Book Title: Acharya Bhikshu Tattva Sahitya 01
Author(s): Tulsi Ganadhipati, Mahapragya Acharya, Mahashraman Acharya, Sukhlal Muni, Kirtikumar Muni, Shreechan
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 7
________________ ( v ) किया। हमने उसे ही प्रमाणभूत माना है । उस समय राजस्थानी में एक ही शब्द के अनेक पर्याय प्रचलित थे । उदाहरण के लिए हम आश्रव शब्द को लें । भिक्षु वाङ्मय में आश्रव के आसरव आसवर, आसव, आश्व आदि अनेक रूप स्वीकृत किए गए हैं। हमने भी उस मौलिकता की सुरक्षा करते हुए उन रूप पर्यायों को उसी रूप में मूल पाठ के रूप में स्वीकार किया है । इसी प्रकार तात्कालीन राजस्थानी में अक्षरों के साथ बिन्दुओं का भी प्रयोग बहुलता से होता था । हमने भी मूल पाठ की इस मौलिकता को यथावत् स्वीकार किया है। हो सकता है वर्तमान में ऐसा प्रचलन नहीं है पर हमने उस समय की लिपि रूढ़ि तथा इतिहास को सुरक्षित रखने की दृष्टि से तथा मूल पाठ की सुरक्षा के लिए उसमें कोई परिवर्तन नहीं किया । भिक्षु वाङ्मय को हम चार भागों में बांट सकते हैं १ तत्त्वदर्शन २. आचार दर्शन ३. औपदेशिक ४. आख्यान साहित्य | कुछ लोग राजस्थानी को एक बोलचाल की भाषा मानते हैं। पर इस भाषा के संपूर्ण वाङ्मय को देखा जाए तो लगेगा कि इसमें अभिव्यक्ति की अनुपम क्षमता है। जैनाचार्यों ने तमिल, तेलगु, कन्नड़, शूरसेनी, मराठी, गुजराती की तरह राजस्थानी भाषा में भी विपुल साहित्य लिखा है। यदि कोई विद्वान केवल तेरापंथी साहित्य का भी सम्यग् अनुशीलन करले तो उसे लगेगा कि राजस्थानी एक समृद्ध एवं समर्थ भाषा है । तेरापंथ के अनेक आचार्यों तथा साधु-साध्वियों ने भी राजस्थानी भाषा में अपनी लेखनी चलाई है । निश्चय ही वह राजस्थानी भाषा की महत्त्वपूर्ण सेवा है । भिक्षु वाङ्मय के प्रथम खंड में हमने नव पदार्थ तथा अनुकम्पा री चौपई को शामिल किया है। दोनों ही ग्रंथ अत्यंत महत्त्वपूर्ण है । नव पदार्थ में जैन आगमों में निरुपित नौ तत्त्वों पर गहरा विवेचन किया गया है । अनेक लोगों ने अनेक भाषाओं में नौ तत्त्वों पर विवेचन किया है पर आचार्य भिक्षु की सूक्ष्म दृष्टि अपने आपमें अलौकिक है । नव पदार्थ द्रव्यानुयोग की दृष्टि से उनकी विशिष्टतम कृति है। 1 अनुकम्पा री चौपई तो आचार्य भिक्षु की प्रतिभा का अप्रतिम परिचय है। तेरापंथ दर्शन का यह अनमोल और आधारभूत ग्रंथ है । जिस संघ या सम्प्रदाय का सुनिश्चित दर्शन नहीं होता वह अपना लम्बा इतिहास नहीं बना सकता । तेरापंथ का अपना सुस्पष्ट दर्शन है। आचार्य भिक्षु ने जैन आगमों के आधार पर उसे सिद्ध करने का प्रयास किया है।

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