Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 459
________________ ३६८ विशिष्टशब्दाः पत्त ( प्राप्त) पत्तच्छेजकम्म पत्तु (तु - टि०) ण्ण पत्तोव सु पदुग्ग पधारेजा पमाण पमेति (दि, द, दु-टि० ) ल पयत्तकड पयत ७७८ पधूवेज ६९८, ७०७, ७१२ पधोव - ३६०, ४१९, ४५२, ५६५, ५७३, ६९६, ७०५, ७१२, ७१९ ७४० पभिति (तिं) पमज्ज- ३२४, ३५३, ३५६, ३६३, ४०४, ४१२, ४१४, ४१५, ४१६, ४५८, ४६०, ४७५, ४९१, ४९३, ४९७, ५७९, ६००, ६०२, ६०७, ६९३, ७०१, ७०८, ७१५, ७२५, ७२७ ७६६ ५३९ ५३६, ५३८ ७६८ ३५३, ३६५, ४१९, ४४४, ४५९, ४९९ पयलमाण पयलेज प्रथमे परिशिष्टे सूत्राङ्काः ७८१ ६८९ ५५७ ६६६ ६५६ पयातसाला ५४४ पयावेज्ज ३५३, ४२१, ४९१, ४९७, ५७५, -५७९, ६००, ६०४ ४२९, ५७५–५७८ पयावेत्तए पयाहिण ७५४ पर ३२४, ३३७, ३३८, ३५७ इत्यादि परकिरिया ६९० परक्कम - ३५३ - ३५५, ३५९, ४६९, ४७०, ४९९, ५०० ३५३, ४९९ परग परदत्त भोई परपडिया परम परक्कममाण परक्कमेज्जा ३५३ - ३५५, ३५९, ४६९, ४७०, ४९९, ५०० ४०९, ४५६ ६०७ ६०९, ६१० ७६४ Jain Education International विशिष्टशब्दाः परलोइय परय परिए सिजमाण परिग्गह परिघासिय परिजाण - ४७७ – ४८१, सूनाঙ্কा: ६८७ ८०४ ३३५, ३३७ ७८९, ७९३ ३२४ ५१०, ५१२, ५१३, ५१४, ७७८, ७८१,८०२ ४९२ ३९५, परिणमेजा परिणय ३९६, ४०४, ४४०, ४४३, ४५९, ५८३, ५०४, ६०३, ६६७. ३४० ३६९, ७४२ परिणाम ४२१, ४२९, ४७४, ५८३, ५८४ परिणिव्वाइस्संति ७४५ परिण्णचारि ૯૦૦ परिण्णा परिजविय परिट्ठव - ३२४, ३५२, ३९४, परिणात परितावणकरि परिदाह पडिया परिणित्वुत्त परिपित्ता परिपीलियाण परिभवेज्ज परिभवेंति । परिभायंत परिभाइजमाण परिभाइयपुव्वा परिभाएजा परिभाएता परिभाएमाण परभाह परिभाएहि परिभुजंत ४७७–४८१, ४८४, ५१०, ५१२-५१४, ८०१ ६०८, ६२१ ५२४ परिभुज्जमाण परिभुत्तपुव्वा For Private & Personal Use Only ४९५ ७३३ ४६१ ३७३ ४७१, ५१८ ५१८ ६८६ ३५२ ४४३ ३५७ ४०४, ४०५, ६०३ ३५७ ३५७, [टि०] ४०५ ३५१ ६८६ ३५२ ३३१, ३३२, ३४२, ४४३ www.jainelibrary.org

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