Book Title: Aagam 01 ACHAR Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 814
________________ आगम (०१) “आचार" - अंगसूत्र-१ (मूलं नियुक्ति:+वृत्ति:) श्रुतस्कंध [२.], चुडा [१], अध्ययन [७], उद्देशक [१], मूलं [१५८], नियुक्ति: [३१९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......आगमसूत्र-[०१], अंग सूत्र-[१] “आचार" मूलं एवं शिलांकाचार्य-कृत् वृत्ति: प्रत श्रीआचारावृत्तिः (शी) ॥४०४॥ पन्नास जाव सेवं न० ॥ से मि० से जं. इह खलु गाहाबई वा जाब कम्मकरीओ वा अनमभं अकोसंति वा तहेष तिहाधि श्रुतस्क०२ सिणाणादि सीओदगवियादि निगिणाइ वा जहा सिज्जाए आलावगा, नवरं सागहवत्तम्बया ।। से भि० से जं. आइन संलिक्खे नो पनस्स. उगिव्हिज वा २, एवं खलु०॥(सू०१५८) उग्गहपडिमाए पढमो परेसी ॥२-१-७-१॥ ४ अवग्र०७ यत्पुनः सचित्तपृथिवीसम्बन्धमवग्रहं जानीयात्तन्न गृह्णीयादिति ॥ तथा-अन्तरिक्षजातमध्यवग्रहं न गृह्णीयादित्यादि शानियाहिउद्देशः २ शय्यावशेयं यावदुदेशकसमाप्तिः, नवरमवग्रहाभिलाप इति ॥ सप्तमस्य प्रथमोद्देशकः समाप्तः ॥ २-१-७-१॥ सूत्रांक [१५८] amra दीप अनुक्रम [४९२] उक्तः प्रथमोदेशका, अधुना द्वितीयः समारभ्यते, अस्य चायमभिसम्बन्धः-पूर्वोदेशकेऽवग्रहः प्रतिपादितस्तदिहापि तच्छेपप्रतिपादनायोद्देशकः, तस्य चादिसूत्रम् से आगंतारेसु वा ४ अणुवीइ समाई जाइजा, जे तत्व ईसरे० ते उम्गहं अणुनविना काम खलु आसमो! अहाळंदं अहापरिमार्य वसामो जाव आनसो! जाव आनसंतस्स उग्गहे जाव साहम्मिआए ताव साहं पग्गिहिस्सामो, सेण पर वि०, से किं पुण तत्व सग्गइंसि एवोगाहियसि जे तत्व समणाण वा माह छत्तए वा जाव चम्मछेदणए वा तं नो अंतोहितो पाहिं नीणिज्जा बहियाओ वा नो अंतो पविसिज्जा, सुत्तं वा नो परिबोहित्रा, नो सेसि किंचियि अप्पत्तियं परिणीय करिज्जा ॥ (सू० १५९) स भिक्षुरागन्तागारादावपरब्राह्मणाद्युपभोगसामान्ये कारणिकः सन्नीश्वरादिकं पूर्वप्रक्रमेणावग्रहं याचेत, तस्मिंश्चाव-| ॥४०४ | प्रथम चूलिकाया: सप्तम-अध्ययनं “अवग्रह प्रतिमा", द्वितीय उद्देशक: आरब्ध: ~813~#

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