Book Title: Aacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Author(s): Tulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
Publisher: Acharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti

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Page 260
________________ प्राचार्यको तुलसी अभिनन्दन अन्य अंगूठा बृहस्पति की उँगली से अधिक दूरी पर खुलता है। दृढ़ निश्चय और पात्मविश्वास का प्रेरक है। हृदयरेखा और मस्तिष्क रेखा दोनों समानान्तर होकर कम दूरी पर हैं। ऐसा व्यक्ति तब तक दृढ़ रहता है। जब तक अपने निश्चय पर नहीं पहुंच जाता है। वितना ही समय लगे, अपने लक्ष्य पर पहुंचकर ही विश्राम लेता है। हृदय रेखा में द्वीप है और वह सूर्य के पहाड़ तक मोटी है। वायु विकार हृदय को भी प्रभावित करेगा। यह स्थिति विशेषतया वृद्धावस्था में होगी। हृदय रेखा से ३६, ३७, ४३, ४४, ५५ और ५६वें वर्ष में शाखाएं निकल कर मस्तिष्क रेखा पर पाई है। ये तीनों रेखाएं संघर्ष सूचक हैं । उक्त अवधि में संघ-सम्बन्धी या स्वास्थ्य-सम्बन्धी चिन्तामों का योग है। बृहस्पति के स्थान पर X का निशान है । यह प्रतिष्ठासूचक होने के साथ मस्तिष्क में भारीपन रखने वाला मस्तिष्क रेखा बृहस्पति के स्थान से निकल कर शाखान्वित होती हुई मंगल के स्थान की ओर चली है । जीवन रेखा से अलग होते हुए भी कुछ सटी हुई है । साहित्य में चतर्मुखी प्रतिभा देगी, सूक्ष्मातिमूक्ष्म कार्य के सम्पादन की क्षमता व निर्णायक बुद्धि होगी। हृदय रेखा और मस्तिष्क रेखा समानान्तर हैं । सूर्य, शनि और बृहस्पति पर भाग्य रेखा का होना इस बात को प्रमाणित करता है कि किसी नई शैली से पहिसक क्रान्ति करेंगे। कुछ एक लोग अपनी संकीर्ण भावनाओं के कारण प्रापका विरोध करेंगे। किन्तु अन्त में वे ही लोग आपके उद्बोधन को स्वीकार करेंगे। पहले-पहल वे लोग पाप पर प्राडम्बर-प्रियता, निरंकुशता आदि के आरोप भी लगाएंगे। यह सब होते हुए भी प्राप पूर्ण निष्ठा के साथ अपने गन्तव्य की ओर बढ़ते रहेंगे। भाग्य रेखा और सूर्य रेखा का विशेष उदय २२वें वर्ष से होता है। उसी समय से आपका जीवन लोक सेवा के दायित्व को उठा कर चल रहा है। मस्तिष्क रेखा के प्रारम्भ में द्वीप है और वह मोटा है। जब भी शारीरिक कष्ट होगा जोर से होगा।

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