Book Title: Aagam 01 ACHAR Moolam evam Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 782
________________ आगम (०१) “आचार" - अंगसूत्र-१ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) श्रुतस्कंध [२.], चुडा [१], अध्ययन [४], उद्देशक [१], मूलं [१३४], नियुक्ति: [३१४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित......आगमसूत्र-[०१], अंग सूत्र-[१] “आचार" मूलं एवं शिलांकाचार्य-कृत् वृत्ति: प्रत श्रीआचारावृत्तिः (शी०) ॥३८८॥ सूत्रांक [१३४] * दीप अनुक्रम [४६८] एअप्पगार भासं सावजं सकिरियं जाव भूओवघाइयं अमिकंख नो भासिज्जा॥ से मिक्खू वा० पुमं आमंतेमाणे आम श्रुतस्कं०२ तिए वा अपडिसुणेमाणे एवं वइजा-अमुगे इ वा आउसोत्ति वा आउसंतारोत्ति वा साबगेत्ति वा उवासगेति वा ध चूलिका १ म्मिएत्ति वा धम्मपिएत्ति वा, एयप्पगारं भासं असावज जाव अभिकंख भासिजा ।। से भिक्खू वा २ इथि आमंतेमाणे भाषा०४ आमंतिए य अप्पडिसुणेमाणे नो एवं वइजा-होली इ वा गोलीति वा इत्थीगमेणं नेयध्वं ॥ से भिक्खू वा २ इत्विं उद्देशः १ आमंतेमाणे आमंतिए य अप्पतिसुणेमाणी एवं बइजा-आउसोत्ति बा भइणित्ति वा भोईति वा भगवईति वा साविगेति वा उवासिएत्ति वा धम्मिएत्ति वा धम्मप्पिएत्ति वा, एयप्पगारं भासं असावजं जाव अभिकख भासिज्जा ।। (सू० १३४) स भिक्षुः पुमांसमामन्त्रयन्नामन्त्रितं वाऽशृण्वन्तं नैवं भाषेत, तद्यथा-होल इति वा गोल इति वा, एतौ च देशान्तरेऽवज्ञासंसूचकी, तथा 'वसुले'त्ति वृषलः 'कुपक्षः' कुत्सितान्वयः घटदास इति वा श्वेति वा स्तेन इति वा चारिक इति वा मायीति वा मृपावादीति वा, इत्येतानि-अनन्तरोतानि त्वमसि तव जनको वा-मातापितरावेतानीति, एवं-18 प्रकारां भाषां यावन्न भाषेतेति ॥ एतद्विपर्ययेण च भाषितव्यमाह-स भिक्षुः पुमांसमामन्त्रयन्नामन्त्रितं वाऽशृण्वन्तमेवं यादू यथाऽमुक इति वा आयुष्मन्निति वा आयुष्मन्त इति वा तथा श्रावक धर्मप्रिय इति, एवमादिकां भाषा भाषे. तेति ॥ एवं त्रियमधिकृत्य सूत्रद्वयमपि प्रतिषेधविधिभ्यां नेयमिति ॥ पुनरप्यभाषणीयामाहसे भि० नो एवं वइजा-नभोदेवित्ति वा गजदेवित्ति वा विज्जुदेवित्ति वा पवुडदे० नियुट्ठदेवित्तए वा पडत चा वास ॥३८८ मा वा पडउ निष्फजउ वा सस्सं मा वा नि० विभाउ वा रयणीमा वा विभाउ उदेउ वा सूरिए मा वा उदेउ सो वा wataneltmanam ~781~#

Loading...

Page Navigation
1 ... 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861 862 863 864 865 866 867 868 869 870 871