Book Title: Aadhunik Vigyan Aur Ahimsa
Author(s): Ganeshmuni, Kantisagar, Sarvoday Sat Nemichandra
Publisher: Atmaram and Sons

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Page 5
________________ चार शब्द आज का युग विकास के मोड पर है। उन्नति और विकास को ध्वनियाँ चारों ओर से सुनाई पड़ती है। पर मानव यह नहीं सोच पा रहा है कि उन्नति किसकी और उसके उपाय क्या है ? क्योकि जब तक योजनाबद्ध मुनियन्त्रित विकास पथ का अनुसरण न किया जाएगा तब तक उन्नति के शिखर पर चरण स्थापित नही किये जा सकते। आज बौद्धिक दक्षता और शोधन विधि के विकास तक ही उन्नति सीमित है और प्राकृतिक प्रसुप्त शक्तियो के अन्तर्रहस्यो को जानकर मानव-समाज को सुख, शान्ति और समृद्धि की ओर गतिमान करना ही विकास या मानवोन्नति समझी जाती है । विज्ञान इसी की परिणति है। पर यही हमारा साध्य नहीं है। जीवन के नित नूतन के प्रति आस्थावान रहते हुए भी स्थायी जगत के प्रति उसका केन्द्र विन्दु लक्षित होना चाहिए । भौतिक या अस्थायी जगत की क्रान्तिपूर्ण स्थिति आन्तरिक जगत को जहाँ तक पालोकित या प्रभावित करती है, वही तक इसकी उपयोगिता है। केवल दृश्य जगत की ओर अधिक नैष्ठिक जीवन और साम्पत्तिक विकास भविष्य के लिए क्या दृष्टि छोड जाता है, यह विचारणीय प्रश्न है । सुख-सुविधाओ की अभिवृद्धि और सामाजिक शान्ति विज्ञान द्वारा प्राथमिक रूप से अनुभव मे आने लगी, तव मानव अानन्द का अनुभव करता था। ज्यो-ज्यो वैज्ञानिक साधनों का प्राचुर्य अपनी चमत्कृति से विश्व को पाश्चर्यान्वित करता रहा, त्यो-त्यों ससार इसके प्रति अधिक आकृष्ट हुया जैसे अन्तिम लक्ष्य का यही एकमात्र स्वर्णिम या शाश्वत पथ हो । आगे चलकर विज्ञान की सर्वोच्च संहार शक्ति की भीपणता से मानवता कराह उठी और अनुभव किया जाने लगा कि मूचित उन्नति गक्ति पर अकुश की आवश्यकता है ताकि संहार शक्ति को सृजन की ओर मोडा जा सके। मानवता का इसी मे कल्याण है। विकास और उन्नति बडे सुन्दर शब्द है पर कभी-कभी निरंकुग गति से सकट का सामना भी करना पड़ता है। केवल भौतिक विकास भले ही

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