Book Title: Aagam 01 ACHAR Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 799
________________ आगम (०१) “आचार" - अंगसूत्र-१ (मूलं नियुक्ति:+वृत्ति:) श्रुतस्कंध [२.], चुडा [१], अध्ययन [9], उद्देशक [१], मूलं [१४८], नियुक्ति: [३१५] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......आगमसूत्र-[०१], अंग सूत्र-[१] “आचार" मूलं एवं शिलांकाचार्य-कृत् वृत्ति: प्रत सूत्रांक हिय २ पमधिय २ तो सं० वत्थं आयाविज वा पया०, एवं खलु, सया जइब्यासि (सू० १४८) तिमि ।। २-१-५-१ ।। वत्थेसणस्स पढमो उद्देसो समत्तो । स भिक्षुरव्यवहितायां भूमौ वस्त्रं नातापयेदिति॥ किश्च-स भिक्षुर्यद्यभिकासयेद्वस्त्रमातापयितुं ततः स्थूणादौ चलाचले स्थूणाविवस्त्रपतनभयान्नातापयेत् , तत्र गिहेलुका-उम्बरः 'उसूयालं' उदूखलं 'कामजलं' स्नानपीठमिति ॥ स भिक्षुभित्ति शिलादी पसनादिभयाखं नातापयेदिति ॥ स भिक्षुः स्कन्धमञ्चकमासादादावन्तरिक्षजाते वस्त्रं पतनादिभयादेव Ixनातापयेदिति ॥ यथा चातापयेत्तथा चाह-स भिक्षुस्तद्वस्त्रमादाय स्थण्डिलादि प्रत्युपेक्ष्य चक्षुषा प्रमृज्य च रजोहरणा दिना सत आतापनादिकं कुर्यादिति, एतत्तस्य भिक्षोः सामग्यमिति ॥ पञ्चमस्य प्रथमोद्देशकः समाप्तः ॥२-१-५-१॥ [१४८] दीप अनुक्रम [४८२] उक्ता प्रथमोदेशकः, साम्प्रतं द्वितीयः समारभ्यते, अस्य चायमभिसम्बन्धः-इहानन्तरोद्देशके वस्त्रग्रहणविधिरमिहितस्तदनन्तरं धरणविधिरभिधीयते, इत्यनेन सम्बन्धेनायातस्यास्योदेशकस्यादिसूत्रम् से मिक्खू वा० अहेसणिलाई वत्थाई जाइज्जा अहापरिग्गहियाई वत्थाई धारिजा नो धोइला नो रएज्जा नो धोयरत्ताई वत्थाई पारिजा अपलिचमाणो गामवरेसु० ओमचेलिए, एयं खलु वत्थधारिस्स सामग्गिय ।। से मि० गाहावाकुलं पविसिउकामे सब धीवरमायाए गाहापाइकुल निक्वमिन वा पविसिज वा, एवं बहिय विहारभूमि का विधारभूमि वा गामाणुगाम वा ki मा. सू. wwwandltimaryam | प्रथम चूलिकाया: पंचम-अध्ययनं “वस्त्रैषणा", द्वितीय-उद्देशक: आरब्ध: ~798~#

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