Book Title: Aagam 01 ACHAR Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(०१)
“आचार" - अंगसूत्र-१ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) श्रुतस्कंध [२.], चुडा [१], अध्ययन [७], उद्देशक [२], मूलं [१६०], नियुक्ति: [३१९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......आगमसूत्र-[०१], अंग सूत्र-[१] “आचार" मूलं एवं शिलांकाचार्य-कृत् वृत्ति:
CA
प्रत
श्रुतस्क०२ चूलिका १ | अवग्र०७ उद्देशः २
सूत्रांक
(शी)
[१६०]
दीप अनुक्रम
श्रीआचा- लामुणं ।। से मि० लहसुणं वा ल्हमुणकद वा ल्ह. चोयगं वा महसुणनालगं वा भुत्तए वा २ से ज. लसुणं वा जाव राङ्गवृत्तिः
लसुणबीयं या सअंडं जाव नो प०, एवं अतिरिच्छच्छिन्नेऽवि तिरिच्छछिन्ने जाव प०॥ (सू०१६०)
स भिक्षुः कदाचिदाबयनेऽवग्रहमीश्वरादिकं याचेत, तत्रस्थश्च सति कारणे आनं भोक्तुमिच्छेत् , तच्चानं साण्ड ॥४०५॥
राससन्तानकमप्रामुकमिति च मत्वा न प्रतिगृह्णीयादिति ॥ किच-स भिक्षुर्यत्पुनराम्रमल्पाण्डमल्पसन्तानकं वा जानी
यात् किन्तु 'अतिरथीनच्छिन्नं' तिरश्चीनमपाटितं तथा 'अव्यवच्छिन्नम्' अखण्डितं यावदमासुकं न प्रतिगृह्णीयादिति ॥ तथा-स भिक्षुरल्याण्डमल्पसन्तानकं तिरश्चीनच्छिन्नं तथा व्यवच्छिन्नं यावत्नासुकं कारणे सति गृहीयादिति । एवमामावयवसम्बन्धि सूत्रत्रयमपि नेयमिति, नवरम् -'अंवभित्तयं ति आम्रार्द्धम् 'अंबपेसी' आखफाली 'अंबचोयगं'ति आपछली सालगं-रसं 'डालगं'ति आवश्लक्ष्णखण्डानीति ॥ एवमिक्षुसूत्रत्रयमप्यानसूत्रवन्नेयमिति, नवरम् 'अंतरुच्छुयं ति पर्वमध्यमिति ॥ एवं लशुनसूत्रत्रयमपि नेयमिति, आबादिसूत्राणामबकाशो निशीथपोडशोदेशकादवगन्तव्य इति ॥ साम्प्रतमवग्रहाभिग्रहविशेषानधिकृत्याह
से मि० आगंतारेसु वा ४ जावोग्गहियसि जे तत्थ गाहाबईण वा गाहा. पुत्ताण वा इयाई आयतणाई उवाइकम्म अह भिक्खू जाणिजा, इमाहि सत्तहिं पडिमाहिं उग्गहं उग्गिणिहत्तए, तत्थ खलु इमा पढमा पडिमा-से आगंतारेसु वा ४ अणुवीइ उगई जाइजा जाव विहरिस्सामो पढमा पढिमा १ । अहावरा० जस्स णं भिक्खुस्स एवं भवई-अहं च खलु अन्भेसि भिक्खूणं अट्ठाए उग्गह उग्गिहिस्सामि, अण्णेसि भिक्खूणं उग्गहे उम्गहिए उवल्लिसामि, दुगा पडिमा २ । अहा
[४९४]
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॥४०५॥
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