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नवोत्थान के सन्देश-वाहक
श्री अमरनाथ विद्यालंकार शिक्षामंत्री, पंजाब सरकार
प्राचार्य तुलसी का अणुव्रत-प्रान्दोलन वस्तुतः देश में नैतिकता और नियन्त्रण के प्रचार का प्रान्दोलन है। महात्मा गांधी ने अपनी पचास वर्ष की कठोर तपस्या द्वारा देश के नैतिक स्तर को ऊंचा उठाया, जिससे हम खून का एक कतरा बहाये बिना ही आजाद हो गये। इतिहास में अहिंसा और नैतिकता की इतनी बड़ी विजय इतने बड़े विशाल राजनतिक क्षेत्र में प्रथम बार ही प्राप्त हुई। आज जब मानव समाज को संगठित तथा व्यवस्थित करने के लिए इतने प्रकार सोचे जा रहे हैं और मानव स्वभाव तथा भावनामों के विकारों को बाह्य भौतिक उपायों द्वारा शान्त करने के नये-नये प्रकार उपस्थित किये जा रहे हैं। इस बात की नितान्त प्रावश्यकता है कि नैतिक तथा प्राध्यात्मिक उपायों को यथार्थता तथा श्रेष्ठता व्यावहारिक रूप से सिद्ध की जाये । भारतीय विचारधारा के अनुसार इतिहास में अनेक बार क्षात्र भावनाओं पर ब्रह्मत्व की श्रेष्ठता व्यावहारिक रूप से सिद्ध की जा चुकी है।
महात्मा गांधी के पश्चात प्राचार्य विनोबा और प्राचार्यश्री तुलमी ने नैतिकता के सन्देशवाहक का कठिन भार अपने कन्धों पर लिया है । और हमें उनका अनुसरण करना चाहिए।
प्राचार्यश्री तुलसी की गणना उन महान् धर्म-नायकों और संतों में है, जो केवल धर्मोपदेश देने ही में अपने कर्तव्य की इतिश्री नहीं करते, अपितु जन-कल्याण की भावना से प्रोत-प्रोत होकर अपने समस्त क्रिया-कलाप को जनसेवा की साधना में समर्पित कर देते हैं। हमारे देश में बहुत थोड़े ऐसे धर्म-गुरु हैं जो स्वयं विद्वान् तथा ज्ञानवान होते हए भी अपनी विद्वता तथा पाण्डित्य पर सन्तुष्ट होकर नहीं बैठे रहते, अपितु लोकेषणात्रों से निलिप्त रह कर ही जन साधारण के साथ उठते-बैठते, चलते-फिरते हैं और इस प्रकार अपने सदाचरणों के माध्यम से सामान्य जनों का मार्ग-दर्शन करते हैं।
प्राचार्यश्री तुलसी ने जैन मुनियों और थेरो के परम्परागत महान् दर्शन शास्त्र को जीवन दर्शन की भाषा में अनदित किया और उसे 'अणुवत-आन्दोलन' का रूप दिया। प्राचीन दर्शन नवोत्थान का सन्देश लेकर भारतीय जन-साधारण को नव युग की प्रेरणा देने लगा।
समाज व्यवस्था के बिना क्षण-भर भी जीवित नहीं रह सकता। विशृंखल व्यक्तियों को परस्पर जोड़ कर समाज के रूप में सुसंगठित करने वाली कड़ियां कानून की तलवारों से गढ़ी नहीं जा सकती। मानव को मानव से जोड़ने वाली कड़ियाँ भावनात्मक होती हैं । लाठी से हाँके जाने वाले भेड़ों के रेवड की भांति इन्सान भी मजमे के रूप में इकठे भले ही किये जा सकते हैं, परन्तु जब तक उनकी हृदयतन्त्री के तार सम्मिलित होकर एक सुर में बज नहीं उठते, तब तक समाज नहीं बनता।
मैं जानता है, प्राचार्यश्री तुलसी के संवेदनशील व्यक्तित्व तथा नैष्ठिक नैतिकतापूर्ण सदाचरण मे प्रभावित होकर अनेक तर दुनियादार भौतिक सफलता के उपासकों ने नैतिकतापूर्ण जीवन का प्रसाद पाया है।
प्राचार्यप्रवर का सार्वजनिक अभिनन्दन किया जा रहा है, इस अवसर पर शुद्ध प्रसूनों की यह तुच्छ भेट उनके चरणों में समर्पित करते हुए मैं अपने-पापको धन्य मानता हूँ।
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