Book Title: Aacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Author(s): Tulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
Publisher: Acharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti

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Page 264
________________ २५. ] प्राचार्यश्री तुलसी अभिनन्दन अन्य शाखा भी कहीं-कहीं पाकर मिली दीखती है। यह ऊपर लिखा वर्णन अल्प समय में किये गये हस्त-दर्शन के माधार पर है। चौकोर हाथ एवं मुलायम समुन्नत लाल गलाबी रंग की हथेली जिसकी लम्बाई एवं चौड़ाई समान-सी है और अंगुलियाँ भी हथेली के बराबर हैं, इस बात की द्योतक हैं कि इनमें अपूर्व चरित्र-बल, बहस करने की प्रबल शक्ति है, सन्तुलित स्वभाव है, परिवर्तनशील हैं और निरन्तर कार्य में संलग्न रह कर विजयश्री प्राप्त करने के लक्षण है। छोटी तर्जनी निरभिमान की सूचक है। मध्यमा प्रबुद्धता, चिन्तनशील, उद्योगी एवं धार्मिक पुरुष की परिचायक है। अनामिका से कलाकार, कवि एवं सामाजिक चेतनावान् मानव का परिचय मिलता है। प्रथम पेरवा लम्बा होना कवि होने की पुष्टि करता है। कनिष्ठा रचयिता एवं व्याख्यता की प्रतीक है और इसकी दूरी अनामिका से जो स्थित है, वह यह बतलाती है कि यह मानव अपने कर्म में पूर्णरूपेण स्वतन्त्र है। उपरोक्त अंगुस्त विभिन्न विचारों का समावेश, प्रखर बुद्धि, समन्वय शक्ति एवं उदारमना का द्योतक है। प्रथम पेरवा जहाँ सम्पूर्ण प्रात्म-बल को बतलाता है, वहीं दूसरा पेरवा सुदृढ़ साधारण ज्ञान (Common sense) एवं प्रबल कर्म शक्ति एव तर्क शक्ति का परिचायक है । कटि बाला अंगुम्त कुशल राजनीतिज्ञ एवं नेता होने का संकेत करता है। गुरु स्थान पर तारा का चिह्न गरु पद एवं विश्व-विश्रुन विभूति का द्योतक है। शनि स्थान पर जो रेखा खड़ी है एवं V का चिह्न है, वह माता से विशेष स्नेह होने का परिचय देता है । जीवन शक्ति रेखा से मध्यमा के पास रेखा गई है, वह विरक्ति (Renunciation) रेखा है जो मंसार मे उदासीन कर विरक्त बनाने में सहायक होती है। शनि का समुन्नत स्थान दार्शनिक, कुछ एकान्त प्रेमी एवं संगीत की अभिरुचि का होना प्रकट करता है। ऐसा मूर्य स्थान बहुश्रुत, यशस्वी एवं विवेकी होना जाहिर करता है । मूर्य रेखा से बुध की ओर जाने वाली रेखा रचयिता एवं व्याख्याता की द्योतक है। बुध स्थान एवं उस पर खड़ी रेखाएं कुशल मनोवैज्ञानिक, विज्ञानवेत्ता, विलक्षण बुद्धि वाला एवं सुन्दर वक्ता होने का परिचायक है। मंगल स्थान एवं उनसे सूर्य की ओर जाने वाली रेखाए महा पराक्रमी, उत्कृष्ट साहसी, हिमालय-सा अडिग, शत्रु पर हिमक वृत्ति मे सदा विजय पाने वाला एवं परम सहिष्णु होने की द्योतक है। उपरोक्त चन्द्र स्थान तीव कल्पना-शक्ति वाला एवं सिरजनहार का सूचक है। शुक्र स्थान सद्भावनाओं का सम्मान करने वाला एवं संगीतज्ञ के गुण बतलाता है। जीवन-शक्ति रेखा से गुरु स्थान में जाने वाली रेखा प्रतिभा प्रदान करने वाली है । अंगुस्न के दूसरे पेरवे में जो ताग का चिह्न है, वह प्रानन्दयोग का सूचक है। अधिक महत्त्वपूर्ण रेखा मस्तिष्क की है जो प्रबल प्रात्म-विश्वास, कल्पना एवं यथार्थता के सामंजस्य, न्यायी, मुनीतिवान्, गुत्थियों को सहज मुलझाने की शक्ति की सूचक है । त्रिशूलाकार सुयश, सौभाग्य, अन्तिम सिरा गरता उसका ऊपर उठना अद्भुत वाक्-शक्ति का द्योतक है। साथ-ही-साथ स्थिर बुद्धि एवं प्रवाह में नही बहने वाले मस्तिष्क की कल्पना कराता है। हृदय-रेखा कुशाग्र बुद्धि, यश एवं प्रादर्शवादी की सूचक है। भाग्य-रेखा पूर्वजों की सम्पदा प्राप्त होने की सूचना देती है और गुप्त स्थान निहित है, ऐसा बतलाती है और मस्तिष्क के विशाल एवं व्यापक होने की परिचायक है। सबसे महत्त्वशाली सूर्य रेखा है जो सर्वांगीण सफलता, बहुश्रुत, अनेक ज्ञान, परम यश, प्रबल वाक्-शक्ति तथा विश्व-विभूति की घोतक है। यह इक्कीस, बाईस वर्ष की आयु के पास भाग्य रेखा में निकलती है जो भाग्योदय का समय बतलाती है। फिर चौबीस वर्ष की प्रायु के पास इससे निकलने वाली एक रेखा जो बुध की ओर बढ़ना चाहती है, वह ज्ञानवद्धि, राजनीति एवं विद्या विकास होना प्रकट करती है। तेतीस वर्ष की आयु के पास एक सूर्य रेखा और निकलती है जो सीधी सूर्य स्थान को गई है। नवीन जन-क्रान्ति द्वारा विमल यश व सफलता की सूचक है। इससे मानवता से देवत्व की ओर प्रगति होगी, ऐसी सूचना मिलती है। लम्बा अंगस्त, जो नीचे स्थित है और निराला कोण लिये हा है, निगूढ़तम दार्शनिक, सिद्धान्तवादी, नीतिवान्, उच्च कोटि का न्यायी होना प्रकट होता है। जीवन-शक्ति की पूरी रेखा है, दोष रहित है जिसमे सुस्वारथ्य की कल्पना है और इसके साथ दूसरी जीवन रेखा चली है जिससे जीवन को बल मिलता है। स्थान-स्थान पर जीवन-शक्ति रेखा मे सिट्टे की नाई जो भाग्य रेखाएं निकली है, वे उस समय की उन्नति एवं प्रतिभा की सूचक हैं । मस्तिष्क रेखा से बृहस्पति की ओर रेखा का बढ़ना सुयश की वृद्धि बतलाती है और हृदय रेखा से बुध की पोर रेखा का जाना ज्ञान-विकास की सूचक है । पेरवो में जो खड़ी रेखाएं है, वे व्यवहार-कुशल होने की प्रतीक है और इनसे बुद्धि एवं चतुराई को बल मिलना कहा जाता है।

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