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एक सामुद्रिक अध्ययन
श्री जयसिंह मुणोत, एडवोकेट
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विश्व के प्रांगण में कई सभ्यताएं आई, सिर ऊँचा किया और नष्ट हो गई। कितने ही राष्ट्र आगे आये, किन्तु टिके नहीं। कई संस्कृतियाँ चमकी, लेकिन विस्मृति के मंचल में सिमिट गई। उन सभ्यताओं राष्ट्रों एवं संस्कृतियों के विकास एवं विनाश का जो इतिहास है. वह सामने है। राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक एवं बौद्धिक तथा अन्य आघातों ने उनके भव्य प्रासादों को चकनाचूर किया और उनके खंडहरों पर धूल बिछाई, किन्तु उन प्रहारों की सबन चोटें खाकर भी हमारी भारतीय संस्कृति अभी तक जीवित है। इसका एक महत्वपूर्ण कारण है—इसकी प्राध्यात्मिकता सहस्रांशु की वह तेजोमयी किरण अपना पूर्ण प्रभाव इस भू-भाग पर रखती है और विशेष रखती है। आध्यात्मिकता की यह अमर बेल समय-समय पर पार्ष पुरुषों द्वारा सिंचित हुई, उनसे संरक्षण प्राप्त किया और जिसे संवर्द्धन एवं संवरण उनकी छाया में मिला । श्राध्यात्मिकता से उत्पन्न मानवता जहाँ यत्र तत्र सर्वत्र दीखने में प्राती रही। इस रत्न प्रसूता वसुन्धरा ने ऐसे महामनस्वी नर पुगवों को जन्म दिया कि जिनकी वैखरी वाणी एवं अपूर्व कार्य-कलापों ने अल्पकाल ही में वह कार्य कर दिखाया जो साधारण जनों द्वारा सम्भवतः सदियों तक अथक प्रयत्न करने पर भी सम्पन्न नहीं किया जा सकता था। जिन्होंने अपनी मानवता की चिनगारियों से इस देश की प्रसुप्त श्रात्मा के अन्तराल में क्रान्ति के वे स्फुलिंग जगा दिए कि जिनके प्रकाश में अखिल जगत की बड़ी से बड़ी सत्ता भी शान्ति का पथ ढूंढने को धातुर रही और है। धर्म और दर्शन को जननी भारत भूमि मानवता का मुख उजागर करने वाले पहुंचे हुए महापुरुषों से कभी भी खाली नहीं रही है। उसी श्रार्ष परम्परा की पुनीत माला के मनके हैं -- श्राचार्य श्री तुलसी। इनके जीवन में निखार पाने वाले गुण श्रगणित हैं और उनका दिव्य चरित्र का पृष्ठ हम सबके सामने खुला है, जिसका समर्थन उनके हाथ से होता है। कितना सुन्दर साम्य है ।
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यह हाथ नहीं है पुस्तक है जिसमें जीवन का सार भरा।
है उसका पूर्ण प्रतिबिम्ब यही जो वास्तव में है सही, खरा ।
Noel Jaquin का कथन है कि, "The hand is the symbolic of the whole" और 'हस्त-संजीवन'
में लिखा है
नास्ति हस्तात्परं ज्ञानं पैलोक्ये समराचरे । यद् ब्राह्मं पुस्तकं हस्ते घृतं बोधाय जन्मिनाम् ॥
प्राचार्य श्री तुलसी का हाथ चौकोर, लाल-गुलाबी रंग की मुलायम समुन्नत हथेली नीचे स्थित भंगुस्त कटिवाला लम्बा एक निराला कोण बनाता हुआ है, दूसरा पेरवा लम्बा, प्रथम पेरवा दूसरे की लम्बाई से दो तिहाई से कम नहीं और दूसरे पेरवे में एक तारे का निशान है। तर्जनी अवश्य कुछ छोटी है और उसका दूसरा पेरवा लम्बा है। मध्यमा लम्बी है, दूसरा पेरवा लम्बा व तीन खड़ी रेखा वाला है। अनामिका लम्बी है और उसका प्रथम पेरवा (नख वाला) लम्बा है। अनामिका से दूरी पर स्थित कनिष्ठा है जो लम्बी है, जिसका प्रथम पेरवा लम्बा है। तर्जनी के नीचे जो गुरु का स्थान है, वह समान रूप से उभरा हुआ है और उस पर कास तारे में परिणत होता दिखाई देता है। मध्यमा के नीचे जो शनि का स्थान है, उस पर खड़ी रेखा है और V का चिह्न है। स्थान समान रूप से उभरा हुआ है । नामिका के नीचे जो सूर्यस्थान है, वह भी उभरा हुआ है। कनिष्ठा के नीचे जो बुध स्थान है, समुन्नत है और उस पर तीन-चार खड़ी रेखाएं हैं। इस स्थान के नीचे जो मंगल स्थान है, अच्छा उभरा हुआ है। चन्द्र स्थान जो इस मंगल स्थान