Book Title: Aagam 01 ACHAR Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 757
________________ आगम (०१) “आचार" - अंगसूत्र-१ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) श्रुतस्कंध [२.], चुडा [१], अध्ययन [३], उद्देशक [१], मूलं [१११], नियुक्ति: [३१२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......आगमसूत्र-[०१], अंग सूत्र-[१] “आचार" मूलं एवं शिलांकाचार्य-कृत् वृत्ति: प्रत सूत्रांक [१११] दीप चार्येवैपा, यदुत-निर्व्याघातेनाप्राप्त एवाषाढचतुर्मासके तृणफलकडगलकभस्ममात्रकादिपरिग्रहः, किमिति !, यतो जातायां वृष्टौ बहवः 'प्राणिनः' इन्द्रगोपकबीयावकगर्दभकादयः 'अभिसंभूताः' प्रादुर्भूताः, तथा बहूनि 'बीजानि' अभिनवाङ्क-18 रितानि, अन्तराले च मार्गास्तस्य-साधोर्गच्छतो बहुप्राणिनो बहुवीजा यावत्ससन्तानका अनभिकान्ताश्च पन्थानः, अत एव तृणाकुलत्वान्न विज्ञाताः मार्गाः, स-साधुरेवं ज्ञात्वा न ग्रामानामान्तरं यायात्, ततः संयत एव वर्षासु यथाऽवसरप्राप्तायां वसतावुपलीयेत-वर्षाकालं कुर्यादिति ॥ एतदपवादार्थमाह से भिक्खू वा० सेज गार्म वा जाव रावहाणि वा इमंसि खलु गामंसि वा जाव राय० नो महई विहारभूमी नो महई बियारभूमी नो सुलभे पीढफलगसिज्जासंथारगे नो सुलभे फासुए उंछे अहेसणिजे जत्थ बहवे समण वणीमगा उवागया उवागमिस्संति य अचाइना वित्ती नो पन्नरस निक्खमणे जाव चिंताए, सेवं ना तहप्पगार गार्म वा नगरं वा जाव रायहाणि वा नो वासावासं उबलिइजा ॥ से भि० से जं० गामं वा जाव राय० इमंसि खलु गामसि वा जाव महई विहारभूमी महई वियार० सुलभे जत्व पीढ ४ सुलमे फा० नो जत्थ बहवे समण उवागमिस्संति वा अप्पाइन्ना वित्ती जाब रायहाणि वा तओ संजयामेव वासावासं उवलिइजा ॥ (सू० ११२) स भिक्षुर्यत्पुनरेवं राजधान्यादिकं जानीयात् , तद्यथा-अस्मिन् ग्रामे यावद् राजधान्यां वा न विद्यते महती 'विहारभूमिः' स्वाध्यायभूमिः, तथा 'विचारभूमिः' बहिर्गमनभूमिः, तथा नैवात्र सुलभानि पीठफलहकशय्यासंस्तारकादीनि, तथा न सुलभः प्रासुकः पिण्डपातः, 'उंछेत्ति एषणीयः, एतदेव दर्शयति-'अहेसणीजे'त्ति यथाऽसावुलमादिदोषर अनुक्रम ACCORAKAR [४४५] wwwandltimaryam ~756~#

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