Book Title: Aagam 01 ACHAR Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम (०१)
“आचार" - अंगसूत्र-१ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) श्रुतस्कंध [२.], चुडा [१], अध्ययन [७], उद्देशक -1, मूलं [१५४...], नियुक्ति: [३१८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......आगमसूत्र-[०१], अंग सूत्र-[१] “आचार" मूलं एवं शिलांकाचार्य-कृत् वृत्ति:
प्रत
श्रुतस्क०२ चूलिका १ अवग्र०७ उद्देशः १
सूत्रांक
[१५४]
श्रीआचा- त्रिविध एव, यदिवा ग्रामनगरारण्यभेदादिति, कालावग्रहस्तु ऋतुबद्धवर्षाकालभेदाद्विधेति ॥भावावग्रहप्रतिपादनार्थमाह- रावृत्तिः मइउग्गहो य गहणुग्गहो य भावुग्गहो दुहा होइ। इंदिय नोइंदिय अत्थर्वजणे उग्गहो दसहा ॥ ३१८॥ (सी०) टा भावावग्रहो द्वेधा, तद्यथा-मत्यवग्रहो ग्रहणावग्रहश्च, तत्र मत्यवग्रहो द्विधा-अथावग्रहो व्यञ्जनावग्रहश्च, तत्राथोंव
ग्रह इन्द्रियनोइन्द्रियभेदात् पोढा, व्यञ्जनावग्रहस्तु चक्षुरिन्द्रियमनोवर्जश्चतुर्धा, स एष सर्वोऽपि मतिभावावग्रहो दश- ॥४०२॥
धेति ॥ ग्रहणावग्रहार्थमाहगहणुग्गहम्मि अपरिग्गहस्स समणस्स गहणपरिणामो । कह पाडिहारियापाडिहारिए होइ? जइयव्वं ३१९ ।। _ अपरिग्रहस्य साधोर्यदा पिण्डवसतिवस्त्रपात्रग्रहणपरिणामो भवति तदास ग्रहणभावावग्रहो भवति, तस्मिंश्च सति 'कथं' केन प्रकारेण मम शुद्धं वसत्यादिकं प्रातिहारिकमप्रातिहारिक वा भवेदित्येवं यतितव्यमिति, प्रागुक्तश्च देवेन्द्राद्यवग्रहः पञ्चविधोऽप्यस्मिन् ग्रहणावग्रहे द्रष्टव्य इति ॥गतो नामनिष्पन्नो निक्षेपः, साम्प्रतं सूत्रानुगमे सूत्रमुचारणीयं, तवेदम्
समणे भविस्सामि अणगारे अकिंचणे अपुत्ते अपसू परदत्तभोई पावं कम्मं नो करिस्सामित्ति समुठ्ठाए सव्वं भंते ! अविनादाण पञ्चक्खामि, से अणुपविसित्ता मामं वा जाव रावहाणि वा नेव सयं अविन गिहिजा नेवऽनेहिं अविन्न गिहाविना अविनं गिण्हंतेकि भन्ने न समणुजाणिज्जा, जेहिवि सविं संपन्वइए तेसिपि जाई छत्तमं वा आव चम्मछेयणगं वा तेसिं पुवामेव उम्मगह अणणुनविय अपडिलेहिय २ अपमजिव २ नो उग्गिव्हिज्जा वा परिगिणिहज वा, तेसिं पुस्वामेव जग्गाई जाइज्जा अणुनविय पढिलेहिय पमज्जिय वमो सं० डम्मिडिल ब० ॥ (सू० १५५)
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दीप अनुक्रम [४८८]
RI|४०२॥
wataneltmanam
प्रथम चूलिकाया: सप्तम-अध्ययनं "अवग्रह प्रतिमा', प्रथम-उद्देशक: आरब्ध:
~809~#
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