियाय २१५, २१९, २२४, २२८ कारित्था ३१४ कालाकालसमुहायी कारेति कालेणुट्ठाई ८८, २१० कुज्जा ९५, १६४, १९९, २०७, २०८, कालोवणीत १९८ २१९, २२४, २२७ कासंकस करणाए २१९, २२७ काहिए १६५ कलह १६४ किं १२२, १३१, १३९, १४६, १५९, कलुण १७८ १६४, १८९, १९३ कल्लाण २०० किंचि २३४, २७१ कवाल किच्चा २२४, २२८, २३१ कसाइत्था किति १६३, १७७ ४० ९४ ३०२ ८७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516