Book Title: Aagam 01 ACHAR Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 794
________________ आगम (०१) “आचार" - अंगसूत्र-१ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) श्रुतस्कंध [२.], चुडा [१], अध्ययन [9], उद्देशक [१], मूलं [१४५], नियुक्ति: [३१५] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......आगमसूत्र-[०१], अंग सूत्र-[१] “आचार" मूलं एवं शिलांकाचार्य-कृत् वृत्ति: श्रुतस्कं०२ चूलिका १ (शी०) बखैष०५ सूत्रांक [१४५] उद्देशः १ दीप अनुक्रम श्रीआचा-14 डकादिविभूषितानि अन्यानि वा तथाप्रकाराण्यजिनप्रावरणानि लाभे सति न प्रतिगृह्णीयादिति ॥ साम्प्रतं वस्त्रग्रहणारावृत्तिः भिग्रहविशेषमधिकृत्याह इइयाई आयतणाई उबाइकम्म अह भिक्खू जाणिज्जा चउहि पडिमाहिं वत्थं एसित्तए, तत्थ खलु इमा पढमा पडिमा, से मि० २ उदेसिय बत्थं जाइजा, तं०-जंगियं वा जाव तूलकडं बा, तह. वत्थं सयं वा ण जाइज्जा, परो० फासुयं० ॥३९४॥ पढि०, पढमा पडिमा १ । अहावरा दुचा पडिमा-से भि० पेहाए वत्थं जाइजा गाहावई वा० कम्मकरी वा से पुब्बामेव आलोइजा--आउसोत्ति वा २ दाहिसि मे इत्तो अन्नयरं वत्थं ?, तहप्प० वत्थं सयं बा० परो फासुयं एस० लाभे० पडि०, दुचा पडिमा २। अहावरा तथा पडिमा-से भिक्ख पा से जं पण तं अंतरिज वा उत्तरिजं वा सहप्पगारं पत्थं सयं० पडि०, तच्चा पडिमा ३ । अहावरा चउत्था पडिमा-से० उझियधम्मियं वत्थं जाइजा जंचऽन्ने बहवे समण वणीमगा नावकंसंति तहप. उज्झिव० वयं सयं० परो० फासुर्य जाव ५०, चउत्थापढिमा ४ ॥ इश्चेवाणं चउण्हं पडिमाणं जहा पिंडेसणाए । सिया णं एताए एसणाए एसमाणं परो वइजा-आउसंतो समणा! इजाहि तुमं मासेण वा दसराएण या पंचराएण वा सुते सुततरे वा तो ते वयं अन्नयरं वत्थं दाहामो, एयप्पगारं निग्धोसं सुच्चा नि० से पुवामेव आलोइज्जा-आउसोति वा! २ नो खलु मे कप्पइ एयप्पगारं संगारं पंडिसुणित्तए, अभिकंखसि मे दाउं इवाणिमेव दलयाहि, से णेवं वयंत परो बइज्जा-आउ० स०! अणुगच्छाहि तो ते वयं अन्न० वत्थं दाहामो, से पुल्यामेव आलोइज्जा-आउसोत्ति ! वा २ नो खलु मे कप्पइ संगारवयणे पडिसुणित्तएक, से सेवं वयंत परोणेया वइज्जा [४७९] ॥३९४॥ wataneltmanam ~793~#

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