Book Title: Aagam 01 ACHAR Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम (०१)
प्रत
सूत्रांक
[१७६]
दीप
अनुक्रम [१०]
श्रा. सू. ७१
"आचार"
अंगसूत्र - १ (मूलं निर्युक्तिः + वृत्तिः )
श्रुतस्कंध [२. ], चुडा [३], अध्ययन [ - ], उद्देशक [-], मूलं [ १७६ ], निर्युक्ति: [ ३४१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..... आगमसूत्र - [०१], अंग सूत्र [०१] “आचार” मूलं एवं शिलांकाचार्य कृत् वृत्तिः
Jan Estation matinal
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समणे भगवं महावीरे इमाए ओसप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए बीइकंताए सुसमाए समाए बीकंताए सुसमदुस्तमाए समाए बीकंताएं दूसमसुसमाए समाए बहु विइकंताए पन्नहत्तरीए वासेहिं मासेहि य अद्धनवमेहिं सेसेहिं जे से गिम्हाणं चउत्थे मासे अट्ठमे पक्खे आसाढमुद्धे तस्स णं आसाढसुद्धस्स छट्ठीपक्खेणं हत्युत्तराहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं महाविजय सिद्धत्थपुप्फुत्तरवरपुंडरी यदिसासोवत्थियवद्धमाणाओ महाविमाणाओ वीसं सागरोवमाई आउयं पालइचा आक्खणं ठिक्खणं भवक्खणं चुए चइत्ता इह खलु जंबुद्दीवे णं दीवे भारहे वासे दाहिणडभरहे दाहिणमाहणकुंडपुरसंनिवेसंमि उसभदत्तस्स माहणस्स कोढाउसगोत्तस्स देवाणंदाए माहणीए जालंधरस्स गुत्ताए सीहुब्भवभूषणं अप्पाणेणं कुच्छिसि गर्भ वकते, समणे भगवं महावीरे तिन्नाणोवगए यावि हुत्था, चइस्सामित्ति जाणइ चुएमित्ति जाणइ घयमाणे न याणे, सुमेणं से काले पन्नत्ते, तओ णं समणे भगवं महावीरे हियाणुकंपणं देवेणं जीयमेयंविकट्टु जे से वासाणं तचे मासे पंचमे पक्खे आसोयबहुले तस्स णं आसोयबहुलरस तेरसीपक्खेणं इत्युत्तराहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागणं वासीहिं राईदिएहिं बघतेहिं तेसीइमस्स राईदियस्स परियाए बट्टमाणे दाहिणमाहणकुंडपुरसंनिवेसाओ उत्तरखत्तियकुंडपुरसंनिवेसंसि नावाणं खत्तियाणं सिद्धत्थरस खत्तियस्स कासवगुत्तस्स तिसलाए खत्रियाणीए वासिट्रुसगुत्ताए असुभाणं पुग्गाणं अवहारं करिता सुभाणं पुग्गठाणं पक्खेवं करिता कुच्छिसि गन्धं साहरइ, जेवि य से तिसलाए खत्तियाणी कुच्छिसि गमे तंपि य दाहिणमाहणकुंडपुरसंनिवेसंसि उस० को ० देवा० जालंधरायणगुत्ताए कुच्छिसि गमं साहरइ, समणे भगवं महावीरे तिम्राणोवगए यावि होत्था — साहरिजिस्सामित्ति जाणइ साहरिजमाणे न यागइ साह
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