Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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विवाद
विभूसा
૧૮૮
विह
३३२
प्रथमे परिशिष्टे विशिष्टशब्दाः सूत्राङ्काः । विशिष्टशब्दाः
सूत्राङ्काः विप्परियासुवेति[टि.]
विलुपंति
७९, ८२ ९६, १४८ विलुपह
२०६ विप्परिसिट्ठ
विलुपित्ता
६६, ९४ विप्पसादए १२३
१३६ विष्फंदमाण
१४२ विवित्त
६३, २३८, २३९ विभंत
१९४ विवित्तजीवि
११६ विभए
विवेग
१५९, १६३, २०२ विभत्त
१९९ विसंभणता
२२४, २२८ विभयंति
विसण्ण
१९२, १९८ २७, ६४ विसाण
५२ विमुक्क
विसोग
२६३ विमोह २२९, २५३ विसोत्तिय
२०,१८५ विमोहण्णतर
२५३ विस्सेणि विमोहायतण २१५, २१९, २२४, २२८
२१५ वियक्खात १७४ विहरंत
२९८ वियड २७१ विहरमाण
२०४, २०५ वियत्ता १९९ विहरिंसु
२५६, २९७ वियाणतो २३९ विहरित्था
२६६ वियावाय
१९८ विहरे
२४८ वियाहित(य) १९, २६, ४१, ९९, १३८, विहारि
१६२ १४२, १४३, १५२, १६१, विही
२९२, ३०६, ३२३ १७१, १७४, १८०, १८५, विहिंसंति १८८, १९२, १९८, २०२, विहिंसति १२, १४, २३, २५, ३४, ३६, २०९
४२, ४४, ५०, ५२, ५७, ५९ वियोसज
२३३, २४५ वीर २१, ३३, ८५, ८६, ९१, ९८, ९९, वियंतिकारए २१५, २१९, २२४, २२८ १०१, १०३, १०७, १०९, १२०, विरत ९९,१२०,१५३, १५६, १६१, १८४, - १२३, १२९, १४३, १४६, १५३, १८८,१८९,१९४,२०४,२१९,३०९
१६१, १७३, १९५ विरति १९६ वीरायमाण
१९३ वीरिय
१५७ विरमेज
१७४ वुड्डि
४५, ११२ विराग १२३
१८५ विरूवरूव ६, १२, १४, २३, २५, ३४, वेज्जावडिय
१६३ ३६, ४२, ४४, ५०, ५२, ५७,
१४५, १६३, १७४, १९६ ५९, ६८, ७३, ७६, ८७, वेदेति
१०७ १८७, २२४, २२५, २२६, २२८, २८६, २९३ । वेयवं
१०७
विरत्त
वेदवी
वेयण
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