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आगम
(०१)
“आचार" - अंगसूत्र-१ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) श्रुतस्कंध [२.], चुडा [१], अध्ययन [४], उद्देशक [२], मूलं [१३८], नियुक्ति: [३१४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......आगमसूत्र-[०१], अंग सूत्र-[१] “आचार" मूलं एवं शिलांकाचार्य-कृत् वृत्ति:
श्रुतस्कं०२
प्रत
श्रीआचारावृत्तिः (शी०)
सूत्रांक
CCESCONSES.
चूलिका १ भाषा०४ उद्देशः २
[१३८]]
॥३९
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दीप अनुक्रम [४७२]
बजं जाव नो भासिजा ॥ से मिक्सू या भिक्खुणी वा मणुस्सं वा जाव जलयरं वा सेतं परिपूढकार्य पहाए एवं वइज्जा
-परिखूटकाएत्ति वा उपचिवकाएति वा थिरसंघयणेत्ति वा चियमंससोणिएत्ति वा बहुपडिपुन्नइंदिइएत्ति था, एयप्पगारं भासं असावज जाव भासिना ।। से मिक्खू वा २ विरूवरूवाओ गाओ पेहाए नो एवं बहना, तंजहा-गाओ दुमामोत्ति वा दम्मेत्ति वा गोरहत्ति वा बाहिमत्ति बा रहजोग्गत्ति वा, एयप्पगार भासं सावजं जाव नो भासिना ॥ से मि० विरूवरूवाओ गाओ पहाए एवं वइजा, तंजहा-जुबंगवित्ति वा घेणुत्ति वा रसवइत्ति वा हस्से इ वा महले इ वा महत्वएइ वा संवहणित्ति वा, एअप्पगारं भासं असावज आव अमिकस भासिज्जा ।। से भिक्खू वा० तहेव गंतुमुजाणाई पब्वयाई वणाणि वा रुक्खा महले पेहाए नो एवं वइजा, तं०-पासायजोग्गाति वा तोरणजोग्याइ वा गिहजोगाइ वा फलिहजो० अग्गलजो० नावाजो० उदग० दोणजो० पीढचंगबेरनंगळकुलियतलट्ठीनाभिगंदीआसणजो० सवणजाणउबस्सयजोगाई वा, एयप्पगारं नो भासिज्जा ।। से भिक्खू वा तहेव गंतु० एवं वइजा, तंजहा-जाइमंता इ वा दीहवटा इ वा महालया इ वा पयायसाला इ वा विडिमसाला इ वा पासाइया इ वा जाव पडिरूवाति वा एयप्पगार भासं असाबज जाव भासिज्जा ।। से भि० बहुसंभूया वणफला पेहाए तहावि ते नो एवं वइबा, तंजहा-पका इ वा पायखळा इ वा बेलोइया इ वा टाला इ वा वेहिया इवा, एयप्पगार भासं सावज जाव नो भासिजा ॥ से मिक्खू० बहुसंभूया वणफला अंबा पेहाए एवं बइजा, सं०-असंथबाइ वा बहुनिवट्टिमफला इ वा बहुसंभूया इ या भूवरुचित्ति बा, एयप्पगार भा० असा०॥से बहुसंभूया ओसही पेहाए तहावि ताओ न एवं वइजा, तंजहा-पवाद वा नीलीया इवा छवी
ACC
॥३९०
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