Book Title: Aacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Author(s): Tulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
Publisher: Acharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti

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Page 279
________________ अध्याय 1 अग्नि-परीक्षा एक [ २६५ पर हुआ है। धर्म-भावना काव्य के नीर में ही क्षीर की तरह सम्मिधित हो गई है। यह ऊपर से मारोपित अनुभव नहीं होती हो, अलंकार-विधान के अन्तर्गत जैन धर्म के सिद्धान्तों एवं दार्शनिक तथ्यों का स्थान-स्थान पर उल्लेख हुआ है। महाकवि तुलसीदास ने भी नैतिक एवं दार्शनिक तथ्यों का निरूपण इसी प्रकार उपमानो के रूप में यथाप्रसङ्ग किया है। यथा - "बूंद प्रघात सहे गिरि कैसे, खल के वचन सन्त सह जैसे ।" 'अग्नि परीक्षा' में प्राचार्यश्री तुलसी ने परम्परागत एवं रूड़ उपमानों का परित्याग कर अपने अलंकार-विधान को कहीं-कहीं जैन दर्शन की तात्विक मान्यताओं पर भाषारित किया है। इससे जहाँ अलंकार- विधान में एक प्रकार की नवीनता और विलक्षणता का समावेश हुआ है, वहाँ एकाध स्थान पर दुर्बोधता भी श्रा गई है। कुछ पंक्तियाँ तो वास्तव में बड़ी ही चामत्कारिक एवं अनुरञ्जनकारी बन पड़ी हैं। लक्ष्मण राम से कहते हैं : अभवी मुक्त बने तो भी कभी न अलोक में चाहे पुद्गल दौड़े। चता भाभी घटन पतिव्रत तोड़े शोभित म की गोद में दोनों पुष्य निधान । होते क्यों चारिष्य में सभ्य बनान कहीं-कहीं गूढ़ दार्शनिक सिद्धान्त पर प्राधारित होने के कारण उपमान दुर्बोध हो गए है, परन्तु जैन-दर्शन की सामान्य मान्यताओं से परिचित पाठकों के लिए ये रसपूर्ण ही सिद्ध होंगे। यथा : स्वल्प-सी भी वृष्टि होती, सिद्ध प्रत्युपयोगिनी, सजग मुनि को किया संवर- निर्जरा संयोगिनी । भारतीय साहित्य में तो वैद्यक, गणित और ज्योतिष शास्त्र से भी उपमानों का चयन करने की प्रवृत्ति रही है, यतः प्राचार्यश्री तुलसी का यह अलंकार-विधान कुछ नवीनता और विलक्षणता लिए हुए होने पर भी अप्रतीत्व दोष का योतक नहीं है। लोक-जीवन के निकट सम्पर्क में रहने के कारण प्राचार्यश्री तुलसी ने अग्नि परीक्षा में मुहावरों और लोकोक्तियों का भी प्रचुरता से प्रयोग किया है। मुहावरेदानी की दृष्टि से 'अग्नि परीक्षा' खड़ी बोनी के किसी भी काव्य से टक्कर ले सकती है। 'कामायनी' में तो जैसे मुहावरों का अकाल ही है । कुछ मुहावरे और लोकोक्तियाँ सहज ही हमारा ध्यान आकृष्ट करती हैं. १. पूर्ण भर कर घड़ा जैसे फूटता है पाप का । २. चढ़े और पैदल दोनों की लोक मजाक उड़ाते । ३. एक गुफा में दो-दो मृगपति, एक म्यान में दो तलवार । ४. भर बूंद-बूंद से घड़ा, बड़ा वह देश-राष्ट्र निर्माता है । कहीं-कहीं भाषा का सहज सरल प्रवाह ही बड़ा प्रभावकारी बन गया है। यथा सेना है या लाए हो, भाड़े के पकड़-पकड़ रंगरूट, केवल भगना ही सीखे, ये मानो रेगिस्तानी ऊंट प्रकृति-वर्णन को 'अग्नि-परीक्षा' में प्रमुखता तो प्राप्त नहीं हो सकी है, परन्तु जहाँ कहीं प्राचार्यश्री तुलसी ने प्रकृति की ओर दृष्टिपात किया है, उन्होंने कुछ बिम्बग्राही चित्र उपस्थित करने में सफलता प्राप्त की है। कुछ स्थल तो निराला की 'राम की शक्ति पूजा' के 'उगलता गगन घन अन्धकार' का स्मरण कराते है। प्रकृति वर्णन प्रायः सर्वत्र कथाप्रवाह को पूर्व-पीटिका देने के लिए ही उपयुक्त हुआ है। परन्तु सधी हुई कलम से दो-चार रेखाओं में ही जो चित्र अंकित किए गए हैं, वे हमारे सम्मुख पूर्ण चिम्ब उपस्थित करने में समर्थ हैं अभ्र, प्रबनी, सर-सरोव्ह, बान्त शान्त नितान्त थे, सरित्सागर याद रह-रह हो रहे थे।

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