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पाचागो तुलसी अभिनन्दन पन्य
[प्रथम
को नियन्त्रित करने में समर्थ बन जाते हैं और अपना गौरव स्थिर रख सकते हैं। विकारी-विचारों पर उनके कोमल मन की तात्कालिक प्रतिक्रिया होना स्वाभाविक है तथापि नीच राशि के गुरु के उच्चांश में नवम स्थान में स्थित होने के कारण उनकी व्यावहारिक बुद्धि उस पर प्रभुत्व पा लेती है। यही गुरु, जो सहज विरोष जागृत करता है, वही उनके व्यक्तित्व में प्रभाव प्रेरित करने वाला अंश बली होकर बन गया है । उनका ज्ञान यद्यपि शिक्षा-क्षेत्र में सीमित रहे, परन्तु उच्चांश में गए हुए नवमस्थ गुरु को पंचम पूर्ण दृष्टि होने के कारण उनकी अन्तः प्रज्ञा का प्रेरक मन गया है और व्यापक योग्यता के साथ उनमें मौलिकता को विकसित करने में सहायक बन जाता है। इसी नीच राशि (एवं उच्चांश) के गुरु ने तथा शनि ने इन्हें परिवार से विरक्त बनाया, किन्तु विरक्ति में भी परिवार की निकटता प्रदान की है। बुध-चन्द्र युति परस्पर विरोधी मिलन है। किन्तु यह मिलन जन्म में ही नहीं, ठेठ नवांश तक अपना सह-अस्तित्व रखती है। इसलिए अपनों से, सहवगियों से और अन्यजनों से भी जीवन-भर परस्पर-विरोध की स्थिति में से गुजरना होगा और सतत जागरूक रहने को बाध्य बनना पड़ता है। किन्तु चन्द्र भी अपने उच्चांश में स्थित है । इसलिए जितना उच्च विरोध हो, उतना ही उच्च वर्ग मित्र भी बनता है। बुध-चन्द्र की प्रांशिक युति भी पारस्परिक बिरोध के सहअस्तित्व की जनक बन गई है। साथ ही विरोध में प्रभावोत्पादक बन रही है।
शुक्र बुध-चन्द्र की स्थिति जहाँ संयमित, गम्भीर और प्रभावशाली व्यक्तित्व की निर्मात्री है, वहां रस-विलास, साहित्य, कला, काव्य रस में प्रावीण्य प्रदान करती है। कला और सौन्दर्य में अभिरुचि बढ़ाती है।
नवांश में बुध-चन्द्र योग सप्तम स्थान में हो जाने तथा सूर्य-इष्ट-प्रभावित होने के कारण गार्हस्थ्यहीन होना साहजिक होता है। परन्तु बुध-चन्द्र संयोग में उच्चांश स्थित चन्द्र क्लीब बुध के सहवास के कारण विलासी प्रवृत्ति को विकसित नहीं होने देता, संयमित, सोमित, मर्यादित बना देता है। शुक्र के कारण व्यवहार नैपुण्य, योग्य शिष्यों का व्यवस्थित सहयोग प्राप्त होता है तथा कठिन स्थितियों में से भी ऊपर उठने में सहायता मिलती है, अवश्य ही कुछ निकटवतियों के व्यवहार और कार्यों से वातावरण में निष्कारण शंका का प्रसार होता हो, पतनोन्मुख परिस्थितियों में गुरु के द्वारा गौरव-रक्षा होती है । गुरु के कारण ही आध्यात्मिक नेतृत्व उपलब्ध होता है।
इस समय सं० २०१६ से तुलसीजी को केतु-दशा प्रारम्भ हुई है। केतु लग्न में है। यह दशा संवत् २०२३ तक रहेगी। इसमें प्रारम्भिक काल संतोषप्रद नहीं कहा जा सकता । २०१७ से २०१८ का शुक्रान्तर-काल प्रतिष्ठा, यश, ख्याति और उत्थान में सहायक बनता है। १४ जनवरी, ६२ से ७ मास का काल कला-रस-विलास और साहित्य-प्रवृत्तियों के साथ प्रतिष्ठा का रहेगा। मंवत् २०१६ के भाद्रपद से एक वर्ष शारीरिक चिन्ता और मानसिक चिन्ता का कारण हो सकता है तथा संवत् २०२० के माघ मे ११ मास का समय संघर्ष एवं कसौटी का रहेगा, अपने ही जनों मे असंतोष व प्रशान्ति का अवसर प्रायेगा। आगे २०२३ तक की यह दशा उपयोगी रहेगी।
१८ फरवरी, ६२ से प्रायः उदर-विकार, प्रवास में श्रम और प्रात्म-परिजनों के व्यवहारों से मनस्ताप एवं स्पर्धा की परिस्थिति रहेगी।
यह स्पष्ट है कि इस कुण्डली के जिन ग्रहों के तत्वों से पोषित होकर तुलसी का जन्म हुमा है, वह उनके व्यक्ति-विकास में बहुत सहायक हुमा है। सीमित क्षेत्र से उन्हें व्यापक बनाने में उनके उच्चांश भोगी-नीच राशि गतगुरु ने बहुत सहायता की है। यह गुरु नवांश में इतना सबल न बना होता तो सम्भव है कि उनका विरोधी वातावरण चिन्तनीय बन जाता, किन्तु गुरु के सबल हो जाने से ही उनका विरोध भी उन्हें ऊपर उठाने में सहायक बनता रहा है और उन्हें गौरव प्रदान करता रहा है।
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