Book Title: Aacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Author(s): Tulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
Publisher: Acharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti

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Page 288
________________ २७४ ] पाचायची तुलसी अभिनन्दन प्राय [प्रथम गान किया है, किन्तु ये गुण भी महापुरुषोचित सीमा से बहिर्भूत नहीं है। श्रीकालगणी के सभी कार्य एक महान् पुरुष के हैं। अपनी तपश्चर्या, अपने ज्ञान, अपनी धर्म-श्रद्धा और अपने चारित्र्य द्वारा उन्होंने वह स्थान प्राप्त किया है, जिनका अनुसरण सबके लिए श्रेयस्कर है। प्राचार्य तुलसी ने उनका यशोवर्णन कर द्वितीय उल्लास के अन्त में निर्दिष्ट अपने लक्ष्य की सुचारू रूप से सिद्धि की है । तेरापंथ समाज के विषय में जो अनेक भ्रान्तियाँ जनमानस में रूढ़ हो चुकी हैं, उनके समूल उच्छेद के लिए कुठारवत् और भव्यजनों के हृदय कमलों को विकसित करने के लिए सदा चराचर स्फूर्तिदायी सविता के रूप में वर्तमान रहते हुए यह काव्य यशोनिःस्पृह प्राचार्य तुलसी के यश का भी स्वभावतः सर्वत्र प्रसार करेगा। 4 . 1 . E

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