Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

View full book text
Previous | Next

Page 472
________________ आचाराङ्गसूत्रद्वितीयश्रुतस्कन्धान्तर्गतविशिष्टशब्दसूचिः ३८१ विशिष्टशब्दाः सूत्राकाः विशिष्टशब्दाः सूत्राकाः विज्झावेंतु ४२३ विभूसिय ४२४, ६८६ विज्झावेज ४२३ विमाण ७५१, ७५३, ७५४ विडिमसाला ५४४ विमाणवासि ७३७, ७३९, ७५३, ७७४ विणिघा(ग्घा-टि०)य ७९. विमुक्क विणिद्धणिय ४५८ विमोक्ख ८०३ विणियत्तबालभावे ७४२ विमुञ्चति(ती) ८०१, ८०४ विणिव्वत्त ०४६ वियत्तिए ४२८,४२९ विणीततण्ह ७९७ वियड ३६०,४१९, ४२१, ४५२, ५६५, विण्णवेंति ४५३ ५७३, ६९६, ७०५, ७१२, ७१९ विण्णाय वियडोदए [टि.] ६०४ विण्णायपरिणय ७४२ वियत्ताए पोरुसीए ७६६, ७७२ विष्णु ७९३, ७९४ वियत्तमणसाणं वितत ६६९, ७६५ वियागरेति ४४३ वितिगिछसमावण्ण वियागरेज ५०७, ५०९ वित्तसेज ५०५ वियागरेमाण ४४३, ५०७, ५०९ वित्ति ३४८, ४६५, ४६६ वियारभूमि ३२८, ३४४, ३४५, ४६५, ४६६ वित्थार वियारेइ [टि.] ४४३ विदलकड ३२५ वियारेमाणे [टि.] वियाल ३४०, ३५४, ४३०, ४४४, ४५९, ५१५ विदेहजच्च वियावत्तस्स ७७२ विदेहदिण्ण ७४६ वियाहिता ४४३ विदेहादिण्णा वियोसेज ४८२, ५१६ विदेहसमाल विरइय विद्धत्थ ३६९ विरस ४०१ विपंचीसद्द बिराल ३५४ विपरिकम्म [टि.] ६३८ विरालिय विपुल विरुद्धरज ४७२, ६८३ विप्पजहित्ता ७४५ विरूवरूव ३३५, ४०९, ४२८, ४२९, विप्पमुक्क ४४०, ४७१, ४८४, ५००, विप्परिकम्मादी ६३८ ५१२, ५४१, ५४२, ५५७, विप्परिणामधम्म ५२२ ५९२, ५९३, ६६९-६७४, विप्परियासियभूत ३४० विप्पवसिय विलिंगेज ६४३ विफालिय ४९८ विलिंपेज ६९७, ७०६, ७१२ विभंग ७८७, ७९. विलेवणजा(त)य ६९७, ७०६ विभातु बिल्लसरडुय ३७९ ४४३ विदू विदेह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516