Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 399
________________ ३०८ प्रथमे परिशिष्टे ६२ विशिष्टशब्दाः सूत्राकाः उवादीतसेस उवादीयमाण उवाधि ११० उवेति ७७, ७९, ८२, ९६, १४८ उवेह । १४० उवेहति १९२ उवेहमाण १०८,१४६, १५९ १६०,१६९ १२३, १५४, १६९ उहाहि उसिण १०७ उसिय १८९ उहाए ऊरु विशिष्टशब्दाः सूत्राङ्काः उप्पेहाए २७४ उब्वाहिजमाण १६४ उब्भमे २४७ उन्भिय उम्मुंच ११३ उम्मुग्ग १७८ उर उराल २६३ उवकरण उवक्कम २३४ उवचय २१० उवचरे २३६ उवचरंति २८३, २८४ उवहित १२७, १३२ उवणीत(य) ६२, १०८, १८२, १९८ उवदंसेजा १६९ उवधि [टि.] ११० उवधी १३१, १४६ उवमा १७६ उवरत ४०,१०६, १०७, १०९, ११७, १२८, १३०, १३२, १४५, १४६, १५२, उवलब्भ उवलिंपे(पिज्जासि उववाइअ १, २, ४९ उववाय ११९, १८०, २०९ उवसंकमत ३०१ उवसंकमित्तु २०४, २०५, २११ उवसंत ११६, १६४, १९१ उवसंतरए १६६ उवसंती उवसग्ग २२४, २२८, २५०, २८३, २८४, २९५ उवसम १४३, १८३, १९०, १९६ उवहत उबातिकम्म २०२ उवातिकत २१४, २१७ एकयर एग १, २, १२, १४, २५, ३४, ३६, ३७, ४२, ४४, ५०, ५२ , ५७, ५९, ६०, ६४, ६७, ७०, ७५, ७७, ८२, ८७, १२४, १२७, १२९, १३५, १४१, १४९, १५१, १५४, १५९, १६२, १६७, १७२, १७८, १८३, १८४, १८६, १९०, १९१, १९४, २००, २०९, २१४, २१५, २२२, २६१ एगंत २२४, २२८, एगचर २८७ एगचरिया १५१, १८६ एगणामे १२९ एगतर १८४, १८७, २२५, एगता एगतिय १६३, १९६, २७७, २८४ एगत्तिगत २६४ एगदा २७८, २७९, २९१, ३००, ३०३, ३११, ३१२, ३१३ एगप्पमुह एगया ६४,६६,६७,७९,८१,८२, १६३, १६९, २८२, ३००, ३०३, ३११, ३१२, ३३३ ३१२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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