Book Title: Aagam 01 ACHAR Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 802
________________ आगम (०१) “आचार" - अंगसूत्र-१ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) श्रुतस्कंध [२.], चुडा [१], अध्ययन [9], उद्देशक [२], मूलं [१५१], नियुक्ति: [३१५] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......आगमसूत्र-[०१], अंग सूत्र-[१] “आचार" मूलं एवं शिलांकाचार्य-कृत् वृत्ति: प्रत श्रीआचारावृत्तिः (शी०) सूत्रांक SC श्रुतस्क०२ चूलिका १ विखैप०५ व उद्देशः २ [१५१] दीप अनुक्रम [४८५] सममिकस्खसि मे वत्थं धारित्तए वा परिहरित्तए वा ?, थिरं वा संतं नो पलिच्छिदिय २ परिहविजा, जहा मेयं वत्थं पावगं परो मन्नइ, परं च णं अदत्तहारी पडिपहे पेहाए तस्स बत्थस्स नियाणाय नो तेसि भीमो उम्मग्गेणं गच्छिज्जा, जाव अप्पुस्मुए, तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइजिज्जा ।। से मिक्खू वा० गामाणुगाम दूइजमाणे अंतरा से विहं सिया, से जं पुण विहं जाणिजा इमंसि खलु विहंसि बहवे आमोसगा वत्वपडियाए संपिंडिया गच्छेजा, णो तेसिं.भीभो उम्मगोणं गच्छेज्जा जाब गामा० दूइजेजा ॥ से भि० दूइज्जमाणे अंतरा से आमोसगा पडियागच्छेज्जा, ते णं आमोसगा एवं वदेजा-आठसं०! आहरेयं वयं देहि णिक्खियाहि जहा रियाए णाणत्त्रं वत्थपडियाए, एयं खलु० सया जबजासि (सू० १५१) तिबेमि वत्सणा समत्ता ॥२-१-५-२ स भिक्षुर्वर्णवन्ति वस्त्राणि चौरादिभयानो विगतवर्णानि कुर्यात् , उत्सर्गतस्तादृशानि न ग्राह्याण्येव, गृहीतानां वा परिकर्म न विधेयमिति तात्पर्याधः, तथा विवर्णानि न शोभनवर्णानि कुर्यादित्यादि सुगममिति ॥ नवरं 'विह'ति अटवीप्रायः पन्थाः । तथा तस्य भिक्षोः पथि यदि 'आमोषकाः' चौरा वस्त्रग्रहणप्रतिज्ञया सभागच्छेयुरित्यादि पूर्वोक्तं यावदे| तत्तस्य भिक्षोः सामग्यमिति ।। पञ्चममध्ययनं समाप्तम् ॥२-१-५॥ ॥३९८॥ walpatnamang ~801~#

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