Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 413
________________ १९८ ३२२ प्रथमे परिशिष्टे विशिष्टशब्दाः सूत्राकाः विशिष्टशब्दाः सत्राक्षाः परिजाणतो १४९ परिमंडल १७६ परिजाणामि २०४ परियट्टण . परिजाणित(य)व्व परियाय १५२, १७१, १८५, परिजुण्ण १०, १८७, २१७, २२१ २१५, २१९, २२४ परिट्ठवेजा . २१४, २१७, २२१ परियावजंति परिट्ठवेत्ता २१४, २१७, २२१ परियाविति परिणमेजा परिवजए १६५ परिणिजमाण १४९ परिवज्जियाण २६६, २७२ परिणिव्वाण ४९ परिवदेजा ६४, ८१ परिण्ण १७६ परिवदंति ६४, ८१ परिण्णा ७,१३,२४,३५,४३,५१,५८, परिवहित्तए २२४, २२० .९७,१०१,१०३, १४०, १८८,२१९ परिवाय ११० परिणाए परिविचिट्ठति १३५ . परिण्णाचारी परिविचिद्धिंसु १४६ परिणाण परिवित्तसेजा परिण्णात(य) (परिज्ञात) ९,१६,१८,२९,३०, परिवित्तसंति १९८ ३८, ३९, ४६, ४८, परिसित १८४, १८७, २१३, ५३, ५५, ६०, ६१, २१६, २२०, २२५ ६२,९३, १४९,२७० परिवंदणमाणणपूयणाए ७, १३, २४, ३५, परिण्णाय १७,३०,३३,४७,५४,६१, ६२, ४३,५१,५८,१२७ ७४, ७८, ८८, ९२, ९७, १०१, परिव्वए ८८, १०८, ११६, १२४, १५६, १०४,१११, १२०, १२३, १४०, १७३, १८४, १८६, १९७ १५८,१६०,१६३, १४३, १७५, परिष्वयंति १६६ १८४, १८५, १८८,२०३, २५९ परिस्सवा १३४ परिण्णाय(त)कम्मे ९, १८, ३१, ३९, परिस्सह ४८, ५५, ६१, ६२ परिहरंत ३१८ परिण्णाविवेग परिहरंति परितप्पति परिहरेजा परितप्पमाण ६३, ७२ परिहायमाण परिता(या)व ६३, ११८, १४५ परिहिस्सामि १८७ परितावए . १८० परीवेवमाण २११ परिता(या)वेयव्व १३२,१३६-१३८,१७० परीसह १८३, २४९, २५० परिताति परीसहपभंगुणो २१० परिदेवमाण १८२ परीसहो(हु)वसग्ग २२४, २२८ परिनिव्वुड परूवेति परिपञ्चमाण १५० परूवेमो १३८ परिपाग १८० । परूवेह ६७ ६७, ८९ ६४ १०, ४९ १३७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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