Book Title: Aacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Author(s): Tulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
Publisher: Acharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti

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Page 294
________________ २८. 1 भाचार्यश्री तुलसी अभिनन्दन अन्य [ प्रथम भरत का राज्य-वर्णन करते हुए षड्ऋतुओं का वर्णन भी अत्यन्त मनोहर है। यह वर्णन परम्परानुसार ही हुमा है। रात्रि एवं प्रभात का संक्षिप्त वर्णन केवल भरत की चिन्ता के प्रसंग में हुमा है। इस समस्त प्रकृति-चित्रण में प्रसाद गुण पूर्णत: परिव्याप्त है । इन स्थलों पर निर्माता की प्रकृति-प्रियता का पर्याप्त प्रकाशन हुआ है। नगरी एवं जनपद-वर्णन में वनिता (साकेत, अयोध्या) एवं तक्षशिला का वर्णन तथा वाह्रीक देश का वर्णन और इनके साथ ही साथ भरत एवं बाहुबली के राज्य का वर्णन भी अत्यन्त रोचक है। युद्ध-वर्णन में भरत एवं बाहुबली का सैन्य युद्ध और अन्त में उनका दृष्टि, नाद, भुज एवं दण्ड का चतुर्विध युद्ध बड़ा ही कुतूहलवर्धक एवं प्राण-प्रेरक है। इन वर्णनों में परम्परा को कहीं भी परित्यक्त नहीं किया गया है, परन्तु सन्त कवि को अपनी शैली कहीं भी मन्द एवं लुप्त नहीं होने पाई है। इस प्रकार इस काव्य का भाव एवं कलापक्ष अत्यन्त उज्ज्वल एवं उदात्त है । इसका सन्देश है जगत्प्रपंच से विमुख होकर तपस्या एवं साधना द्वारा मुक्ति प्राप्त करना, जैसा कि पहले कहा जा चुका है। वास्तव में यह काव्य जहाँ ज्ञानपिपासुओं के लिए उपादेय है वहाँ साहित्य-मर्मज्ञों के लिए भी ग्राह्य है। प्राचार्य तुलसी ने दोनों ही वर्ग के व्यक्तियों के लिए एक अमूल्य देन दी है। निश्चय ही यह ग्रन्थ मध्येतामों के लिए एक महान् निधि का कार्य करेगा। RE LKE. ( . THI -

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