Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
View full book text
________________
आचारागसूत्रप्रथमश्रुतस्व
३३३
वेर
वेवई
संति
१४६
१८०
सए
संथव
२४३ १६२
विशिष्टशब्दाः सूत्राङ्काः । विशिष्टशब्दाः
सूत्राङ्काः वेयावडिय १९९, २०७, २०८,२१९, २२७ संत
__१३४, २१९, २६४ ९३, १०७, ११४ संतरुत्तर
२१४ संताणय
२२४ वोक्कसिस्सामि
११, २६, ३७, ४९, ५६, ६०, वोच्छिदेजा
१६४
८५, १८०, १९६, २६६ वोसन
२५७, २७५, २९९ संतिमरण वोसिरे २४९ संतेगतिया
१९६ वोस?काय
३०४ संथडदंसी २८७ संथरे
२३५ सई ३२१ संथरेजा
२२४, २२८ सई असई
संथरेत्ता
२२८ २४१
१३५ संकप्प
१५१ संथुत संकमण
७८, २१८ संध-- संकुचए
संधिस्सामि
૧૮૭ संकुचेमाण
संधेति संखडी
२७२ संधेमाण
१८९ संखा
संधि ८८, ९१, १२१, १५२, १५३, संखाए __७५, १८४, १९१, २५४, २६६
१५७, १६९ संखाय १९७, २५० संनि(णि)वेस
१७८, २२४ २,९४, १०७,११४, १५४, संपडिलेहाए १७४, १७६, १८४, १९८ संपमारए
१५
संपयंति संगकर
संपलिमजमाण संगामसीस १९८, ३००, ३०५ संपव्वयमाण
१६९ संघडदंसी टि.]
१४६ संपसारए संघाडी
२९०
संपातिम संघात
३७, ६० संपुण्ण संचारेज्जा
संपेहाए[टि.] संचाएमि २११, २२५ संफास
१६३, २९० संचिक्खति
संबाहण संजत
संबाहा
१६२ संजमति
संबुज्झमाण १४, २५,३६,४४,५२,५९, संजोग १०१, १२९, १३२, १४३,
९५, १३४, २०२, २०९, २८२ १४४, १८३ संभवंत
१९१ संजोगट्ठी
संभूत
७९, १८२ संणिहिसंणिचय
संमत
२३०
संग
संगंथ
१६२
२२३
१८४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516