Book Title: Aacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Author(s): Tulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
Publisher: Acharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti

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Page 257
________________ श्री तुलसीजी की जन्म कुण्डली का विहंगावलोकन पद्मभूषण पं० सूर्यनारायण व्यास श्रीयुत् तुलसीजी की जन्म कुण्डली का विवरण इस प्रकार है :श्री संवत् १९७१ श० श. ३६ कार्तिक शुक्ल १ भौमे, परं द्वितीयायाम्। विशाखा २ चरणे इष्टं ५२१५१ । तदा जन्म । ल०४।२४ सू० ० मं० बु० गु० शु० श. रा० ३ २५ २१ २५ २१ १० १० १० जन्म चक्रम् चलितम् नवांशम् 70 गु १ श्री तुलसीजी के जन्म समय के ग्रह योगों पर से विचार करते हुए विदित होता है कि जिन परिस्थितियों और विशिष्ट ग्रह-प्रभाव काल में उन्होंने जन्म लिया, वह वास्तव में महत्त्वपूर्ण था। प्रारम्भ ही से तुलसीजी ने विशिष्ट एवं परस्पर-विरोधी वातावरण में उत्पन्न होकर, जीवन के प्रस्तुत काल पर्यन्त ऐसे ही वातावरण में कार्य किया है। एक साधारण-सुखी व्यवस्थित परिवार में जन्म लेकर अपने परिवार की परम्परा और कार्य के विरुद्ध वैराग्य मार्ग का वरण किया है। इतना ही नहीं, अपने मार्ग की पोर परिवार को भी प्रेरित और प्रभावित करने में वे सफल हुए हैं । असाधारण शिक्षा-दीक्षा लेकर वे अपने पथ में सफलतापूर्वक अग्रसर हुए और जीवन के अल्पावधि काल में ही वे नेतृत्व का पद प्राप्त करने में सफल हुए हैं। इसमें भी उन्हें स्पर्धा का प्रसंग पाया है, किन्तु यह स्पर्धा उन के पथ में एवं उत्थान में सहायक हुई है। नीच राशि का होकर षष्ठ स्थान में अष्टमेश एवं पंचमेश गुरु है। इसलिए संघर्ष और वह भी उच्च स्थानीय बना रहे, इसमें विस्मय का कारण नहीं रहता। इस पर भी लग्नेश सूर्य भिन्न क्षेत्र में नीच राशि का होकर स्थित है। इसलिए मित्रों, स्वजनों, सहकारियों एवं अनुयायियों से भी सतत संघर्ष सजग रहता है। किन्तु उसी भिन्न क्षेत्र में भौम और एकादश में शनि इतना सबल है कि संघर्षों में भी इनका बल बढ़ता और बना रहता है । एक प्रकार से इनके अधिनायकत्व को पोषित करता रहता है। गुरु और सूर्य को नीच राशि के कारण सहसा इनका भावना-प्रधान मन विचलित हो जाये और विचारों में भी विकृति का अवसर प्रदान करे, किन्तु गुरु मोर सूर्य नीच राशि के होकर भी नीचांश में नहीं हैं। इस कारण वे विकृतियों

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