Book Title: Aagam 01 ACHAR Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 860
________________ आगम (०१) “आचार" - अंगसूत्र-१ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) श्रुतस्कंध [२.], चुडा [३], अध्ययन -1, उद्देशक [-1, मूलं [१७९], नियुक्ति: [३४१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......आगमसूत्र-[०१], अंग सूत्र-[१] “आचार" मूलं एवं शिलांकाचार्य-कृत् वृत्ति: प्रत श्रीआचारावृत्तिः (शी०) श्रुतस्कं०२ चूलिका ३ भावनाध्य. सूत्रांक ॥४२७॥ [१७९]] दीप सभोषणभोई से निगथे, केवली धूया-अइमत्तपाणभोयणभोई से निम्गथे पणियरसभोवणभोई संतिभेया जाव भंसिजा, नाइमत्तपाणभोयणभोई से निम्थे नो पणीयरसभोवणभोइत्ति चउत्था भावणा ४ । अहावरा पंचमा भावणा-नो निर्माथे इत्थीपसुपंडगसंसत्ताई सपणासणाई सेवित्तए सिया, केवली बूया-निमांथे णं इत्थीपसुपंडगसंसत्ताई सयणासणाई सेवेमाणे संतिभेया जाव भंसिजा, नो निमगंथे इत्थीपसुपंडगसंसत्ताई सयणासणाई सेवित्तए सियत्ति पंचमा भावणा ५. एतावया पनत्ये महन्बए सम्मं कारण फासेइ जाव आराहिए यावि भवइ, चउत्थं भंते ! महव्ययं ।। अहावरं पंचर्म भंते ! महब्वयं सव्वं परिग्गई पच्चक्खामि से अप्पं वा बहुं वा अणुं वा थूल वा चित्तमंतमचित्तं वा नेव सर्व परिग्गई गिहिजा नेवन्नेहि परिग्गहं गिहाविजा अश्रपि परमाहं गिण्हतं न समणुजाणिजा जाब बोसिरामि, तस्सिमाओ पंच भावणाओ भवंति, तत्थिमा पढमा भावणा-सोयओ णं जीवे [मणुना]मणुनाई सदाई मुणेइ मणुभामणुन्नेहि सदेहिं नो सजिजा नो रजिजा नो गिभेजा नो मुज्झि(च्छे)जा नो अझोववजिज्जा नो विणिधायमावजेजा, केवली यूया-निर्गथे ण मणुनामणुनेहिं सदेहिं सजमाणे रजमाणे जाब विणिघायमाबजमाणे संतिभेया संतिविभंगा संतिकेवलिपनत्तामो धम्माओ भसिजा, न सका न सोत सदरा, सोतविसयमागया । रागदोसा उ जे तत्थ, ते भिक्खू परिवजए ।। १ ।। सोयो जीवे मणुनामणुन्नाई सहाई सुणेइ पढमा भावणा १ । अहावरा दुचा भावणा-चक्खूओ जीबो मणुन्नामणुनाई रुवाई पासइ मणुनामणुलेहिं रूबेहिं सजमाणे जाव विणिघायमाबजमाणे संतिभेया जाव भंसिजा,-नसका रूवमर, चक्खुविसयमागयं । रागदोसा उ जे तत्थ, ते भिक्ख परिवजए ॥ १॥ चक्खूओ जीवो मणुन्ना २ रूवाई पासइ, दुचा भावणा । अनुक्रम [५१३... ५४०] ॥४२७॥ C ~859~

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