Book Title: Acharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Author(s): Tulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 8
________________ (vi) हमारे समाज में श्रीचंदजी रामपुरिया जैन दर्शन एवं तेरापंथ दर्शन के मर्मज्ञ श्रावक थे। उन्होंने आचार्य भिक्षु के अनेक ग्रंथों का अनुवाद ही नहीं किया है अपितु उन पर सविस्तार टिप्पण भी लिखे हैं। श्रावक समाज में अपनी तरह के वे एक विरले विद्वान् थे। उन्होंने इन दोनों ग्रंथों का अनुवाद किया था। हमने मुनि कुलदीपकुमारजी को नव पदार्थ के अनुवाद का निरीक्षण तथा शासन गौरव साध्वी राजीमतीजी को अनुकम्पा री चौपाई का अनुवाद कार्य सौंपा। दोनों ने ही परिश्रम से अपना कार्य किया। मैंने फिर उसका अवलोकन किया तथा उसमें अपेक्षित संशोधन भी किया। पहली बात तो यह है कि दोनों ही ग्रंथ अत्यन्त मौलिक हैं। इनकी तात्त्विक पृष्ठभूमि आगमों की गहराइयों को छूती है। उसे सम्यग् रूप से समझ पाना अत्यन्त कठिन है। भाषा की दृष्टि से भी उसे समझने में अनेक कठिनाइयां है। उदाहरण के लिए अजीव पदार्थ के अंतर्गत धर्मास्तिकाय के प्रसंग में आचार्य भिक्षु ने कहा है ___धर्मास्ती काय तों सेंथालें पड़ी, तावड़ा छांही ज्यूं एक धार जी। तिणरें वेंठों न वींटों कोइ नही, वले नही छे की सांध लिगार जी॥ यहां जो 'सेंथाले' शब्द आया है, उसका अर्थ हमने राजस्थानी शब्द कोश में देखा तो कहीं नहीं मिला। इसी प्रकार 'वेंठों न वींटो' का भी समुचित अर्थ नहीं मिला। काफी विचार-विमर्श के बाद हमें अपनी मति के अनुसार इसका अर्थ करना पड़ा। ऐसी कठिनाई अनेक जगह पर आई। पहले हमारा विचार था कि हर खण्ड के साथ पारिभाषिक एवं कठिन शब्दों के परिशिष्ट भी दिए जाएं। पर जब देखा कि भिक्षु वाङ्मय में ऐसे अनेक शब्द हैं जिनका अर्थ राजस्थानी शब्द कोश में नहीं है तो हमने उन परिशिष्टों का विचार छोड़ दिया। यह तय किया कि भिक्षु वाङ्मय का एक अलग ही शब्द कोश तैयार किया जाए। इसीलिए इन खण्डों में हमने ग्रंथों का केवल अनुवाद ही उपलब्ध करवाने का निश्चय किया। अनुवाद कार्य को निर्णायक स्थिति तक पहुंचाने में अणुव्रत प्राध्यापक तथा राजस्थानी भाषा के विज्ञ मुनिश्री सुखलालजी स्वामी तथा मुनि कीर्तिकुमार जी मेरे साथ जुड़े रहे। उससे यह कार्य मेरे लिए सुगम हो गया। इस कार्य में मुनिश्री राजकरणजी स्वामी, मुनि मदनकुमारजी व मुनि भव्यकुमारजी का भी यथोचित सहयोग प्राप्त हुआ। सरदारशहर आचार्य महाश्रमण २५ जून २०१०

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