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मण्याष ]
दो दिन से दो सप्ताह कम होती है। यह स्वाभाविक है कि अणुव्रत में मिलावट छोड़ देने से मेरे मित्र के कहने के अनुसार उसको कमाई पहले जैसी नहीं होती। अणुव्रती बनने से पूर्व वह मित्र यह सब जानता था।
यह हो सकता है कि अणुव्रतों के बारे में मेरा अध्ययन केवल ऊपर-ऊपर का ही हो, किन्तु मैं विदेशी के साथ मैत्री करने से अवश्य लाभान्वित हुआ हूँ। एक प्रसंग ऐसा बना, जिससे मैं हाँसी को कभी नहीं भूल सकता। केवल एक रुपये के बारे में बात थी। मैं प्रतिदिन एक दुकानदार के पास से सिगरेट खरीदताथा । मैं जो सिगरेट पीता था, उस प्रकार की गाँव में और कोई नहीं पीता था। मुझे सड़क पर सिगरेट पीने में भी लज्जा का अनुभव होता था। उस सिगरेट की बीमत उस दुकान पर लिखी हुई थी। मैं जब उसके लिए पैसा देने लगा, तब उस दुकानदार ने बहुत ही नम्र भाषा में मेरे से पैसा लेने से इन्कार किया । यदि गर्मी के दिनों में मुझे किसी होटल पर टंडा लेमन पिलाया जाता, तो उसको भी मुझे, भेंट रूप में ही स्वीकार करना होता।
अणुव्रत के नियम बहुत ही सरल है । क्योंकि वे अणु यानी छोटे-छोटे व्रत है। प्राचार्यश्री व्रत लेने के लिए किसी पर भी दबाव नहीं डालते। अपने प्रवचनों में वे अनुयायिओं को उपदेश देते है कि यदि वे पारलौकिक सुख चाहते हैं तो उन्हें पाग करने से डरना चाहिए। जब वे बुराइयों को छोड़ने की प्रतिज्ञा करते है, तब ही प्राचार्यश्री प्रसन्न होते हैं । जो ४६ व्रतों को पालन करने की प्रतिज्ञा करता है, वही पूर्ण प्रणवती हो सकता है।
प्राचार्यश्री के अधिकांश अनुयायी व्यापारी हैं। आचार्यश्री अणुव्रतों के बारे में उनके साथ घण्टों तक उत्माहपूर्वक चर्चाएं करते हैं । उस चर्चा में वे लोग इतने जल्दी-जल्दी बोलते थे कि मुझे उनकी बात का कुछ पता नहीं चलता था। किन्तु जब भी वे लोग ब्नंक मारकेट शब्द का प्रयोग करते थे, मुझे पता चल जाता था; क्योंकि प्रायः भारतीय लोग बातचीत में अंग्रेजी शब्द ब्लैक मारकेट का प्रयोग करते है। ये व्यापारी लोग अपने व्यापार-सम्बन्धी कागजात प्रादि माय लेकर प्राचार्यश्री के पास आये और वे प्राचार्यश्री को यह बताना चाहते थे कि बिना कालाबाजार आदि अनैतिक कार्य किये यदि वे व्यापार करतो, निश्चित ही उनका दीवाला निकल जाये । प्राचार्यश्री ने उनकी सब बातों को ध्यान में मुना, उन कागजातों को ध्यान से देखा और उनके मुनाफा और घाटा सम्बन्धी सब बातों को सुना । अन्त में तो वे अपनी मांग पर निश्चल ही रहे कि व्यापारियों को अनैतिक व्यापार को छोड़ना चाहिए। इस प्रकार से चर्चा के बाद में सभी व्यापारी कालाबाजार प्रादि को पूर्ण रूप से छोड़ने के लिए तो नंयार नहीं हुए, किन्तु बहुत से व्यापारियों ने थोड़ी हटके साथ में नियम लिए कि
मै अनैतिक व्यापार को अमुक मर्यादा से अधिक नहीं करूगा। मैं रिश्वत नहीं लूंगा। मैं झूठे खाते नहीं रग्डूंगा। मैं समाहित हो गया था कि वे लोग इन नियमों को अच्छी तरह से पालगे।
इसके बाद प्राचार्यश्री ने मुझसे कहा-मैं चाहता हूँ कि लोग संयम को अपनायें । अणुव्रत आसानी से अपनाये जा सकते हैं । इन व्रतों का नाम अणुवत इसलिए रखा है कि हमे अणुबम के साथ लड़ना है और उससे सम्बन्धित सभी बुराइयों से लड़ना है। यदि थोड़े लाख व्यक्ति भी अणुवती बन जाये तो यह वैज्ञानिक सफलता-अणुबम के भय को नष्ट कर देगी।
इस पर मैंने पूछा-क्या आपका उद्देश्य राजनैतिक है। उन्होंने उत्तर दिया-नहीं, हमारा उद्देश्य केवल धार्मिक है। गांधीजी महात्मा भी थे और राजनैतिक नेता भी । मैं केवल एक महात्मा बनना चाहता हूँ।
___ मैंने उनसे प्रात्मा, परमात्मा, पुनर्जन्म जैसे दार्शनिक प्रश्न पूछे व कुछ उनके वैयक्तिक जीवन तथा उनके साधु संघ के बारे में भी जिज्ञासाएं की। उन्होंने मेरे प्रत्येक प्रश्न व जिज्ञासा का अत्यन्त मधुरता के साथ समाधान किया। मुझे भय था कि कहीं प्राचार्यश्री को मैंने नाराज तो नहीं कर दिया। मेरे लम्बे-लम्बे प्रश्न जो कि मैंने उनके पवित्र जीवन को जानने की दृष्टि से पूछे थे, मूल विषय से काफी दूर थे और मेरे तुच्छ उत्साह को प्रकट करने वाले थे, उनसे शायद वे नाराज हो गये हों। फिर भी उन्होंने उस प्रकार का कोई भी भाव व्यक्त नहीं किया, प्रत्युत मेरे