Book Title: Aagam 01 ACHAR Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम (०१)
प्रत
सूत्रांक
[१२८ ]
दीप
अनुक्रम [6]
श्रीआचाराङ्गवृत्तिः (शी०)
॥ १८३ ॥
"आचार" अंगसूत्र - १ (मूलं निर्युक्तिः + वृत्तिः )
श्रुतस्कंध [२.], चुडा [१], अध्ययन [ ३ ], उद्देशक [३] मूलं [१२८ ], निर्युक्तिः [ ३१२] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..... आगमसूत्र - [०१], अंग सूत्र [०१] “आचार” मूलं एवं शिलांकाचार्य कृत् वृत्तिः
-
त्रद्वयमप्याचार्योपाध्यायैरिवा परेणापि रलाधिकेन साधुना सह गच्छता हस्तादिसङ्घट्टोऽन्तरभाषा च वर्जनीयेति द्रष्टव्यमिति । किच
से भिक्खु बा० दूइजमाणे अंतरा से पाडिवहिया उवागच्छिजा, ते णं पा० एवं बदला - आउ० स० ! अविवाई इत्तो पडिवहे पासह, सं० मणुरसं वा गोणं वा महिसं वा पसुं वा पक्खि वा सिरीसिवं वा जलबरं वा से आइक्खह इंसेह, तं नो आइक्खिज्जा नो दंसिज्जा, नो तस्स तं परिनं परिजाणिज्जा, तुसिणीए उवेहिज्जा, जाणं वा नो जाणंति व इज्जा, तओ सं० गामा० दू० ॥ से भिक्खू वा० गा० दू० अंतरा से पाडि० उवा०, ते णं पा० एवं वइजा आउ० स० ! अवियाई इत्तो पडिवहे पासह उदगपसूयाणि कंदाणि वा मूलाणि वा तथा पत्ता पुण्फा फला बीया हरिया उदगं वा संनिहियं अगणि या संनिखित्तं से आइक्खह जाव दूइज्जिज्जा | से भिक्खु वा० गामा० दूइजमाणे अंतरा से पाडि० उचा०, ते णं पाडि० एवं आउ० स० अवियाई इत्तो पढिबहे पासह जवसाणि वा जाव से णं वा विरूवरूवं संनिवि से आइक्लह जाब दूइजिना | से भिक्खु वा० गामा० दूइजमाणे अंतरा पा० जाब आउ० स० केवइए इतो गामे वा जाव रायहाणि वा से आइक्खह जाव दूइजिज्जा ॥ से भिक्खु वा २ गामाणुगामं दूइजेना, अंतरा से पाडिपहिया आउसंतो समणा ! केवइए इत्तो गामस्स नगरस्स वा जाब रायहाणीए वा मग्गे से आइक्खह, तहेब जाव दूइजिया || (सू० १२९) 'से' तस्य भिक्षोर्गच्छतः प्रातिपथिकः कश्चित्संमुखीन एतद्भूयात्, तद्यथा - आयुष्मन् ! श्रमण ! अपिच किं भवता पथ्यागच्छता कश्चिन्मनुष्यादिरुपलब्धः तं चैवं पृच्छन्तं तूष्णीभावेनोपेक्षेत, यदिवा जानन्नपि नाहं जानामीत्येवं
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श्रुतस्कं० २ चूलिका १ ईर्याध्य०३ उद्देशः ३
॥ ३८३ ॥
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