Book Title: Digambar Jain 1924 Varsh 17 Ank 07
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥श्रीवीतरागाय नमः॥ 16010 सम्पादक-मूलचंद किसनदास कापड़िया चंदावाड़ी-सरत।। विषयानुक्रमणिका। विषय पृष्ठ and सम्पादकीय वक्तव्य .... .... .... .... २ जैन समाचारावलि .... ३ गुजरातमां ब्रह्मचर्याश्रम खोलवानो विचार ..... ४ जैन साहित्यका महत्व व उसका प्रचार (ब शीतलप्रसादनी) ९ ६ दिनचर्या ( पं० अभयचन्द्र काव्य तीर्थ इन्दौर) .... १२ ६ हमारा काम ( पं० प्रेमचंद पंचरत्न- भिंड ) ........ १७ । ७ श्री विजयधर्मसूरि मूरत जैन साहित्य परिषद् का एक नित्र १८ वीर सं. २४५० वर्ष १७ व । वैशाख ८ अहिंसा धर्म (पं० शंकरलाल व्यास कसरावद).... | अङ्क ७ वाँ सं. १९८- ९नीतिरत्नमाला-४ (६० बालकृष्ण जन, पालम) ....२८ | सन् १९२ सा-१० अग्नि (बाबू ताराचंद जैन झालरापाटन सीटी......... ७ ११ जैनियों के लिये आकाशवाणी (मोतीलाल जैन कुनाड़ी).... १२ श्रुतपंचमी पर्व स्पं प्रेमचंद पंचरत्न..... All १३ दो शब्द (श्री नानकीबाई जैन-अमरा) | । NGIG पेशगी वार्षिक मूल्य रु २-०-० पोष्टेज सहित । Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ આાળામાં અંજક બનિાયકારોને ભુંદેર ગામ વિહાર કરી ગયા એટલે તા૦૧૬-૫-૨૪ यह अंक बहुत देरी से निकल सका है इसलिये દિક ભાઇએ ઉદેપુરથી મહારાણાના હુમ આગામી ચેક-આવારા સંયુક્ત્ત મં શીઘ્ર ફી નહિ એટલે પછી કેશરિયાજીથી બે જણ ભુદેર લઈને આવ્યા કે દિ મુનિને કાઇપણ રોકટોક કરે प्रगट किया जायगा । ભાગવતે તેડવા ગયા જેથી તા ૧૭ મીએ મુનિશ્રા ચંદ્રસાગરનંદ-મઢારાન સિર-મુનિજી દેશરિયાજી પાછા પધાર્યાં અને દર્શન કરવા ગયા ત્યારે કાઇએ પણ હરકત કરી નહેાતી. ખેદ છે કે શ્વેતામ્બરી બાદ વારાર નાહક સત્તામણી કરી ઝડામે ઉભા કરે છે પશુ તેમણે જાણુવુ' જેઈએ આ કેશરિયાજીનુ દહેરાસર દિગ ખરી છે છતાં શ્વેતામ્બરો પણ માને છે તા ભલે બન્નેએ મળી સમજીને વવુ જોઇએ, એમાંજ શાભા છે. - वरकूट पहुंच गये हैं और यहां चातुर्मास करेंगे ।ભટ્ટારક સુરેન્દ્રીતિ જીએ માંડલ (અમલનેર, ખાનદેશ ) માં ચાતુર્માસ કર્યાં છે. વીસા મેવાડા ચુવક મંડળ-વૈશાખ માસમાં સૈાત્રામાં લગ્નગાળા પ્રસ ંગે વીસ મેવાડા દિ૦ જૈન યુવક મડળની ત્રણ બેઠકા વદી ૫-૭-૮ ત્રણ દિવસ ભ॰ સુરેંદ્રકીર્તિજીના પ્રમુખપણા નીચે મળી હતી, જેમાં પ્રથમ દિને અમદવાદ કંગના સુપ્રી॰ પં. ક્રેટાલાલ પરવારે જૈન ધર્મ અને જ્ઞાતિના પરસ્પર સંબંધ એ વિષયપર લખણુ અસરકારક ભાષણ આપ્યું હતુ જેમાં જૈન ધર્મ પાલન કરવાની ફરજો સમજાવી હતી પછી ભટ્ટારાજીએ ન્યાતિ જમણમાં પત્ર ળાં (બાજ) ન વાપ ૐવા ભલામણ કરી હતી કેમકે એથી ધમ હાનિ થાય છે. ખંજી સભામાં મ’ડના ઉદેશા તે નિયમા નવા ધડવા માટે કમેટી નીમાઈ હતી તેમજ ત્રીજી સભામાં દેશ મેં નિયમેા નવા ઘડાયા હતા તે ત્રણ વર્ષ માટે કાર્યવાહક મંડળ ન માયુ હતુ. તેમજ કેટલાક રવે પણ પસાર કરવામાં આવ્યા હતા. હિંમતલાલ વરજીવનદાસ મંત્રી. કેશ િયાજીમાં મુનિને અક વ-મને ખબર મળી છે કે ાણીવાળા મુનિશ્રી શાંતિસાગજી d'૦ ૧૪-૫-૨૪ ને દિનેશરિયાજીમાં વેદી અ ગળ કમંડલ મુકી દન કરવા ગયા એટલે પહેરાવાળા આવી કમડલ લઈ ગ્યા તે આપ્યુ નીં તેથી મહારાજે નિયમ લીધે કે જ્યારે કમંડળ આવશે ત્યારેજ આહાર પાણી લેવ’. પછી ત્યાંના નર્સિંગપરા ભાઇશ ટપ્પા ભાડે કરી ઉર્દુપુર ક્રમ`ડળ લેવા ગયા એટલે ૧૨ વાગતે પહેરા વાળા કમળ મુકી થયા પછી સાંજે દ્વારકે આહાર લીધેા. વળી ખીજે દિવસે ફરી દશના ગયા ! કહ્યું કે પીછી ક્રમડળ બહાર મુકી દન કરવા જાઆ. આથી મહારાજ દ્રાર પાથથના મંદિરમાં દુન કરી પાછા પધાર્યા તે આજે દ્ધિ સોજીત્રાના લગ્ન ગાળા-ગુજરાતના જુદા જુદા ૫૦ ગામેાના અમારા વીસા મેવાડા ઇમા જે આશરે ૨૫૦૦ ની સખ્યામાં છે તેઓ દર ત્રીજે વર્ષે સાજીત્રામાં વૈશાખ માસમાં એકત્ર થાય છે તે લગ્નાદિ કાર્યો કરે છે તે સુખમ આ વર્ષના લગ્નમાળા વૈશાખ માસમાં ૨૦-૨૫ દિવસ સુધી ભરાયા હતા અને આશરે ૪૦-૫૦ લગ્ન થયાં હતાં જેમાં માત્ર એ લગ્મા જૈન “વિધિથી ૫૦ Èટાલાલ પરવાર ( સુપ્રી૰ અમવાદ ખેડિંગ ) દ્વારા થયાં હતાં જેમાં એક શેઠ જે 'ગભાઇ ગુલાબચંદની પૈત્રીને શ’કરલાલ પાનાચંદના પુત્રના થયા દત્તા જેમાં ૧૦) દાન થયુ' હતું તે જીવણુલાલ હલે.ચંદ્રની પુત્રી ને કુલચંદ દ્વારાદ મના પુત્રના યા હતા તેમાં ૧૮) દાન મળ્યું હતું એટલે ૨૮) અમદાવાદ એ ગિને ભેટ ૫ હતા. વળી ખતે લગ્નમાં વર ક્રન્યાની ઉંમર ૧૭ તે ૧૩ ની હતી. તેમજ બીજા લામાં 'કન્યાની ઉપર આછામાં ઓછી ૧૧ ની હતી પગ કેટલાક લગ્ન સરખે સરખી ઉમરના હતા ! વળી ઓં લગ્નગાળા પ્રસંગે કેટલાક નવા વિવ.હા ( સગાઇએ ) નાની ઉરનાના ૪ ૧૫ના "અંતરા વગરના પણ થયા હતા! આલ ઞગાળામાં એ વાત તેા વખાણવાલાયક છે કે ચાય પદ્ધતિ એવી છે કે દરેક લગ્ન ગમે તેટલા આછા ખર્ચમાં સાદ થા થઇ શકે છે તે કાત્ર બહુ ઠાઠમાટ કરે છે તેા ઉલ્દી તેની વાર્તા થાય છે. ન્યાતિ જમણુ પણ રજ્ય તુ નથી એ ખુશી થવા જેવુ છે, Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्रीवीतरागाय नमः ॥ दिगंबर जैन. THE DIGAMBAR JAIN. नाना कलाभिर्विविधश्च तत्वैः सत्योपदेशैस्सुगवेषणाभिः । . संबोधयत्पत्रमिदं प्रवर्तताम्, दैगम्बर जैन समाज-मात्रम् ॥ वर्ष १७ वाँ. वीर संवत् २४५०. वैशाख वि० सं० १९८०. | अंक ७ वां दिया है। प्रक्षालके लिये जो पूजा केसमें फैसला मिल चुका है कि चरणोंपर तबक वगैरह हटाकर दिगम्बरी अपना प्रक्षाल करें वही बहाल रहा है। अर्थात् अब श्वेतांवर भाई जो नये मकानात, हमारे पाठक अच्छी तरहसे जानते हैं कि मंदिरे दरवाजे वगैरह बनाना चाहते थे वे नहीं श्री सम्मेद शिखरजी शिखर जी केसमें तीर्थपर हम अच्छी तर बना सकेंगे। इस केसमें तीर्थभक्त ला• देवीसहाहमारा विजय। इसे पूना सेवा कर के यनी, बेरिस्टर चंपतरायजी, बा० अनितपसादनी. तथा श्वेतांवरी भाई कोई सेठ दयाचंदनी, बा० निर्मलकुमारजी, बा. रोकटोक न करे न कोई नवीन कार्य करे इस हरनारायणजी, बेरिस्टर जुगर्मदरदासनी, साहु प्रकारका केस हमारी तरफसे हमारीबाग व जुगमंदरदाप्त नी, रा. सा. फूलचंदनी, पं. रांचीकी कोर्ट में चार पांच माहसे चल रहा था जयदेवनी, भाई कालूरामजी आदिने बड़ा भारी जिसमें हमारी ओरसे व श्वेतांवरियों की ओरसे परिश्रम किया है तथा चंपतरायन व अनितपकई गवाह गुजर चूके थे व अंतमें इसका सादनीने तो अपना घर छोड़कर निःस्वार्थ फैसला हमारे लाममें ता० २६ मई को रांचीके भावसे इस कुल केसकी परवा की थी जिससे सब जनने दिया है जो बहुत ही विचारके हमारी समाजको कमसे कम पचास हजार रु. का साथ न्यायपूर्वक दिया है। फैसलाका सार फायदा हुआ है । दि जैन समान हमेशके लिये यह है कि शिखरजीका पहाड़ देवस्थान है, भापकी कृतज्ञ ही रहेगी। श्वेतांबरी किसी किस्मके मकानात पहाड़ पर परन्तु इससे हमें संतोष करके पैठ रहनेका नहीं बंधवा सकते सिवा इसके कि यदि चरण नहीं है क्योंकि शायद श्वेतांवर भाई इस पर चिह्न पुनः बैठाना हो तो वे वैसे ही बैठा सक्ते अपील भी करेंगे तो उसके लिये ममीसे हमें हैं और जो चरणन्ति वर्तमानमें नष्ट होगये हैं तैयार रहना होगा। उधर रानगिरिमें नया उन्हें पुनः स्थापित करने का हुक्म भदालतने झघडा हमारे श्वेतांबरी भाइयोंने खड़ा कर Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिगम्बर जैन [वर्ष १७ दिया है और वे बङ्गाल प्रांतके सभी तीर्थोके RRENandedlekasRER मालिक बनना चाहते हैं इससे रानगिरिका जैन समाचारावलि केस भी हमें बहुत पैरवीके साथ लड़ने का है । इसमें भी निःस्वार्थ भावसे पैरवी RESERESERVERS E करने के लिये बाबू अजितपप्तादजी वकीलने नागौरका शास्त्रभंडार-अभी श्रुतपं. स्वीकारता दी है परन्तु सबसे अच्छी बात तो चमीके दिन पूज्य ब• शीतप्रसादजी सुजान. यह है कि ये तीर्थों के झगड़े कभी मिटनेवाले गढ़से डेप्यूटेशन लेकर नागौर पहुंचे थे और नहीं हैं-एक नहीं तो दूसरा, दूसरा नहीं तो शास्त्रभेडार खुलवानेके लिये बहुत कोशिश की तीसरा नया २ झघड़ा उपस्थित होता ही गई परन्तु भंडार नहीं खुला तब बंद भंडारके रहेगा इससे खास जरूर तो वर्षों से यही सा सामने दूसरा शास्त्र रखकर पूनन की थी। है कि किसी प्रकार भी कोशिश करके सेठ विनोदीराम वालचंदनीके मूनीम जोहरीदिगम्बरी श्वेताम्बरी दोनोंकी एक संयुक्त मलजीने कहा कि भंडारकी ताली हमारी पास कमेटी नियत हो और वह तीर्थोके झगडेका कहीं नहीं है । यह तो भट्टारकके पास है जो निवटेरा करदे वह सबको मंजूर हो और तीर्थो में औरंगाबादकी तरफ है। फिर दूसरी ओरसे आ शांति स्थापन के लिये वही कमेटी कायम रहे। सुन पड़ा कि वीसपंथी सेठ रामदेवजीके पास हर्ष है ऐसा एक प्रस्ताव मुजफ्फरनगरकी भारत० भडारकी चाविये हैं परन्तु उन्होंने भी इन्कार दि. जैन परिषदमें हुआ है और उसकी कमेटी किया इससे कुछ भी सफलता न हो सकी। क्या इस बातकी कोशिश भी कररही है और वे जाने इप्स अपूर्व भंडारका जीर्णोद्धार कब होगा ? किसी बडे भारी नेताको बीच में रखकर तीर्थोके सुजानगढ़ में प्रभावना-सुनानगढ़में झगडेका निवटेरा कराने के प्रयत्नमें जीतोड़ ज्येष्ट सुद १ से वेदी प्रतिष्ठा थी तब ब. परिश्रम कर रही है। यदि ऐसा प्र.ल सफल शीतलप्रप्त दनी खास पधारे थे व जैनयुवक हो जाय तो हमे शहके लिये तीर्थोके झाडे मिट सम्मेलनका वार्षिकोत्सव सेठ रिद्धकरण नीके जाय और जैनोंके लाखो रुपये वकील वेरिष्टरों में .स " सभापतित्वमें तीन दिन तक हुमा था निसमें व सरकारमें जाते बचेंगे और कौममें शांति कई उपयोगी प्रस्ताव पास हुए हैं जिनमें स्थापित हो जायगी और ऐसे बचाव व ऐक्यसे औषधालय खोलना निश्चित होकर उसके भविष्यमें जैन कोम मध्यस्थ जैन बैंक व जैन लिये ८०००) का चंदा उसी समय होगया कालेज स्थापित करने को तैयार हो सकेगी है । हर्ष है कि यहां धर्मप्रेम बहुत है । नित्य जिसकी कि बहुत आवश्यक्ता है । 'त्रिकाल शास्त्रप्सभा होती है व सुबह शाम दो समय पूनन होती है। ब्रह्मचारीजीके दो व्याख्यान बड़े महत्वके हुए थे। --0XCe-- Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंक ७] दिगम्बर जैन । - म. गांधीजी-ने 'आर्यप्तमान' के विषयमें श्री सम्मेदशिखरजी पर-सेठ हजाअपना अभिपाय प्रगट किया है कि 'मैंने आर्य रीमलजी, हरखचंदजी और प्रतापमलनीकी समाजकी बाई बिक 'सत्यार्थपकाश'को पढ़ा है। ओरसे तेरापंथी कोठीमें पंचरल्याणक प्रतिष्ठा मित्रों ने मुझे तीन कोपी भेजी थी जब मैं येरोडा करने का निश्चित हुमा है और उसके लिये जेलमें था। इतने बड़े सुधारककी लिखी इतनी २१०००) अलग निकाले गये हैं। बड़ी निराशजनक पुस्तक मैंने दूसरी नहीं पढ़ी जैन बाला विश्राम--भाराका वार्षिकोहै । उन्होंने सत्यपर खड़े रहने का दावा दिया त्सव वैशाख सुदी १५ को श्रीमती जगमगहै परन्तु अज्ञानतासे मैनधर्म, ईसलाम, ईसाई, बीवी (स्व० वा. हरप्रसादनी,के सभापतित्वमें मत तथा स्वयं हिन्दू मतको औरका और बत. हआ था। इसमें रिपोर्ट, व्याख्यानादि होकर लाया है आदि।" सभापतिने १०००) आश्रमको भेंट दिये तथा आलंद-में सेठ माणेकनंद मोतीचंदने पा बा० निर्मलकुमारजीने मिष्टान्न बांटकर प्रीतिभोज ठशाला व औषधालयके लिये ४००००) खर्च किया था। करके मकान बनवाया है उसका उद्घाटन मुहूर्त रतलामकी-मा० पा० दि. जैन बोर्डिता. ७-६-२४ को होगया । पाठशाला २३ गमें ४० छात्र रखने की योजना की गई है। वर्षसे चलती है निप्तके लिये १८६२९) का प्रथम श्रेणीसे दशवी श्रेणी तकके विद्यार्थी स्थायी फंड होगया तथा केशरबाई कन्याशाला लिये जायगे । इसलिये प्रवेश होनेवाले शीघ्र ही खोकने का उत्सव श्रीमती मगनव्हेनके हस्तसे सुपरिन्टेन्डेन्टको अर्जी भेनें । इस बोर्डिगमें हुभा था । इसके लिये भी १०४३६)का चंदा यात्रियोंके ठहरनेके लिये धर्मशालाका भी उत्तम होगया है। रुकड़ी-में पंच कल्याणक प्रतिष्ठा व रत्नत्रय प्रबन्ध है । १०० तक यात्री ठहर सकते हैं। संवर्धिनी सभाका नैमित्तिक अधिवेशन गत बम्बई सरस्वति भवन-बम्बईमें ऐलक मासमें होगया । मुनि शांतिसागरनी भी पधारे पन्नालाल दि. जैन सरस्वति भवनका वार्षिकोथे। सभाके सभापति पं. धन्नालालनी हए थे त्सव श्रुतपंचमीके दिन सुखानंद धर्मशालामें और विधवाविवाह निषेधका प्रस्ताव हआ था। रात्रिको <॥ बजे सेठ हीराचंद नेमचंद दोशी उदैपुर-में संभवनाथ मंदिरकी तरफसे सोलापुरके सभापतित्वमें हुआ था जिसमें रिपोर्ट धानमंडीमें धर्मशाला स्थापित हुई है जहां या- भादि पढ़ा गया व पं० खुबचन्दनी तथा पं० त्रियोंको ठहरनेका सब प्रकारका सुभता है। धन्नालाल नीका जैन साहित्य पर व्याख्यान आवश्यकता-बड़वानीमें मेघराज दि०. हुआ था। अंतमें सभापतिजीने कहा कि आजतक जैन पाठशाला व बोर्डिगके १२से २० छात्रोंके भवनने सामग्री जुटाने का कार्य किया है परन्तु लिये स्थान खाली है। यहां सब प्रकारका अब जैन साहित्य का अच्छी तरहसे पठनपाठन सुभीता है। हो ऐसी कोई व्यवस्था बबईमें होनी चाहिये। Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिगम्बर जैन । [ वर्ष १० कोरम न होनेसे कमेटीकी कार्रवाई नहीं हुई झालरापाटन, नागौर, पानीपत. बम्बई, भिंड, थी, परन्तु भवनकी ओरसे कार्तिकसे एक अलीगंन कोल्हापुर, सवईमाधोपुर, टीकमगढ़, त्रिमासिक पत्र अवश्य प्रकट होनेवाला है जिसका महेश्वर, कुंथलगिरि, ईलाहाबाद, बड़नगर आदि वार्षिक मूल्य चार या पांच रु. होगा। स्थानोंपर शास्त्रपूजन व व्याख्यानादि द्वारा स्त्रियोंका सत्याग्रह-अभी थोड़े दिन मनाया गया था । हुए सुजानगढ़ आदिसे एक संघ रानगिरि गया राजगृही क्षेत्र के मुकदमें की पेशी ता. था। इसमें ५० स्त्रियाँ थीं। वे रेलमें बड़े ७ जूनको थी । उस दिन न होकर ता. १८ कष्टसे पहुंचनेपर देवदर्शन को गई तो ओसवाल जुलाई को होगी उस दिन हमारी ओरसे लिखित संघका मैनेजर ताला लगाकर धर्मशालामें छिर उत्तर पेश होगा। गया था। ये स्त्रियां दरवाजे पर दो घंटे तक मुक्तागिरि-क्षेत्रके विषय में खापर्डे ने नाखड़ी रही कि जब मंदिर खुलेगा तब ही दर्शन गपुर हाई कोर्ट में अपील की है निसकी पेशी करके भोजन करेगी। अंतमें ३ बजे दर्शन ता० ६ सितम्बर को होगी। करके ही भोजन किया था। इनामी निबंध-भारत. दि. जैन परिष रामदेवीबाई-जो महिला आश्रममें संचा- दकी ट्रेक्ट सीरीजके लिये जो सजन जैनप्तमानकी लिका थी, उनको छ मातकी छुट्टी दे दी गई प्राचीन रीति नीति और उनका संक्षिप्त क्रमबद्ध है और उनका कार्यरतनदेवीजीको सौंपागया है। इतिहाप्त लिखकर १ अगस्त १९२४ तक भेनेंगे श्रुतपंचमी पर्व। उनमें से सर्वोत्तम लेखकको बा० शिवचरणलाल ज्येष्ठ मुदी के दिन यह पर्व निम्नस्थानों जीकी ओरसे सुवर्णपदक दिया जायगा । लेख पर मनाये जाने के समाचार मिले हैं- एक ओर फुरसकेप २५ पृष्ठोंपर होना चाहिये। काम्पलाजी-में दिनको १२ बजे तक इलाहाबाद- की सुमेरचंद दि. जैन बोसरस्वति भवनकी रचना करके पूजन की गई डिगमें कालेनकी सब कक्षाओंके विद्यार्थी रखे फिर शास्त्रमंड रकी सूची तैयार की गई और जाते हैं। रहने, भोजन, व्यायाम आदिका उत्तम नवीन वेष्टन भी स्वदेशी खादीके तैयार कर उनमें प्रबंध है । प्रत्रव्यवहारका पता-लक्ष्मीचंद्र जैन शास्त्रोंको नंबरवार चिक लगाकर बांधे गये। एम० ए० वार्डन, जैन होटल-प्रयाग है। : आरा-में जैनसिद्धांत भवन में पूनन होकर दतिया नरेश-का सिवनी में सेठ पूरनपं० मुनवली शास्त्रीने व्याख्यान दिया। फिर शाहजी, नातिनेता चैनसुखनी, सिं• कुवरसेनजी बा. निर्मलकुमारनीने सबका मिष्टान्न व सीतल भादिने सत्कार किया था तब सोनागिर क्षेत्रका जलसे सत्कार किया था। माप २५०००) जिक्र होते ही महारानाने कहा कि इस क्षेत्रकी खर्च करके भवनका नया मकान बना रहे हैं। पूर्ण रक्षाका प्रबंध किया जायगा तथा आप जन इस प्रकार यह पर्व सोलापुर, सुरत, उदैपुर, भावे हमें अवश्य मिले आदि । Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ અં% ૭ ] दिगम्बर जैन । ખેલવાનો વિચાર. સર્વએ એ વાત કબુલ કરી ને કહ્યું કે જે એ સ્થપાય તો દરેક બનતી મદદ આપવા ખુશી છે તથા તે જ વખતે વિચાર થયે કે શરૂઆતમાં રોજને ૧૫) ખર્ચ થાય અને એ એકેક દિવસનો ખર્ચ સોજીત્રાના લગ્નગાળામાં એ માટે આપવાને ભાઈજીભાઈ નાથાભાઈ વેડચ, મંગળદાસ - થયેલે ઉગ. નાથાભાઈ વેડચ, પરસોતમ દામોદરદાસ વેડચ, આપણું દિગંબર જેમાં જયપુર, કેથલગિરી, શંકરલાલ તાપીદાસ આમોદ, કુલચંદ મોતીલાલ ભાજલપુર, ત્રભોવનદાસ અમીચંદ ભેજ, મુલચંદ કારંજ, ઉદેપુર, વગેરે અનેક સ્થળોએ બ્રહ્મ કરસનદાસ કાપડિયા સુરત, છગનલાલ ઉત્તમચંદ ર્યાશ્રમે ખુલી ચુકયા છે. ( જ્યાં વિદ્યાર્થીઓ ઉત્તમ રીતે ધાર્મિક વ્યવહારિક શિક્ષણ ને કસરત સરૈયા સુરત (૧૦ વિદ્યાર્થી લાવી આપવા કબુલ્યુ), વગેરેને લાભ લે છે ને ત્યાંજ પિતાને ખર્ચે કે છોટાલાલ ઘેલાભાઈ ગાંધી અંકલેશ્વર, કાલીદાસ . જેસીંગ બિન કૌશેરદાસ બોરસદ, મનોરદાસ દેવચંદ આશ્રમને ખચે રહે છે ) ૫ણું ગુજરાતનું જ (૨ વિધાર્થી મોકલવા કબુલ્યુ), નાનચંદ પુંજાભાઈ દુર્ભાગ્ય છે કે જ્યાં એક પણ બ્રહ્મચર્યાશ્રમ નથી. ભારતર વડેદરા (૧ વિઘાથી મોકલવા બુલ્યુ), તેમ એક પણ પંડિત કે ઉપદેશક આજ સુધી કાલીદાસ હરગોવનદાસ આમેદ, મગનલાલ લલુતૈયાર થયા નથી કે જેની ખોટ દરેક સ્થળે ભાઈ વેડચ, કેશવલાલ ત્રીભોવનદાસ વડોદરા, જણાય છે. વળી આ આશ્રમોની જરૂર માત્ર પંડિત કે ઉપદેશકજ તૈયાર કરવા માટે નથી પણ (૧ વિધાથી મોકલવા કબુયું) ભોગીલા નાથાઉત્તમ ગૃહસ્થ બનાવવા માટે પણ છે જેથી સુરતના ભાઈ વડોદરા, (૧ વિધાથા મોકલવા કબુલ્યું). ભાઈ છગનલાલ ઉત્તમચંદ સરૈયા, અંકલેશ્વરના તથા જગજીવનદાસ રૂઘનાથદાસે પોતાની ઇચ્છા દર્શાવી તથા શેઠ ભગવાનદાસ ઝવેરદાસ સોજીત્રા શા, છોટાલાલ ઘેલાભાઈ ગાંધી અને અમને ઘણે વખત્ત થયો વિચાર થયા કરતા હતા કે અને શેઠ લાલચંદ કહાનદાસ વડેદરા એ દરકે ગુજરાતમાં બ્રહ્મચર્યાશ્રમ ખોલવાની જરૂછે ને તે ૧૦૧) આશ્રમ નીકળે તો સ્થાયી ફંડમાં આપવા, માટે કોઈ એવે સ્થળે ચર્ચા કરવી જોઇએ કે જ્યાં કબુલ્યું. ૧ પછી આ આશ્રમ ખેલવાની વ્યવસ્થા. આપણે સમુહ મોટી સંખ્યામાં એકત્ર થયેલા કરવા માટે એક સાધાર ૭ સભા નીમવા ને તેમાં સભાહોય. આવો પ્રસંગ આ વર્ષે સોજીત્રાના લગ્નમાળાનો સદો તરીકે પિતાનીજ ઇચ્છાથી નામ લખાવવાનો જણ્યો અને આ બંને મિત્રોને સૂથના કરતાં પ્રથમ વિચાર થતાં નીચે મુજબ ભાઈયાએ પોતે છે રાજી‘ભાઈ છોટાલાલ ગાંધી એક દિવસ અગાઉ ત્યાં ખુશીથી સાધારણ સભામાં નામ લખાવ્યાપહોંચી ગયા ને એ વાતની ચર્ચા ચલાવી તથા ૧ ભટ્ટારક શ્રી સુરેદ્રકીતિછ ગાદી સુરત, અમે અને ભાઇ સરેયા વૈશાખ વદ ૭ને દિને રોજીત્રા ૨ શેઠ ભગવાનદાસ ઝવેરદાસ સોજીત્રા, ગયા હતા, ત્યાં તે દિને ન્યાતિ જણ હતું. ૩ , લાલચંદ કહાનદાસ - વડોદરા તમાં સર્વેને ખબર આપી રાત્રે ખાસ સભા - ૪ શા છેટાલાલ ઘેલાભાઈ ગાંધી અંકલેશ્વર લાવવામાં આવી જેમાં ખ્યાતિના આશરે ૩૦૦ , લાલચંદ કાલીદાસ આમોદ ૪૦૦ આગેવાનો હાજર હતાં. એમાં ભટ્ટારક શ્રી ૬ , ચીમનલાલ લલ્લુભાઇ બોરસદ - સુરેન્દ્રકીર્તિજીના પ્રમુખપણું નીચે અમે, ભાઈ કેશવલાલ ત્રીભવનદાસ - વડાદરા, - છોટાલાલ ગાંધી, ભાઈ સરિયા, શેઠ જેસંગભાઈ , પાનાચંદ છગનલાલ વેડચ: ગુલાબચંદ વગેરેએ ભાષણ આપી ગુજરાતમાં ૯ ઇ મંગળદાસ નાથાભાઈ વેડચ , સાચમશ્રમ ખેલવાની આવશ્યકતા બતાવતા / ૧૦ ઇ મેતીલાલ ત્રીકમદાસ માલવી Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ લિબાર ના [વ વસો વસે = ૧૧ શેઠ નરસીદાસ ગંગાદાસ ઈસવ ૪૮ , ફુલચંદ છગનલાલ * માલાવાડા ૧૨ શા. શંકરલાલ તાપીદાસ આમોદ ૪૮ , કેશવલાલ સેંમચંદ : ૧૩ , જેશંગભાઈ ગુલાબચંદ સોજીત્રા ૫૦ - ચુનીલાલ ગુલાબચંદ બોરસદ ૧૪ , કુલચંદ વરજલાલ છત્રા ૫૧ , મુલચંદ પંજાભાઈ ૧૫ હરીલાલ કલ્યાણદાસ સોજીત્રા પર જીવણલાલ હચંદ - - બેચાસણ ૧૬ , મનસુખલાલ કાળદાસ બેરદ ૫૩ , ખીમચંદ કલાભાઈ કાણીસા - મણીલાલ ચુનીલાલ *હળવે ૫૪ ચીમનલાલ જીવાભાઈ. કરમસદ ૧૮. નાનચંદ પુંજાભાઈ બી. એ. વડે દર ૫૫ , સાકરલાલ માણેકલાલ બોરસદ ૧૮. દામોદરદાસ વ્રજલાલ વડોદરા પ૬ ,, સેમચંદ જેચંદભાઈ બોરસદ ૨૦... મોહનલાલ કાળીદાસ સોલીસીટર મુંબઈ ૫૭ , નગીનદાસ નેમચંદ ર્ડો. બોરસદ ૨૧ , મનસુખલાલ હેચરદાસ સોલીસીટર , આટલા નામો લખાયા પછી એ મેમ્બરોની ૨૨ , હિંમતલાલ વજીવનદાસ વકીલ બોરસદ એક મીટીંગ કાર્યવાહક કમેટી નીમવા માટે બીજે ૨૩ , સુંદરલાલ વીરચંદ વોરા વડોદરા દિને મેળવવાનું ઠરાવી આ સભા રાત્રે ૧૨ વાગતે ૨૪ , કાળીદાસ જેશીંગ બીનકિશાર બોરસદ વિસર્જન થઈ હતી. તેમજ આ આશ્રમ પાવા૨૫ કેવળદાસ રણુછાડદાસ કરમસદ ગઢમાં માહા સુદ ૧૩ સુધીમાં ખોલવા વિચાર ૨૧ છગનલાલ ઉત્તમચંદ સરથા સુરસ્ત થયો હતો તથા શેઠ લાલચંદ કહાનદાસે પાવા૨૭ ,, કેશવલાલ પ્રેમાનંદદાસ બોરસદ ગઢમાં જગ્યાની સગવડ કરી આપવા તથા એ કાર્યમાં ૨૮ દલપતભાઈ જીવાભાઈ દાવોલ બનતી સગવડ કરી આપવા ઈચ્છા દર્શાવી હતી. ૨૮ - મુલચંદ કસનદાસ કાપડિયા સુરત બીજે દિને એટલે વદ ૭ની સવારે સ્ત્રીઓની - હીરાલાલ મોતીલાલ વહુ સભા શ્ર'. માણેકબાઈ ટાલાલ ગાંધીના પ્રમુખપણ ૩૧ ,, અંબાલાલ વીરચંદ દાવોલ નિચે થઇ હતી જેમાં માણેકબાઈ, છોટાલાલભાઇ, ભાઈલાલ નારણદાસ ' છાણી મુલચંદભાઈ સરેવા, વગેરે એ ભાષા આપી સ્વરતીલાલ જગજીવનદાસ ૫ડેલી દેશી પ્રચાર, બાલસગાઈ. બંધ કરવા અને બ્રહ્મ.. નરોતમ ભીખાભાઈ વડુ ચર્યાશ્રમની જરૂરત પર : વિવેચને થયાં હતાં તથા સેવકલાલ પુંજાભાઈ વકીલ ભટ્ટારક સુરેન્દ્રકીર્તિછના પ્રમુખપણ નીચે બીજે સ્થળે ૩૬ ,, ત્રીભવન અમીચંદ ભજ ઉપલા ૫૭ સભાસની કમેટી મળી હતી જેમાં ૩૭ ઇ કસનદાસ ઈશ્વરદાસ જલાલપુર બ્રહ્મચર્યાશ્રમ ખેલવા માટેની કામચલાઉ વ્યવસ્થા ૩૮ સેમચંદ કસનદાસ જલાલપુર પેક સામતિ (1ન પક સમિતિ (તેમાં નામે વધારવાની સત્તા સાથે) ૩૮ ) મગનલાલ પરશોતમદાસ વડેદરા આશ્રમના ધારાધેરણનો ખરડો તૈયાર કરવા , રાયચંદ નારણદાસ સાદરા નીચેના દ ગૃહસ્થની નીમવામાં આવી હતી. છ મુલચંદ હરીલાલ સોજીત્રા શેઠ ભગવાનદાસ ઝવેરદાસ સોજીત્રા, શેઠ ૪૨ , મેહનલાલ મગનલાલ બેરસદ લાલચંદ કહાનદાસ વડેદરા, બ્રશીતલપ્રસાદજી, ૪૩ , મગનલાલ દામોદરદાસ દાવોલ મુલચંદ કસનદાસ કાપડિયા (મંત્રી), હૈોટાલાલ ૪૪ ઇ ખીમચંદ કુલચંદ કાણુસા ઘેલાભાઈ ગાંધી, અંકલેશ્વર ( સહાયક મંત્રી ), ૪૫ , દેવચંદ બાબરદાસ - પીપલાય છગનલાલ ઉત્તમચંદ સરેયાં સુરત, શંકરલાલ ૪૬ , કુલચંદ પુંજાભાઈ ભાલાવાસ તાપીદાસ આમોદ, હિંમતલાલ વરજીવનદાસ બોર ૪૭ ઇ ચુનીલાલ કાલાભાઈ ભાલાવાડ સદ અને માસ્તર નાનચંદ પુજાભાઈ વડદરી, o છ * છ છ * જ $ ર Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ બજ ૭ ] બિયર તેના - આ છે ગ્રહો પૈકી પાંચ જણે જીત્રામાં અધિવેશન-બને સભાના પ્રત્યક્ષ અને મળી વિચાર કરી ધારા ઘેરણુ ખરડે અંકલે- પરાક્ષ અધિવેશન આવશ્યકતા મુજબ થશે. શ્વર મોકલી આપ્યો હતો અને વદ ૧૦ ને દિવસે બજેટ-વ્યવસ્થાપક સમિતિ વાર્ષિક અનુ. અમો તથા સયાજ સજેત ( અંકલેશ્વર ) માં માનપત્રક ( બજેટ ). બનાવે તેજ પ્રમાણે ખર્ચ yજ પ્રસંગે ગયા હતા ત્યાં અ શીતલપ્રસાદજી, થઈ શકશે. વધારેની જરૂરત હોય તે સભાપતિ ભાઈ છોટાલાલ ગાંધી, સરેયા તથા અમેએ મળી રૂા. ૨૦૦) રસુધી મંજુરી આપી શકે અને તેથી આવેલા ધારા ધારણપર વિચાર કરી નીચે મુજબ વધુ માટે વ્યવસ્થાપક સમિતિ મંજુરી આપી ધારા ધેરણ રાખવાનો વિચાર થયો હતો જે નીચે શકશે. મુજબ છે – શિક્ષણ-આ આશ્રમમાં દિગંબર જૈનધર્મના ગુજરાતમાં બ્રહ્મચર્યાશ્રમ માટેના શિક્ષણ સાથે અન્ય આવક લેકિક શિક્ષણ વ્યવસ્થાપક સમિતિએ નક્કી કરેલા પઠનક્રમ પ્રમાણે ધારા ધોરણે. આપવામાં આવશે. નામના આશ્રમનું નામ “દિગંબર જૈન નિયમે (૧)-આ આશ્રમમાં દિગંબર જૈન બ્રહ્મચર્યાશ્રમ” રહેશે. વિધાથી દાખલ કરવામાં આવશે તેની ઉમર ઉદેશ-આ આશ્રમનો ઉદ્દેશ ગુજરાત પ્રાંતમાં ઓછામાં ઓછી ૭ અને વધુમાં વધુ ૧૧ વર્ષની દિગંબર જૈનધર્મમાં શ્રદ્ધાવાન આદર્શ ગૃહસ્થ હોવી જોઈએ. તેણે ૧૬ વર્ષની ઉપર સુધી બ્રહ્મઉત્પન્ન કરવાનો છે. ચારીના રૂપ માં આકશ્યક રહેવું પડશે અને જે પ્રધ-આશ્રમ ચલાવવાનું કાર્યભાર વિધાથી વિશેષ કાર સિવાય વચમાંથી ભાગવાનું એક સાધારણ સભાને શીર રહેશે તેના સભાસદ છેડશે તે તેની પાસે મંત્રી નકકી કરે તે મુજબની દિગબર ન હ ય અને ઓછામાં ઓછા ૧૮ નકશાની છોકરીના પિતા કે વાલી પાસે લેવામાં વર્ષની ઉમર હોય અને જે વાર્ષિક સભાસદી ફી આવશે. - રૂા. ૧૫) આપશે તે થશે. એનું કામ છે રહેશે. (૨) અન્ય ઉચ્ચ કેમના વિધાથ જે આA વ્યવસ્થાપક સમિતિ-આ આશ્રમની વ્ય- મના પઠનક્રમ પ્રમાણે દિગંબર જૈનધર્મની સાથે વસ્થા માટે સાધારણ સભામાંથી કમમાં કમ ૧૧ શિક્ષણ લેવા ઇછા રાખશે તો વ્યવસ્થાપક સમિઅને વધુમાં વધુ ૨૧ સભ્યો ચુંટી વ્યવસ્થાપક તિની સંમતિથી દાખલ કરવામાં આવશે. સમિતિ બનાવવામાં આવશે. તેનું કોરમ 3 નું (૩) આ આશ્રમમાં બે પ્રકારના વિધા રહેશે એમાંથી જ સાધરિ સભા કાર્યકર્તાને રહેશે. પડ વિધ થી પાસે માલિક ફી રૂ. ૧૦) ચુટશે. લેવામાં આવશે તે ત્રશુ મહિનાની પહેલી આપવી જ કાર્યકર્તા-વ્યવસ્થાપક સમિતિમાં નીચે પડશે. અનપેક વિદ્યાથી પૈs ઘિાથી એના મુજબના કાર્યકર્તા રહેશે. હિસ્સા કરતાં વધારે દાખલ કરવામાં આવશે નહીં. ૧ સભાપતિ _ _ (૪) દરેક વિદ્યાર્થીના શરીરનું વજન દાખલ ૨ ઉપ સભાપતિ કરતી વખતે લેવામાં આવશે તેમજ દરમાસે વજન - ૧ કે.બક્ષ લેવામાં આવશે અને તેની ખબર માબાપ અગર ૧ નિરીક્ષક વડીલ વાલીને આપવામાં આવશે. ૧ મંત્રી (૫) કોઈપણ બ્રહ્મચારીને અનિવાર્ય. કારણ ૧ સહાયક મંત્રી , આ સિવાય આશ્રમમાંથી ઘેર જવાની રજા આપવામાં એજ કાર્યકર્તા સાધારણ સભાના કાર્યકર્તા આવશે નહિ. વડીલ કે વાલી ખાશ્રમમાં આવી બ્રહ્મચારીને મળી શકશે. ગાશે. Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૮] (૬) વ્યવસ્થાપક સમિતિ વાર્ષિક પરીક્ષા લેશે તેનું પરિણામ બહાર પાડવામાં આવશે. दिगम्बर जैन । વર્ષે ૨૦ सुजानगढ़ के प्रस्ताव - जैन युवक संमेलन सुजानगढ़ के उत्सवमें इस प्रकार प्रस्ताव पास हुए हैं - ( १ ) संमेलनका नाम अब दि० સમાન હિતારિળી સમા રહે, (૧) જ मुफ्त देशी औषधालय खोला जाय, (३) स्था-नीय पाठशाला व कन्याशालाका प्रबंध इस समाके आधीन किया जाय व नाममें हितकारी शब्द जोड़ा जाय, (४) एक उपदेशक रखकर राजपूतानामें भ्रमण करावे, (५) पुस्तकालयका नाम हितकारी जैन पुस्तकालय रखा (૭) બ્રહ્મયારીની શારીરિક તથા માનસિક અવસ્થા સારી હૈાવી જોઇએ, શારીરિક અને માન સિક તપાસ કર્યા પછીજ દાખલ કરવામાં આવશે.જૈન (૮) પ્રવેશઃ વેળા બ્રહ્મચારીનેા અભ્યામ તેની આયુ પ્રમાણમાં હવે જોઇએ. મુલચ'દ કર્સનદાસ કાપડિયા, સુરત ટાલાલ ઘેલાભાઇ ગાંધી, 'કલેશ્વર મત્રીઓ. जय व कार्य बढ़ाया जाय, (६) एक हितकारी હવે આ આશ્રમ મમત ગુજરાતના હુમડ, નૃસિંહપરા, રાયકવાળ વગેરે બધા ભાની સમ્મતિની જરૂર છે કેમકે સર્વસંમતિ વગર આવુ ભારે કાઈ ઉપાડી શકાય નહિ, માટે ગુજ-સેવામિતિ નામ સંઘ સ્થાપિત વિયા નાય રાતનાં દરેક ગામ કે શહેરના વીસા હુમડ, દક્ષા जो जाति भाइयोंके दुःख दर्द में तनमनसे सहाહુમડ, વીસા મેાડા, નરસિંહપુરા તથા રાયકવાળ विवाह यता पहुंचावे, (७) ४५ वर्ष ऊपर के ભાઇઓએ એ બાબત પેતાની સંમતિ અમને લખી જણાવવી તથા એની સાધારણ સભામાં પેત પંચાયતીને વંર્ હો, (૮) હ્રિોમને महीन પેાતાનું નામ પાતાની ઇચ્છાથીજ લખી મેકલવું વસ્ત્રોા પ્રચાર મ યિા નાય, (૨) ક્ષમા યા જોઇએ. તેમજ વ્યવસ્થાપક સમિતિએ જે નિયમે पंचायती द्वारा बहिष्कृत व्यक्तिके साथ स्वेच्छाનક્કી કર્યાં છે તે ખાખત પશુ પેાતાના વિચારા चारीसे कोई खानपानादि व्यवहार न करें, દરેક લખી મેકલવા જોઇએ. હાલ તુરત આ ((o) નાૌ શાસ્ત્રમંડાર જીયાનેકે ક્રિયે ખાતુના પત્રવ્યવહાર સુરત કરવા. ગુજરાતમાંથી કેછૂટેશન મેના નાય । આ કાર્યને સમતિ મળશે ને સાધારણ સભામાં વિશેષ નામે ભરાશે એટલે વડેાદા જેવા સ્થળે સાધારણ સભા એલાવવાને વિચાર થઇ શકશે. પાવાઢમાં માહા સુદ ૧૩ના મેળાપર આ બ્રહ્મચ આશ્રમની સ્થાપના થાય એવી અનેક ભાઇએની ચ્છા છે અને તે પ!ર પાડવાનું કામ ગુજરાતના ભાઇઓના હાથમાં છે. સપાદક. आगरा- म्यूनिसिपालिटी में जीवदया प्र० सभा प्रयत्न से प्रस्ताव हुआ है कि जमनापार વડ઼ે. હારમેં ૮ વર્ષયે મમરા કોર્ફ भी पशु न मारा जाय । इस कसाईखाने में नित्य १०० गाय सादिका घात होता था जो इस नियमसे बहुत कम होगया है । મુંબઇના-એલક પન્નાલાલ દિ જૈન સર• સ્વતિ ભવનના વિષયમાં મુંબાઇધી શા॰ ચુતી. લાલ મલુકચંદ (ભીલેાડા ) તથા ગડીયા પાનાચ'દ ગુલા બચ'દ ( વાંકાનેર) જણાવે છે કે અત્રે સરસ્વતિ ભવનનુ કાર્ય બહુજ સારી રીતે ચાલી રહેલુ છે તે ભષ્યિમાં આ ભાત ઘણીજ ઉન્નતિ કરશે એમ આશા છે. વિશેષમાં ખાસ જણાવવાનુ કે આ સંસ્થા માટે હુમારા રાયદ્દેશ ( ઇડર ) ના ભાઆએ જે એત્રક પન્નાલાલ મહારાજને ટીપ મડાવેલી છે તેના જે રૂપ્યા બાકી હોય તે આ ભવનના તંત્રીને સુખાનંદ ધર્મશાલા મુંબઇમાં મેકલી આપવા જોઇએ. એ નાણાંના સદુપયામજ થવાના છે એ નિશ્ચય છે માટે હવે તે એ રકમ આપીજ દેવી જોઇએ વગેરે. Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंक ७] दिगम्बर जैन । जन साहित्यका महत्व व माध्यस्थमावं विपरीतवृत्ती, .. सदा ममात्मा विदधातु देव ॥१॥ उसका प्रचार। __अमितगति आ० कृत सामायिक पाठ (जैन साहित्य परिषद् सुरतमें पठित, अर्थ-हे भगवन् ! मेरी आत्मा सदा सर्व ता० २२ अप्रैल १९२.) है प्राणियों में मैत्री, गुणवानों में हर्ष दुखियोंपर दया इस अनादि अनंत अकृत्रिम जगत में जो सम्यकमार्ग आत्माको शुद्ध करके परमात्मपदमें । तथा विपरीत स्वभाव धारकों पर उदासीन भाव पहुंचानेवाला है, उसको ही . जैनधर्म" . , धारण करै । कहते हैं। अवबुद्धय हिंस्य हिंसक, - इस अनादि लोकमें आत्मा, परमात्मा तथा हिंसा हिंसा फलानि तत्वेन । मात्मासे परमात्मा होने का उपाय अनादिसे है. नित्यमवगृहमानैइससे जो जैनधर्म प्रवाह रूपसे अनादिकालसे निजशक्त्या त्यज्यतां हिंसा ॥६॥ ( पुरुषार्थसिद्धयुपाय ) चला आरहा है उस ही को प्रकाश करनेवाला अर्थ-हिंसा जिसकी हो सकती है, ऐसा " जैन साहित्य" कहलाता है । जो जैन साहित्य नीचे लिखे महत्वोंके कारण सर्व जीव हित्य प्राणी, हिंसक, हिंसा व हिंसाका फल इन मात्रका हितकारी है। चार बातोंका स्वरूप अच्छी तरह समझकर (१) यह स्वालम्बन सिखाता है । इसका विचारवानों को स्वशक्तिके अनुसार हिंसा त्याग सिद्धांत है कि यह आत्मा अपने ही पुरुषार्थसे देना चाहि देना चाहिये। अपनी उन्नति करता है । कहा है ___ साधु सर्वथा हिंसाके त्यागी होते हैं। गृहस्थ नयत्यात्मानमात्मैव नहातक कृषि, वाणिज्यादि आरम्मका त्याग न जन्मनिर्वाणमेव वा । करे वहांता संकशी ( Intentional ) जंतु गुरुरात्मात्मनस्तस्मा हिंसाका त्यागी होता है। किंतु प्रा.म्मो हिंसाको नान्योस्ति परमार्थतः ।। ७५॥ यथाशक्ति व यथास्थिति कम करता है। अर्थात् यह भात्मा आप ही अपने को संसार जैन धर्मधारी मांस, मदिरा, आदि पदार्थो को या निर्वाणमें ले जाता है । इसलिये आत्माका कभी सेवन नहीं करते और न इनको भाव. गुरु निश्चयसे आत्मा ही है। श्यक्ता ही है। (२) यह जीव मात्रका हित रखने व नीव (३) परमात्माकी भक्ति उसको प्रसन्न करने के मात्रकी रक्षा करने के लिये अहिंसा पर चलनेकी लिए नहीं किंतु अपने भावोंकी शुद्धि के लिए प्रेरणा करता है। कहा है उस समय तक करनी उचित है, जबतक निन सत्वेषु भैत्री गुणिषु प्रमोद, . आत्मामें ध्यानकी शक्ति अच्छी तरह दृढ़ न क्लिष्टेषु जीवेषु कृपापरत्वम् । होमावे। मुक्तिका साक्षात्साधन निम भात्म Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०] समाधि है । कहा है न पूजयार्थस्त्वयि वीतरागे, दिगम्बर जैन । [ वर्ष १७ काता है तथा किसी विशेष धर्मको विशेष तथापि ते पुन्यगुणस्मृतिर्न:, पुनातु चित्तं दुरिताञ्जनेभ्यः ॥५७ स्वयंभूस्तोत्र 1 अर्थ - हे नाथ ! आप राग रहित हैं इससे आपको हमारी पूजा से प्रयोजन नहीं । आप वैर रहित हैं इससे हमारी निन्दासे भी आपको कुछ मतलब नहीं, तो भी आपके पवित्र गुणोंका स्मरण हमारे चित्तको पापके मैलोंसे पवित्र करता है । करके बताता है, क्योंकि पदार्थ अनेक धर्मवाळा न निन्दया नाथ विवान्त वैरे । है । यह स्याद्वाद सर्वथा एक धर्मवाला ही पदार्थ है । इसका निषेध करके किसी अपेक्षासे विधान करनेवाला है, इसीके ७ भङ्ग होजाते हैं । स्याद्वाद नय हीसे त्यागने योग्य व गृहण करने योग्यका ज्ञान होता है । जैसे आत्मा में अस्तित्व नास्तित्व दोनों विरोधी स्वभाव हैं, किंतु भिन्न २ अपेक्षा से हैं । इसलिये कहेंगे स्यात् अस्तित्व स्यात् नास्तित्व अर्थात किसी अपेक्षा से ( अपने ही आत्मा के द्रव्य क्षेत्र काल भावों की अपेक्षासे) आत्मामें अस्तिपना या मौजूदगी है तथा किसी अपेक्षा से ( आत्माके सिवाय अन्य पदार्थोंके द्रव्यादिकी अपेक्षा ) आत्मा में अन्य या नास्तित्वका अभाव है । यदि ऐसा नहीं मानें तो मेरा आत्मा अन्य आत्मा व अनात्माओं से भिन्न है ऐसा उपादेय ज्ञान नहीं होगा । (४) इसमें पदार्थों का स्वरूप एकान्त से एकांशी न बताकर अनेकान्तसे सर्वांशी बताया है। इससे आत्मा आदि पदार्थोंका यथार्थ स्वरूप कहा गया है | यही स्याद्वाद नयका सिद्धान्त है । स्याद् अर्थात् किसी अपेक्षासे, बाद अर्थात कहना सो स्याद्वाद है । कहा हैवाक्येष्वनेति द्योती (६) कर्मबन्धकी रीतियोंका लेखा बतानेवाला गम्यम्प्रतिविशेषकः । है । कर्मजड़ सुक्ष्म पदार्थ है । अशुद्ध भावों से आत्मा के साथ उनका बन्ध पड़ जाता है तथा वही बंध समय २ पर अपना फल दिखाता है, जिससे प्राणियोंको सुख दुख भोगना होता है । कहा है स्यान्निपातोर्थ योगित्वा तव केवलिनामपि ॥ १०३ ॥ स्याद्वादः सर्वधैकान्त, त्यागात्किं वृत्तचिद्विधः ॥ सप्तभंगनयापेक्षो, हेयोपादेयविशेषकः ॥ १०४ ॥ आप्तमीमांसा, समंतभद्रकृत । अर्थ- आप केवल ज्ञानियोंके मतमें यह स्यात् अवय सो वाक्योंमें लगाये जानेसे वस्तु अनेक खभावों को रखनेवाली है इसको झल जीवकृतं परिणाम निमित्तमात्रं प्रपद्य पुनरन्ये । स्वयमेव परिणमन्तेऽत्र पुद्गलाः कर्मभावेन ॥ १२ ॥ ( पुरुषार्थसिद्धयुपाय ) अर्थ-जीव किये हुए भावका निमित्त पाकर Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [११ अंक ७ दिगम्बर जैन । पुद्गल आप ही कर्म रूरसे बंध जाते हैं । जैन (२) जैन मूल साहित्यको तथा उसके भिन्न साहित्यके सिवाय अनैनोंके साहित्यमें इसका १ विषयके रहस्यको प्रगट करनेवाली पुस्तकोंको विधान नहीं मिलता है। स्वदेश परदेशकी अनेक भाषाओं में लाखों (६) इस जैन धर्ममें जो साधुके व गृहस्थके करोड़ों प्रतिएं मुद्रित कराकर विना मुल्य या आत्मोन्नतिके साधन हैं उन सबोंको पालते हुए अल्प मूल्यमें वितरण करना चाहिए। वर्तमानमें सुख शांति प्रगट होती है व मन (३) जो अनैन धर्मपर श्रद्धा लावें उनको अतिशय न्यायमार्गी होता है तथा भविष्यमें जैन धर्मकी दीक्षा देकर उनके व्यवसाय व सुख शांतिके निमित्त मिलते हैं । कहा है- आचार विचारके अनुकूल उनका वर्ण स्थापित सुखितस्य दुःखितस्य च करके उनके साथ संबंध करके उनको अपने में संसारे धर्मएव तवकार्यः। मिलालेना चाहिए। इन तीन उपायोंको जब सुखितस्य तदभिवृद्धयै, तक प्रचारमें न लाया जायगा तबतक केवलमात्र दुःखभुजस्तदुपघाताय ॥ १८॥ प्राचीन साहित्यकी रक्षा करना धनको जमीनमें आत्मानुशासन । गाड़नेके समान होगा। दिगम्बर जैनाचार्योके अर्थ-संसारमें सुखी हो या दुःखी हो हरए- प्राचीन साहित्यका-जैसा मुझे ज्ञान है अमूल्य . कको धर्म करना चाहिए । इससे सुखीके सुखकी भंडार अभी बहुतसा ताड़पत्रों पर है। वृद्धि होती है व दुःखीका दुख दूर होता है। दिगम्बर जैनोंके प्राचीन इत्यादि अनेक महत्वपूर्ण जैन धर्मको प्रकाश भंडार के स्थान । करनेवाला यह जैन साहित्य है, इससे जगत- १-कांची देश मदरास ( श्रीयुक्त भट्टारक मात्रका सच्चा, हित होसकता है परन्तु खेद है कांचीके पाप्त) इस साहित्यका प्रचार बहुत कम है। भारतमें २ मूडबिद्री (साऊथ केनेरा) केवल ११॥ लाख ही इसके माननेवाले हैं। ३-जनबद्री ( श्रवणबेलगोल-मैसुर ) इस जैन साहित्य परिषदका कर्तव्य होना ४-कोल्हापुर ( मट्टारक लक्ष्मीसेन ) चाहिए कि वह इस साहित्यका दुनियामें प्रचार ५- .. करे, जिसके लिये ये उपाय करने योग्य हैं- ६-शोलापुर दिगम्बर जैन मंदिर (१) जैन साहित्यके ज्ञाता ऐसे विद्वान् तैयार ७-कारंजा ( अकोला ) मंदिर देवसंघ, सेनसंघ करना चाहिए जो स्वदेश परदेशमें भ्रमण करके काष्ठासंघ भनेक भाषाओंमें जैनधर्मका महत्व जनताके ८-नागपुर दि. जैन मंदिर दीतवारी चित्त पर अंकित कर सकें। चीन, जापान, ९.ईडर . , ममेरिका, माफ्रिका, भरब, युरुप सर्वत्र जैन १०-सोजित्रा , व्याख्याताओंको जाना चाहिए। ११-करमसद , Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२] 97 १२- सुरत १३ - नागौर ( जोधपुर ) १४- जैपुर गोपीपुरा र १५ - उदयपुर दि० जैन अग्रवाल मंदिर १६ - इन्दौर उदासीनाश्रम व मारवाड़ी दिगम्बर जैन मंदिर १७- झालरापाटन मंदिर शांतिनाथ व सरस्वती भवन दिगम्बर जैन । १८- बम्बई दि० जैन मंदिर तेरापंथी व ऐलक महाराज पन्नालाल सरस्वती भवन १९- दिइली धर्मपुरा पंचायती व नया दि० जैन मंदिर 59 २०- आगरा दि० जैन मंदिर मोतीकटरा . २१ - मैनपुरी २१- वटेश्वर " २१- आरा जैन सिद्धांत भवन २४- कलकत्ता दि० जैन मंदिर २९ - सीकर २६ - अजमेर २७ - महुआ जिला सुरत २८ - सागवाड़ा (मेवाड़ ) जहां २ प्राचीन संस्कृत प्राकृत ग्रंथोंकी संभावना है उनके कुछ नाम ऊपर दिये हुए हैं । यदि साहित्य परिषद जैन साहित्यको अनेक भाषाओं में अनेक देशोंमें प्रचार करनेके लिए कोई योजना करके यथोचित द्रव्य व प्रबंधकी व्यवस्था करेगी तो मैं इस परिषदका अधिवेशन सफल समझंगा । जैन साहित्य प्रचारका प्रेमी ब्र० शीतलप्रसाद । >> [ वर्ष दिनचर्या । මෙමෙමේ (लेखक: - पं० अभयचंद काव्यतीर्थ- इन्दौर (1) -[ विशेषांक से आगे ] कोई यह समझकर कि अधिक खानेसे अनेक रोग पैदा हो जाते हैं बहुत ही थोड़ा खाने लगे तो वह भी उल्टे रास्तेपर है क्योंकि पाचनशक्ति बढ़ी हुई है और हलके निस्सार पदार्थ खानेको मिलें ऐसी हालत में उस पाचन शक्तिको पूरा दह्य ( पचाने लायक ) इंधन ( भोजन ) नहीं मिलने से शरीरकी धातुओंका पाक करती है । जिससे शरीर के बल, वीर्य, ओजका नाश होता है । जो बहुत ज्यादा भोजन करते हैं उनके आहारका परिपाक बड़ी मुश्किलसे होता है । थके हुए आदमीको उचित है कि जबतक थकावट दूर न हो न भोजन करे और न पानी पिये ऐसा नहीं करनेसे, बुखार, वमन, अनीर्ण आदि रोग पैदा हो जाते हैं । जिस समय पेशाब पाखाना जानेकी इच्छा हो, चित्त खिन्न हो, बहुत अधिक प्यास लगी हो उस समय भोजन न करे अर्थात् इन सब बाधाओं को दूर करके भोजन करे । भोजन करनेके बाद शीघ्र ही व्यायाम और मैथुन करनेसे भोजनका परिपाक अच्छी तरह से नहीं होता और कभी २ उदरशूल व वमन भी होने लगती है । जन्म से लेकर जो चीज खाने पीने व लगामेमें उपयोग करने से अनुकूल पड़ जाती है वह Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिगम्बर जैन | अंक ७ ] विष भी क्यों न हो पथ्य है । जो वस्तु हितकर है परन्तु प्रकृति के प्रतिकूल है। तो भी उसका सेवन करे और जो वस्तु अंतमें दुःख देनेवाली अहितकर है वह तत्कालमें प्रकृ तिके अनुकूल - सुखकर भी हो उसका सेवन नहीं करे । बलवानको सभी भली बुरी चीजें पथ्य हैंपचसकती हैं ऐसा समझकर हालाहल जहर नहीं खाना चाहिये क्योंकि जो अत्यन्त निपुण और अगद तन्त्रके जानकार भी हैं अर्थात विष वैध हैं, उनका भी किसी समय समुचित चिकित्सा नहीं करनेसे विषसे भी मरण होजाता है अर्थात विष उनका मुलाहजा नहीं करता है। इस विषवैद्य के दृष्टान्तसे पूर्वोक्त उपदेशका समर्थन किया गया है जिस तरह विषके खाने व सांप आदिके काटने से और उसका उचित प्रतीकार नहीं करनेसे विषवैद्यकी मृत्यु हो जाती है उसी तरह अंडबंड पदार्थोंके खानेसे मनुष्य की भी मृत्यु हो जाती है । अतिथि और अपने आश्रितों (जिनका भरण पोषण करना अपने आधीन हो ) को आहार प्रदान करने के बाद स्वयं भोजन करना चाहिये । चित्तको एकाग्र करके देव, गुरु और धर्मकी विश्वास नहीं करता है । उपासना करना चाहिये । स्वतंत्रता-स्वाधीनता मानवजीवनके लिये परम रसायन है । यह परम रसायन जिनके पास नहीं है वे जीते हुए भी मृतकोंके समान हैं । आचार्य वादी सिंह ने लिखा है [ १३ पराधीन जीवन से मरना ही अच्छा है । जंगलों में स्वच्छन्दता पूर्वक विहार करनेवाले गजरान हमेशा सुखचैन से जीवन बिताते हैं । हमेशा सुखके लिये सेवन करने योग्य दो ही वस्तुयें है । १ रसीला, मनोहर, स्वच्छन्द भाषण और तांबूल भक्षण | बहुत अधिक समय तक उकरूँ बैठकसे नहीं बैठना चाहिये क्योंकि उकरूँ बैठक बैठने से रसको बहानेवाली नसें जड़ होजाती हैं जिनसे उनमें भलीभांति रसका संचार नहीं होता है अतएव वह अंग सूब जाता है । हमेशा बैठे ही नहीं रहना चाहिये जो हमेशा बैठे रहते हैं वे आलसी होजाते हैं और उनके हाथ पैर आदि अंग शिथिल पड़ जाते हैं, तोंद बढ़ जाती है तथा विचारशक्ति और संभाषण शक्ति भी कुंठित होजाती है । शारीरिक व मानसिक परिश्रम मात्रा ( हद्द) से अधिक नहीं करना चाहिये क्योंकि अधिक परिश्रम करनेसे कालमें ही बुढ़ापा आ जाता है। किसी भी कार्यके प्रारंभ करनेके पहिले परमात्माका स्मरण अवश्य करना चाहिये । जो नास्तिक हैं देव गुरु धर्मको सच्चे हृदयसे नहीं मानते हैं ऐसे पुरुषोंके ऊपर कोई भी जिसके क्लेश, कर्मो का फल और इच्छायें नहीं हैं वही ईश्वर है । अन् अन, अनंत, शंभु, बुद्ध, तमोन्तक (अज्ञान अंधकार का नाश करने - वाला) ये सब विशेष नाम उसी ईश्वर के हैं । जिस तरह से अपने को पूर्ण सुख स्वाधीनता जीवितान्तु पराधीनाज्जीवानां मरणं वरम् । मिले उसी तरह से कार्योंके लिये दिन रात्रिका Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिगम्बर जैन | [ १४ ] विभाग कर लेना चाहिये । कालका विभाग न करके वे मौके कार्योंके करने से किसी भी कार्य में सिद्धि नहीं मिल सकती प्रत्युत मनुष्य अनेक आपदाओंके जाल में फँस जाता है । बहुत जरूरी काममें समय की प्रतीक्षा नहीं करना चाहिये । अवश्य करने योग्य कार्यमें मौकाको हाथसे खोना न चाहिये । अपनी रक्षा में किसी समय भी प्रमाद नहीं करना चाहिये । जो आदर सम्मानका भाजन और अधिकारी नहीं हो उसको राज सभा में प्रवेश नहीं कराना चाहिये । पूज्य पुरुषका उठ करके अभिवादन व आदर सत्कार करना चाहिये । देव गुरु और धर्म संबंधी कार्योंको किसीके भरोसे पर न छोड़कर अपने हाथोंसे करना चाहिये । किसी प्राणीको कष्ट पहुंचाकर या वध करके काम क्रीडा न करे | पर स्त्री माता भी क्यों न हो उसके साथ में एकान्त स्थानमें निवास नहीं करना चाहिये । क्रोधका बड़ा भारी कारण उपस्थित होनेपर भी माननीय पुरुषका उल्लंघन व तिरस्कार नहीं करना चाहिये । जबतक किसी आत्मीय विश्वस्त पुरुषके द्वारा शत्रु स्थानकी परीक्षा ( जांच ) न करा ली जावे तबतक उस स्थान में प्रवेश न करे । अनजानी सवारी (घोड़ा आदि) पर न बैठे जबतक किसी तीर्थ स्थान व संघ (मात ) के । [ वर्ष १७ बारे में आत्मीय पुरुषोंके द्वारा परीक्षा (जांच) न करा ली जावे तबतक उस तीर्थस्थान व संघमें प्रवेश नहीं करे | असंभ्रान्त नीतिज्ञोंने जिस मार्गपर चलने का उपदेश दिया है उसी मार्गपर चलना चाहिये । विषको नाश करनेवाली औषधियों और मणियोंको हमेशा धारण करना चाहिये । आचार्य वाग्मटने भी लिखा है 'धारयेत्सततं रत्न सिद्ध मंत्र महौषधी : ' उत्तम शुभ मणियों सिद्ध मंत्रों और महौषधियोंको हमेशा धारण करना चाहिये । हमेशा अपने पास रखना चाहिये । सलाहकार, चिकित्सक और ज्योतिषियों को भोग्य ( अन्नादि ) उपभोग्य ( वस्त्रादि ) वस्तुएँ सविष हैं अथवा निर्विष इस बात की वाले पुरुषोंके नेत्रोंकी चेष्टा, वार्तालाप, शरीरकी Perfar और इनको बनानेवाले, देनेवाले व रखनेचेष्टा, मुखकी विकृति और प्रश्न आदिसे परीक्षा करे | आचार्य वाग्भटने भी लिखा है— विपदः श्याव शुश्कास्यो / स्वेदवेपथुमांखस्तो भीतः स्खलति जृंभते || १२|| विलक्षो वीक्षते दिशः । अष्टांग हृदय सूत्रस्थान अ० ७ विषको भोजन आदिमें मिलाकर खिलानेवाले पुरुषका मुख सुख जाता है और काला पड़ जाता है, लज्जित होकर चारों तरफ देखता है कि मेरे दोषको कोई समझ तो नहीं गया ऐसी शंकासे शरीर में पसीना और कपकपी आजाती है, उद्विग्न चित्त और भयभीत होता है, चलते समय पद पदपर लड़खड़ाता है और भकारण जमाई लेता है । Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लक्षण हैं। अंक ७] दिगम्बर जैन । अमृत वायु :( वायें नथनेकी श्वास,-वाम विषयी पुरुषको हमेशा बानीकरण ( पौष्टिक स्वर ) के बहनेपर ही हमेशा कार्योंको करो। वीर्यवर्धक ) द्रव्यों का सेवन करते रहना दाहिने नथनेसे जब श्वाप्त आवे तभी भोजन, चाहिये । मैथुन, और युद्ध करनेकी इच्छा करे। जिनमें बल पौरुष कम हैं परन्तु विषयी जो दूसरोंको अपने समान बनाता है अथवा अधिक हैं अतएव विषय सेवनसे उत्पन्न हुए अपने समान समझता है वह न किसीका वैरी रोग जिनका पीछा नहीं छोड़ते हैं ऐसे पुरुषोंक होता है और न कोई उससे द्वेष करता है। शरीरकी क्षयसे रक्षा करने के लिये ही बाजीक मनकी प्रसन्नता, परवार की अनुकूलता, शुभ रण चिकित्सा कही जाती है । शकुन, अनुकूल और शुभ वायुका वहना ये ठौकरी ( बहुत कालसे व्यानी हुई ) गायके भागामी होनेवाली कार्यकी सिद्धिके सूचक है, दृधमें बनाई गई उड़दकी खीर सबसे श्रेष्ट बाजीकरण योग है । जो स्त्री कामिनी नहीं हो भयानक जंगल व पहाड़ों में अकेले नहीं उससे संभोग नहीं करे। घूमे । मन वचन और कायको अपने वशमें । ____समान-समायोग ( बराबरीका सम्बन्ध ) से स्वखे । आकाशमें चंद्र आदि नक्षत्रों के दिखनेसे पहिले संध्योपासना करे । बढ़कर दूसरा कोई श्रेष्ठ उपाय स्त्री पुरुषोंको जहांतक होसके दिनमें संभोग नहीं करे वशमें करनेका नहीं है । यदि इन्द्रियोंके परवश होने आदिके कारण ___समान प्रकृति, समान उपदेश और काम दिनमें चक्रवाककी तरह संभोग करे तो रात्रिमें क्रीड़ामें एकप्ती स्वाभाविक चतुरता ये तीनों स्निग्ध दुध आदि पदार्थो का सेवन अवश्य करे । ही समान समायोग होनेमें कारण हैं। चकोरकी तरह रात्रि में संभोग करने की इच्छा निसको पाखाने का वेग आया है, भूखा करनेवाला पुरुष दिनमें स्निग्ध पदार्थों का सेवन प्यासा हो व मिसकी आखें दुखने आई हैं, ऐसे पुरुषों को विषय संभोग नहीं करना अवश्य करे। कबूतरकी तरह अहर्निश विषय सेवन करनेवाले र चाहिये । यदि ऐसी दशामें विषय संभोग पुरुषको उचित है कि वह हमेशा बानीकरण ___ करेगा तो शरीरके जीवनभूत ओनका नाश वृष्ययोगोंका सेवन अवश्य करे। आचार्य होगा। प्रथम तो इन रोगियों के दृषित वीर्यसे गर्मावाग्मटने भी लिखा है-- धान होना ही असंभव है यदि कदाचित गर्भ वानीकरणमन्तिच्छेत्सततं विषयी पुमान् । ...n भी रह नाय तो उत्पन्न हुमा बालक, अत्यन्त अल्प सत्वस्यतु क्लेश वाध्यमानस्य रागिणः॥ पारीरक्षय रक्षार्थ वाजीकरणमुच्यते ॥ ५॥ दुर्बक, अल्पायु, माताके उन २ रोगोंवाला, अष्टांग इ० उत्ता तंत्र अ० ।। और सदा रोगी होगा। Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ VALOR SIL गतिथि 7O/ दिगम्बर जैन वर्ष १७ तीनों संध्याओं में, दिनमें, जलमें और देवा- NNANJAVAJNANA NA NANNAR लयमें मैथुन नहीं करे। हमारा काम प्रत्येक पर्वमें, पर्वकी संधिमें और भीगन ( घटे हुए दिन ) में कुलीन स्त्रीके साथ AGRIRIKNIKARNATARI संभोग नहीं करे। (१) जिस स्त्रीके साथ पाणिग्रहण हआ है उसी हमारा केला है यह . काम । स्त्रीके साथ संभोग करे उससे भिन्न दसरी कि जासे होता है बदनाम ॥ स्त्रियोंपर निगाह भी नहीं डाले। किन्तु हम कुछ भी सोचें नहीं। जो कुल, विद्या, धन, उम्र और आम्नायके दुर्गणोंसे दिल मोचें नहीं॥ अनुरूप भेष व आचार विचार नहीं रखता है ऐसे किस पुरुषकी हंसी नहीं होती अर्थात् सुना है हमने ऐसा ब्यान । होती ही है। सताना नहीं पराई जान ॥ द्वारपाल ( पहिरेदारो ) को उचित है कि, किन्तु देते न इस पर ध्यान । जबतक किसी चीज़की परीक्षा और परिशोध दुखावें सदा पराये प्रान ॥ नहीं कर लेवे तबतक किसी चीजको व पुरुषको न राजगृहके भीतर जानेदेवे और न बाहिर यदि अब आप बताते हैं । भानेदेवे। कि हम जैनी कहलाते हैं । ऐसी ऐतिहासिक घटनायें प्रसिद्ध हैं कि और- : २. अहिंसा धर्म हमारा है । तके भेषको धारण करनेवाले कुन्तल देशके महा __ भो सब जीवों को प्यारा है ॥ राजाके गुप्तचरने कानके पासमें गुप्तरूपसे छिपायी हुई तलवारसे पल्लवक रानाको और हयपतिने में ढेके सींगमें भरे हुए विषके द्वारा दया ही धर्म हमारा है। कुशस्थलेश्वरको मार डाला था । दया ही कर्म हमाग है ॥ - हरएक स्थानमें अविश्वास नहीं करना चाहिये दयाके खातिर देखो हम । क्योंकि ऐसा करनेसे किसी जगह भी कोई छान पय पीते देखो हम ॥ काम सिद्ध नहीं होसकता। रात्रि भोजन नहिं करते हैं । पवित्र काश्मरी केशर न पर प्राणों को हरते हैं । का भाव ३) फी तोला है। आप क्यों यह बतलाते हैं। मैनेजर-दि० जैन पुस्तकालय-सूरत। कि परके प्राण सताते हैं । Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंक ७ ] (६) आपने जो कुछ किया बयान । सुना मैंने उसको घर ध्यान ॥ किन्तु मैं भी कुछ जतलाता । तुम्हारी भूलें बतलाता ॥ (19) इसे मैं भी करता स्वीकार | आपका धर्म अहिंसा सार ॥ अहिंसा कहते हैं किसको । आप ही बसका मुझको ॥ दिगम्बर जैन । (<) यदि नहीं आप बताते हैं । तो फिर क्यों ! उलटे जाते हैं । हृदयको जरा थामलो तुम । अक्कसे जरा काम को तुम ॥ ( ९ ) ! अपने प्राण दुखाना है । न परके प्राण सताना है | दयाका भाव दिखाना है । स यही कहना है ॥ ( १० ) बात यह हमने भी जानी । आप नित पियं छान पानी || रात्रि भोजनके त्यागी हो ! अहिंसाथ अनुगगी हो || (32) रात्रिको क्या नहिं खाते हो । साफ क्यों नहिं बतलाते हो ॥ सिर्फ क्या बनाज तन देना | हुआ विशयोजन राम देना || - [ १७ खाते ! (१२) मिठाई कंदमूल कहो हिंसासे बच जाते ॥ बड़ी पापड अरु बिया अचार । वर्षभरी करते स्वीकार ॥ (१३) पर्व हरी वस्तुका त्याग | करोड़ो कर धार्मिक अनुराग ॥ कावते घोटकपर बहु भार । उदरभर देते नहीं महार (१४) कहते हो ॥ करते हो भरते हो ॥ कलह भापसमें करते हो भाईसे भाई मुकदमा बानी गवाही झूठी (११) सत्य व्यापार छोड दीना । झूठका मारग गइ लीना ॥ करटकी पइिन गले में माळ | खूब ही ठगा पराया माल ॥ (१६) बताओ इन कामों में क्या ? नहीं होती है हिंसा क्या ? इसी पे मेरा कहना है । जिसे तुमको महलेना है ॥ ( १७ ) यदी हो दया धर्मधारी । छोड दो विपरीतता सारी ॥ धारकर सत्य हिंसाको । " प्रेम " छोडो सब हिंसाको || प्रार्थी - प्रेमचंद पंचरत्न भदावर प्रा० दि० जैन वि० भिण्ड Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ <] दिगम्बर जैन [ થવું ૨૦ અથી એ અનભિજ્ઞ છે, અને તેથી આ જગપૂ જ્ય મહાત્મા સંબધી આ મહાત્માની સાહિત્ય પ્રવૃત્ત સાધી-જેટલા જેનેતરા-ખાસ કરીને પાશ્ચાત્ય દેશોના વિદ્યાના અભિન છે, તેટલા જેવા ને નથી. અસ્તુ !-ગમે તેમ હું ! આજે મારૂ ક સ્વસ્થ સુરીસ્વરજી મહારાજની સાહિત્ય પ્રશ્નત્તિનું યત્કિંચિત્ અશમાં દિગ્દર્શન કરાવવું એ છે. આશા છે કે આપ સા આ મહારાજશ્રીની સાહિત્ય પ્રવૃત્તિ ઉપર અવશ્ય ધ્યાન આપશેા. પરિચય— श्री विजयधर्मसूरि જૈન સાહિત્ય પરિષદ્દ સુત્તમાં સા૦ ૨૨-૫-૨૪ પંચાયરો નિબંધ ). He is one of the most impressive personalities I ever met within the whole world. (Dr. Sylvain Levi). મેં આના જેવા પ્રભાવશાળી પુરૂષને વિશ્વમાં પ્રાસ નથી કર્યાં. જે જૈન મહાત્મા માટે કૈં ચા પ્રસિદ્ધ વિદ્વાન ઉપર પ્રમાણેના અભિપ્રાય માપે છે, તેમની સાહિત્ય પ્રવૃત્તિ સંબંધી કંઇક રૂપરેખા આજ આ પષિદ્ સમક્ષ રજુ કરૂ તે અગાઉ એટલુ કહેવું આવશ્યક સમજું છું કે આ પરિષદ્ તેજ સાહિત્ય પરિષદની બીજી બેઠક છે, જેના પ્રારંભ ૩. સ. ૧૯૧૪ માં સ્વસ્થ શ્રી વિજયધ સુર મહારાજના પ્રયત્નથી જોધપુરમાં થયા હું . અને જેના પ્રમુખ ડા• શતીશચંદ્ર વિધમ ગુ હતા. ઘણા વર્ષો બાદ પણ તેની આ બીજી એડ ભરાય છે એ જાણી આનંદ થાય છે. અને અ કર્યું ઉ!વનાર મુનિરાજ માણેક મુનિ તથા શે! છત્રયદ સાકરચ'દ જવેરીને હું ધન્યવાદ આપું છું. મહાત્મા વિજયધર્માં સુરને કાણું નથી જાણતું ? જેમણે પેાતાનું આ ખુ જીવન સાદંત્ય પ્રવૃત્તિ દ્વારા જૈન શાસનની સેવામાં વ્યતીત કર્યું છે, એના સંબંધમાં આટલા ટૂંકા સમયમાં અને હું ! કલેવરમાં શું લખી શકાય ? પણ ખરૂં કહું તા આ સાહિત્ય મૂર્તિના સબંધમાં અત્યાર સુધીમાં જે કાંઇ લખાયું છે, તેજ જોવાની અને તે ઉપર મનન કરવાની જૈન સમાજને કુરમુદ નથી-બીજા શબ્દોમાં કહું તે જૈનક્રામ વ્યાપારી કામ હેાવાથી સાહિત્ય એ શી વસ્તુ છે અને સાહિત્ય પ્રવૃત્તિ કરવામાં કેટલી મુશ્કેલીઓની સામે થવું પડે છે, આચાર્ય શ્રી વિજયધમ સૂરિજી મહારાજના અંગત પરિચય કરાવવા એ સુર્યને દીપકથી ખતાવવા ખરાખર છે. જેમના સત્રાસા શિષ્યા આજ જૈન સમાજ ઉપર ઉપકાર કરી રહ્યા છે, એવા શાન્તમૂર્તિ મહાત્માશ્રી વૃદ્ધિચંદ્રજી મહારા ના આ શાસનપ્રભાવક શિષ્યરત્નના જીનન પ્રસગા તેમનાં અનેક ભાષામાં જેવી કે હિન્દી, ગુજરાતી, અંગ્રેજી, મરાઠી, સિંહલી, ઉર્દુ, ફ્રેંચ, જર્મની, ઇટાલી આદિ ભાષામાં પ્રગટ થએલાં જીવન ચિત્રા ઉપરથી આપ સૌ જોઇ શકા છે, અને તેથી સમય અને સ્થાનના અભાવ હાવાથી તેમનાં જીવન સંબંધી બીજું કાંઇ પણ ન લખતાં આ નિબંધમાં માત્ર હું તેમની સાહિત્ય પ્રવૃત્તિનેાંજ ઉલ્લેખ કરવા ઇચ્છું છું. સસ્થા આપણા આ સ્વસ્થ આચાર્યશ્રોનું ક્ષક્ષ શિક્ષા પ્રચાર તરફ્ પ્રથમથીજ ગયું હતુ. જે વખતે જૈન સાહિત્ય અધકારમાં સડી રહ્યું હતું, જે વખતે સત્કૃત અને પ્રાકૃત ભાષાની શિક્ષાપાલી જૈન સમાજમાંથી નષ્ટપ્રાય: થઇ હતી અને જે વખતે સારા સારા જૈન સાધુએ પણુ સુખાધિકાનેા પાઠ કરી લેતાં પેાતાને મહાન વિદ્યાન સમજતા હતા, તે વખતે આ સુરિજીએ આ અધકારમાંથી જૈન સમાત્રને બહાર કાઢવાનું ખીડું ઝડપ્યું હતું, સંસ્કૃત અને પ્રાકૃતના ઉદ્ધાર કરવાનું કામ હાથ ધરી કાશી જેવા ક્ષેત્રમાં “ શાવિજય જૈન સંસ્કૃત પાઠશાળા Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ બત્ત હું] સ્થાપન કરી. આ,પાઠશાળાએ જે ઉપકારા કર્યા છે એ એના ઉંડા અભ્યાસીજ સમજી શકે તેમ છે. આ પાઠશાળા માટે વધારે ઉંડા નિરીક્ષણુમાં ન ઉતરીએ તાપણુ અત્યારે એટલું તેા જોઇ શકાય છે કે સાધુ અને ગૃહસ્થામાં જે એક મેટી સખ્યા વિદ્વાનાની જોવાય છે તે આ પાઠશાળાતેજ આભારી છે. दिगम्बर जैन | પડિત હરગાવિંદદાસ, ખેચરદાસ, વેલસીભાઇ, જગજીવનદાસ, વીરજીભાઇ, ભીમજીભાઇ, (સુશીલ) ત્રીજે-વનદાસ, અમૃતલાલ, દલીચ, તથા સાધુ વર્ગોમાં આચાયશ્રા આખા શિષ્યવ` વિગેરે આ પાઠશાળાનાજ વિદ્રા છે. ટુંકમાં કહું તા લગભગ ૪ વિદ્યાા આ પાઠશાળામાંથી ઉત્પન્ન થયેલા અત્યારે જન સમાજમાં વિદ્યમાન છે t re જ્ઞાન મંદિર આગરા મા પણ આદર્શ સંસ્થાએ અત્યારે વિધમાન છે. આચાર્યશ્રીની આ બે સંસ્થાએ ઉપરાંત, યશોવિજય જૈન ગુરૂકુળ પાલીતાણા, શાંવૃદ્ધિ જૈન ખાલાશ્રમ મહુવા, જૈન À૦ ૩૦ પૂ૦ એફિગ લીમડો, શ્રી વીરતત્વ પ્રશ્નાશક મડળ, શિવપુરી', હેમચંદ્રાચાર્ય જૈન લાયબ્રેરી બનારસ, ધર્મવિજય જૈન લાચબ્રેરી વીમગામ, વિજયધમ લક્ષ્મી આ પ્રસિદ્ધ અને આદર્શ સંસ્થાએ ઉપરાંત ગુજરાત, કાઠીયાવાડ, મારવાડ અને મેવાડમાં સ્થાપન કરાએલી અનેક નાની મેાટી સંસ્થાએ પણ માજીદ છે, શિક્ષાના પ્રચાર અને અજ્ઞાન રૂપે અધકારને દૂર કરવાના સૂરિજીના પ્રયત્ન જૈન સમાજથી કાઇપણુ રીતે ભૂલાય તેમ નથી. ગ્રંથ પ્રકાશન— ઉપર જે યંશાવિજય જૈન ગ્રંથમાલા નું નામ લેવામાં આવ્યું છે, તે ગ્રથમાલાએ જે કાંઇ કામ કર્યું છે, તે કાઇથી અજાણ્યું નથી. યદ્યપિ આચાર્યશ્રીની છેલ્લા સમયની માંદગી અને સ્વર્ગવાસ એ કારણેાએ આ ગ્રંથમાલાને ઘણી મંદ ગતિવાલી બનાવી દીધી છે, તાપણુ અત્યાર સુધીમાં તેમાં સંસ્કૃત, હિન્દી અને ગુજરાતી ભાષાનાં લગભગ જે ૧૦૦ ગ્રન્થા પ્રકાશિત થયા છે તેનું મહત્વ તેજ સમજી શક્યા હશે કે જેમણે તે ગ્રન્થા જોયા હશે કિવા તેના અભ્યાસ કર્યા હશે. પિ છેલ્લા કેટલાક સમયથી કેટલીક જૈન પિ આ પાઠશાળા આચાર્યશ્રીની દેખરેખ નિચે માત્ર ૧૦ વર્ષ ચાલી, તેના જીવન પર ઉપર અનેક આધાત પ્રત્યાધાતા થયા તેમ છતાં પણ એટલી ટુંકી મુદ્દતમાં પાઠશાળાએ સમાજને જે ફળ ચખાડયુ' છે એ કાઇ પણ રીતે ભૂલી શકાય તેમ નથી, પાઠશાળાએ વિદ્યારાજ ઉત્પન્ન નથી કર્યા, પરંતુ જૈન સમાજમાં સંસ્કૃત અને પ્રાકૃતના અભ્યાસનું જબરદસ્ત વાતાવરણ ઉત્પન્ન કર્યું. છે એટલુંજ નહિ પરન્તુ પાશ્ચાત્ય દેશામાં જૈન સાહિ-સંસ્થાએ સરી સોંપત્તિ સાથે પ્રાચોન ગ્રન્થા ત્યની જે પ્રવૃત્તિ વધવા પામી છે તેમાં પઠશા બહાર પાડવાનું કામ આર્જ્યુ છે. અને તે સારી ળાના અને આચાર્યશ્રીએ સ્થાપેલ યોાવિજય પ્રગતિમાં ચાલી રહ્યું છે, પણ આ ગ્રન્થમાજૈન ગ્રંથમાલાનાજ મોટા હિસ્સા છે. આચા- લાગે, જ્યારે સા નિદ્રામાં હતા ત્યારે બગૃત [શ્રીની આ બન્ને સંસ્થાઓએ, પાશ્ચાત્ય વિદ્યા- થઇને વ્યાકરણ, કાવ્ય, કાશ અને નાટકના ગ્રંથા નામાં, કાઇ પણુ જીનામાં જુની અને સંગીત બહાર પાડી જૈન સાધુઓને અભ્યાસની સરળતા કામ કરનારી સસ્થાથી પણ ચઢીઆતી ખ્યાતિ કરી આપવા સાથે જૈન સાહિત્યના ખાનામાં પ્રાપ્ત કરી છે. પણ આવા સુન્દર ખારાક અખૂટ ભરેલા છે એવુ બતાવી આપવાના જે પ્રાથમિક યશ આ સંસ્થાએ લીધા છે, તેને આપણે કદી પણુ ભૂરી ન શકીએ, વિશેષાવશ્યક” જેવા મહાન ગ્રન્થને, ગ્રન્થને નહિં કિન્તુ, જૈન સાહિત્યના ખજાનાને બહાર પાડવાનું. સાભાગ્યે આ સસ્થાનેજ પ્રાપ્ત થયું છે. આ ઉપરાંત હિન્દી અને ગુજરાતી ભાષાના જે જે અન્યા આ સંસ્થામાં પ્રકાશિત થયા છે. Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૦ ] વિજાપર તૈના [ વર્ષ ૨૦ તેનું મહત્વ પણ કઈ ઓછું નથી. એક ભાષાનો ૧૫ એતિહાસિક રામ સંગ્રહ ભા-૧ જન ગ્રન્ય કોઈ વિદ્વાન લખે અને તેને કોઈ ૧૬ ભા-૨ સંસ્થા પ્રકાશિત કરે તો તેની કૅપિ વસધી I , ભા-૩ કબાટમાં સડવા છતાં તેને કોઇ આદર ન કરે. ૧૮ ઐતિહાસિક પ્રાચીન તીર્થમાલા સમાજની આવી સ્થિતિમાં આ ગ્રન્થમાલામાં ૧૮ યોગશાસ્ત્રનું સંશોધન નોટ સાથે પ્રકાશિત થએલા હિન્દી અને ગુજરાતી ગ્રન્થની ૨૦ પ્રમાણ પરિભાષા (સવ રૂપે ) એક એક નદિ કિનું ચાર ચાર પાંચ પાંચ કે ૨૧ જૈન તત્વજ્ઞાનમ તેથી વધારે આવૃત્તિઓ બહાર પડયાનું આપણે - ૨ એસોની ફીલીપીના આક્ષેપનો જવાબ- ઇગ્લશ) જોઈ શકીએ છીએ. આ બધું શું બતાવે છે ? તે આ ઉપરાંત તેઓશ્રીના લખેલા સામાજિક ગથેનું મહત્વ કે બીજું કાંઈ? : " ધાર્મિક અને આશિક લેખોને એક ઢમલો ગ્રન્થ લેખન તેમના સંગ્રહમાં મૈ જુદ છે, જે પ્રકાશિત થાય - આચાર્યશ્રીએ માત્ર જુના અને નવીન ગ્રંથે તે જન સમાજ ઉપરજ નહિ, દુનિઆની આખી પ્રકાશિત કરીને જ સમજ ઉપર ઉપકાર નથી જનતા ઉપર મહાન ઉપકાર થાય તેમ છે. - તે, પોતાની વિદત્તાના ફળ રૂપે એક સુરિજીના ગ્રન્થનું મહત્વ કેટલું ? એનું અનું. વિશાળ સાહિત્યનો ઢ મલો આપને વારસામાં પણ માન હું ન કરી શકે. એ તે એક અભ્યાસક આપી ગયા છે. અનેકાનેક પરોપકારની પ્રવૃત્તિ- દષ્ટિએ તે ગ્રન્થનો ઉડો અભ્યાસ કરનારજ કરી શકે આમાં રાત દિવસ ગુંથાએલા રહેવા છતાં, સંખ્યા, તેમ છતાં તેમના જૈન ગ્રંથો પ્રજાજે નહિ–જનેતર બંધ ગ્રન્થો લખવાને અને તે પણ સર્વસાધા- પ્રજ વાંચે, સ્કૂલોમાં અને કોલેજોમાં એ ગ્રન્થનો રણને ઉપયોગી થાય તેવા ગ્રન્થો લખવાને ભાગ- આદર થાય, તે ગ્રંથની ચાર ચાર પાંચ પાંચ રથ પ્રયતન સુરિજી કરતા હતા અને તેના પરિ- આવૃત્તિઓ ઉપરા ઉપર બહાર પડે, જુદી જુદી ણામે સુરિજીના બનાવેલા અને સંશોધિત કરેલા ભાષાના વિદ્વાનો પિતપોતાની ભાષામાં તે ગ્રંથને લગભગ બે ડઝન પ્રત્યે પ્રસિદ્ધ અને પ્રસિદ્ધ દેખતાની જ સાથેજ અનુવાદ કરવાને અને બહાર આપણી સામે મજુદ છે જેમાંના મુખ્ય બા છે— પાડવાને લલચાય; આ બધી બાબતો ઉપરથી તે ૧ જેન તવ દિગ્દર્શન ગ્રંથનું કાંઇક અલૈકિક મહાસ્ય હોવું જોઈએ ૨ જૈન શિક્ષા દિગ્દર્શન એ તો ખરું જ. ૩ પુરુષાર્થ દિગ્દર્શન ઉપરના ગ્રંથમાં “અહિંસા દિગ્દર્શન ૪ અહિંસા દિગ્દર્શન “ન્દ્રય પરાજય દિગ્દર્શન” આદિ કેટલાએ ગ્રંથોની ૫ ઈન્દ્રિય પરાજ્ય દિગન - ઉપર કહેવા પ્રમાણે આવૃત્તિઓ નીકળી ચુકી છે. ૬ આત્મોન્નતિ દિગ્દર્શન અને અનેક ભાષાઓમાં અનુવાદો થયા છે. હું ૭ બ્રહ્મચર્ય દિગ્દર્શન ભુલું છું ! આચાર્યશ્રીની “ધર્મદેશના” : એ ૮ ગુરૂ તત્વ દિગ્દરન જર્મનના વિદ્વાનોને પણ લલચાવ્યો છે. અને ૮ ધર્મદેશના ત્યાંના વિદ્વાની પ્રેરણાથી એક વિદુથી બાઈ આ ૧૦ ગૃહસ્થ ધર્મ ગ્રન્થને જર્મન ભાષામાં અનુવાદ કરે છે..... ૧૧ દેવ દ્રવ્ય સંબંધી મારા વિચાર આ ઉપરાંત પદાર્થ વિજ્ઞાનિયાની કોન્ફરન્સમાં ૧૨ મહાવીર સ્વામિને અપીલ ડેકટર હટલે થોડા જ વખત ઉપર “વિજયધર્મ૧૦ પ્રશ્નોત્તર સંગ્રહ સુરિ અને તેમના ગ્રન્થ” એ વિષય ઉપર નિબંધ ૧૪ દેવકુશ નાયા વાં હતા, Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिगम्बर जैन । અ ૭] ઐતિહાસિક પ્રવૃતિ— ઇતિહાસ એ સાહિત્યનુ અગત્યનુ' અંગ છે. ઇતિહાસની સમૃદ્ધિ ઉપરજ કાઇ પણ જાતિ, દેશ, સમાજ વિગેરેની પરિસ્થિતનું ભાન થઇ શકે છે, આચાર્યશ્રીએ પેાતાની સાહિત્ય પ્રવૃત્તિમાં અગ ત્યના આ અગને પણ વિસાયું નથી, તેમના શાષિત કરેલા “રાસ સંગ્રહ” ના ભાગેા, ધ્રુવ કુલ પાટ” જેવા અતિહાસિક નિબધા અને તેમણે સગ્રેડ કરેલ પાંચથી છ હજાર શિલાલેખા અને પ્રચીન ભડારાની સર્વે કરીને એકત્રિત કરેલી હજારી પ્રશસ્તિઅનેા સંગ્રહ, આ બધું તેમની ઐતિહાસિક પ્રિયતાને સ્પષ્ટ આપે છે. બતાવી પાશ્ચાત્ય ઢામાં પ્રવૃત્તિ— આચાર્યશ્રીએ આ દેશમાં. રહેવા છતાં અને અંગ્રેજીનું અક્ષરજ્ઞાન પણ ન હેાવા છતાં પાશ્ચાત દેશેાના જિજ્ઞાસુ વિદ્વતાને સાહિત્યનાં સાધના પુરાં પાડી તેમની શકાચ્યાના સમાધાને કરી જૈન સાહિત્યની જે પ્રવૃત્તિ વધારી છે એ કે તે પણ આશ્ચ ઉત્પન્ન કર્યા શિવાય રહે નહિ. તેમની પ્રવૃત્તિએ તેા એવીશ'કા કરનારાઓને કે “અમે સાધુ રહ્યા શુ કરી શકીએ ?” “અમારાથી ક્યાંય જવાય નહિ અવાય નહિ” આવી સ્થિતિમાં દૂર દેશેના વિદ્યાના સાથે કેમ સબંધ જોડી શકીએ ? સાહિત્યમાં તેમને આગળ કેમ વધારી શકીએ ? સચેટ જવાબ આપ્યા છે. સધુ આચરમાં રહેવા છતાં, ચાક્કસ મર્યાદામાં રહેવા છતાં વ્યાવહાર અને કાર્યદક્ષ સાધુએ શુ કરી શકે છે? એ સમૃધી - વિજ્રયધર્મી સરિઝની આ પ્રવૃત્તિ ઉપરથી ધણું જાગુવાનું મળે છે. આજથી ૧૦ યા ૧૫ વર્ષ ઉપર જર્મન, ઈટાલી, અમેરીકા, ફ્રેંચ, સ્વીડન, નાવે અને ઇંગ્લેંડ આદ. પાશ્ચાત્ય દેશામાં માત્ર ગણ્યા ગાંઠયાજ વિદ્યાના જૈન સાહિત્ય સબંધી કંઈક જાણુતા . હતા. થોડાકજ પ્રથા અનેક પ્રકારની ભૂલૈાવાલા તે દેશામાં અનુવાદિત થયા હતા, પરંતુ વિજયધર્મસૂરિજીની અથાક પ્રવૃત્તિએ ñ સ્થિતિમાં [ ૨૫ આકાશ-પાતાળ જેટલુ' અતર કરી નાખ્યુ છે. આ પ્રવૃત્તિને ઇતિહાસ બહુ લાંબે થઇ શકે તેમ છે પરન્તુ તેટલા સ્થાન અને સમયના અભાવને લીધે વિશેષ વિવેચન કરવાનું મૂકી દઉં છું. અને ટુ'કમાં. એટલું જ કહેવું આવશ્યક સમળું છું કે પાશ્ચાત્ય વિદ્યામાં જૈન વિદ્યાતા ઉપર ચા શ્રીએ થે ડે ઘણું પણ ઉપકાર કર્યાં છે અને જેમા આચાય - શ્રોને બહુ માનની દૃષ્ટિ જુએ છે તેએમાંના કેટ . લાક પ્રસિદ્ધ આ પણ્ છે— ૧ ડેમ હલ ૨૩૦મીના ૩ ૧૦ તેલી ૪ ડી ટુચ્ચી ૫૦ રયુબ્રીગ હું ડા॰ મિસ ઝે નસન ૭ ડે! જેકેસી ૮ ડે! થેમસ ૯ ડે ફીલીપ્પી ૧૦ ૩૦ હુલીા ૧૧ ૩૦ મીરાનુ ૧૨ હૈ!૦ મિસ ક્રાઉઝ ૧૩ ડા॰ કાને ૧૪ ૩૦ નાલ ૧૫ ડા॰ હ્યુમન ૧૬ ડે: સ્વાલી ૧૭ ડેડ કુલ ૧૮ ડે૦ ગ્લેસેપ્સિ ૧૯ ડા૦ ફેડેગાન ૨૦ ડા॰ તેગ્ગીન ૨૧ ડે।૦ સીલ્વન લેવી ૨૨ ડા॰ આટાસ્ટાઇન ૨૩ ડે! જાકાવેન્ટીયર ૨૪ ડા૦ ઝીમ્મર ૨૫ ડે॰ બ્લુમફીડ ૨૬ ૩૦ પેરટેડ ૨૭ ડૉ વીન્ડરનેસ ૨૮ ૩૫૦ એડગન Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ લિવર ના [ વર્ષે ૧૭ ૨૮ ડે. મેસનસેબ વિધાન પિતાના વિષયમાં કયાં સુધી આગળ વધ્યો - ૩૦ ડ૦ જેચારીઆ વિગેરે વિગેરે છે? અને પોતપોતાના વિષયમાં તેમને છેવટનો કાર્યને સમજનારી અને કદર કરનારી આ શો અભિપ્રાય છે એ જાણવામાં આવે એટલા ગારી પ્રજા આપણા આચાર્યશ્રીને ભૂલી નથી માટે આચાર્યશ્રીએ પોતાના છેલ્લા સમયમાં તે અને ભલતી પણ નથી. આચાર્યશ્રીના સ્વર્ગવાસથી વિદ્વાને પાસે નિબંધ મંગાવવાની એક ચીજના આ વિદ્ મંડળીને જે આઘાત પહોંચે છે તેનું બહાર પાડી હતી. પરિણામે નિમ્નલિખિત નિબંધ અનુમાન આપણે તે ઉપરથી કરી શકીએ છીએ આવ્યા હતા કે આચાર્યશ્રીના સ્વર્ગવાસ પછી યુરોપનાં અનેક ૧ જિન ધર્મનો અભ્યાસ”( જન આગપત્રોમાં તે વિધાનએ આ આચાર્યશ્રીના જીવન માંથી ટોચન ) લેખક-ડે ઓટોસાઈન (કામ) સાથે પેાતાને શોક પ્રદશિત કર્યો છે. ૨ જૈન ધર્મની સમીક્ષા અને વિદ્યાસંપતિ” આચાર્યશ્રીએ તે પ્રજા ઉપર જે ઉપકાર કર્યા લેખક-ડો. જન નેબલ ( બલીન ) બીજા શબ્દોમાં કહું તે સાહિત્ય અને ધર્મ ૩ રન ધર્મમાં ઈશ્વર સંબંધી વિચાર સંબંધી તેમને વાકેફ કર્યા, તેના બદલામાં તેઓ લેખક-ડેઆ પેરટોડ (પ્રાગ) અનેક રીતે આચાર્યશ્રીનો અહેસાન માની રહ્યા ૪ “કમ રીલેફી’ છે. ઘણા વિદ્વાનોએ આચાર્યશ્રીના સ્વતંત્ર જીવને લેખક-પો- વી. ફેડેગોન ( હેલેન ) લખ્યાં છે. પિતાના ગ્રંથો અને લેખોમાં પહેલી ૫ જૈન ધર્મમાં ઈશ્વરવાદ” તકે આચાર્યશ્રીને સ્મર્યા છે, અને સ્મરે છે, આ લેખક-એચ. વારન (લંડન). એમની કૃતજ્ઞતાને જ બતાવી આવે છે, જેને સાહિ ૬ "ભારતીય તરજ્ઞાનના વિકાશમાં જૈન ને પાશ્ચાત્ય દેશમાં પ્રચાર થવાથી પાશ્ચાત્ય ધમનું સ્થાન” લેખક-હમન જેકાબી દેશના વિદ્વાનમાં જૈન અને સાહિત્ય સંબંધી ૭ “ જેન સાહિત્યમાં રહેલા કેટલાક અહેજે કાંઈ ભ્રમણુઓ હતી તે મોટે ભાગે દર વાલેની નોંધ.” થઇ છે એટલું જ નહિ પશુ ધણ ઉચ લેખક-ડો. એમહેને (ક્રિયાનીઆના) - કોટીના વિધાન જન સાહિત્ય અને જૈનધામ ૮ “બુદ્ધ અને મહાવીર” ને સર્વ શ્રેષ્ઠ માનવામાં લગાર પણ સંકોચ કરતા લેખક-. અનેસ્ટ લ્યુમેન (ક્રીબર્ગ જર્મની) નથી. જમીનની બલીન યુનિવસીટીએ પિ. ૮ “ભારતીય સાહિત્યનો ઈતિહાસમાં જેને” એચ. ડી ની ડીગ્રીમાં જૈન સાહિત્ય દાખલ લેખક- એમ વિન્ટરનીઝ ( પ્રાગ ) થયું છે અને તેજ યુનિવરસીટીમાં આચાર્યશ્રીના ૧૦ “જૈન ધર્મ અને બીજા ધાર્મિક સિદ્ધાપ્રયત્નથી ગુજરાતી અને હિન્દી ભાષા દાખલ ન્તોનો સબંધ” થયું છે. સેકડો જૈન ગ્રંથોના અનુવાદો ત્યાંની લેખક-ડો. હેલમેથ વેનકૅસન : ભાષામાં પ્રકાશિત થતા રહ્યા છે. ૧૧ જૈન ખગોળ” • ડબલ્યુ કીરહેલ પાશ્ચાત્ય દેશોમાં જૈન સાહિત્યને પ્રચાર (બોન, જર્મની ) થવાથી જે કાંઈ લાભ થવા પામ્યા છે તેમાંના ૧૨ અઘટની જૈન કથા ડો-મિસકઉઝ (લીથોડાકજ ઉપર પ્રમાણે બતાવ્યા છે. મ્નીગ) નિબંધ યોજના ૧૩ શ્રી હેમચંદ્રાચાર્ય એક કોશકાર આ દેશના અને પાશ્ચાત્ય દેશનાં વિદ્રવાનેમાં લેખક-ડે-જેચરીલ (હેલે-જર્મની) જૈન સાહિત્યને પ્રચાર વધેલે જોયા પછી, તેઓને ૧૪ જૈન પર્વ સાહિત્ય ડે-ડબલ્યુ-ટ્યુવીંગ એક બીજાના વિચારો જાણવા તક મળે, કયા ઉમ્બર્ગ જમની). Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ મક ૭ ] दिगम्बर जैन । ૧૫ એબ્રેટ વેબર-યુરેપમાં જનત્વને પ્રથમ “ સવી જીવ કરૂં શાસનરસી ” એ ભાવનાને પ્રચારક લક્ષબ૬માં રાખી જીવનની તમામ ક્રીયાઓનો વ્યવલે-ડે.તેની ચમ્મર (હેડનબર્ગ-જર્મની) હાર ચલાવ્યું છે, એવા વિજયધર્મસુરિજી આજ ૧૬ જન કાનુન. લે-ડે. જે. જેલી (જર્મની) આપણી સમક્ષ નથી પરંતુ તેમના કાર્યો અને એતદેશીય ઉપકાર આપણી અને પાશ્ચ યે વિદ્વાનોની સન્મુખ ૧૭ અહસાહિત્યમાં જન ધર્મને ઉલક તરવરી રહ્યાં છે અને તેટલાજ માટે એમ કહેવું લેખક-વિમલચર લો. એ. એમ. એલ, બી. અત્યુકિત ભરેલું નથી કે–વિજય-ધર્મ સૂરી યશ ! ૧૮ જેને અને ક્રિયા વિધિ-રીતરીવાજ શરીરથી આપણી સમક્ષ-સંસારની સપાટી ઉપર - લેખક-ડો. શ્યામશાસ્ત્રી (મહેસુર) ઉમાજ છે. આપણે જે તેમને કોઈ પણ અંશે ૧૮ જન દૃષ્ટિએ ભારતીય ન્યાયને તુલનાત્મક ઓળખી શકયા હાઈએ તો તેમના પ્ર ઓળખી શક્યા હોઈએ તો તેમના પ્રત્યે આપણું અભ્યાસ એટલું જ કર્તવ્ય છે કે આપણે તેમની ઉદાર લેખક-હરી સત્ય સટ્ટાચાર્ય (હુગલી) M. ભાવનાને હદયમાં ઉતારવી અને તેમના જે જે B. B. H. કર્તવ્ય અધુરો રહી ગયાં હોય તેને પૂર્ણ કરવા - ૨૦ તીર્થકર લેખક-હીરાલાલ આર. કાપડીયા આપણુથી બનતે પ્રયત્ન કરવા ચુકવું નહિ M. A. (મુંબઈ) જોઇએ. . - ૨૧ જન કાનન લેખક-જીગમંદિરલાલ જની પ્રન્સે-તે મહાપુરૂષને માટે સંસોના મહાન M. A. (ઈદેર) વિધવામાં નિમ્નલિખિત વિદ્વાનો જે સ્મરણુ૨૨ જૈન તત્વજ્ઞાન જલીએ અપિ રહ્યા છે તેમની સાથે અક્ષરશઃ લેખ-શીતલપ્રસાદ હ્મમચારી). મળતો થઈ મારા આ નિબંધને અહિંજ સમાપ્ત પરંતુ દુઃખને વિષય છે કે આચાર્યશ્રી આ કરૂં છું. જનાનાં પરિણામને પ્રત્યક્ષ જુએ, તે પહેલાં ( 1 ) વર્ગવાસી થયા છે. આચાર્યશ્રીને એક સાહિ- 0 Brahman, if you want to see ત્યની મૂર્તિ તરીક કિંવા જઈને સાહિત્યના સાચા a real embodiment of the ascetic પ્રચારક તરીકે માનનારાઓનું એ કર્તવ્ય છે કે ideal, then go to the great Vijaya આચાર્યશ્રીની આ આંતરિક ઇચ્છા પૂરું કરવાનો Dharma, પ્રયત્ન કરવો જોઈએ. O Kshatriya, if you look for a ઉપસંહાર mighty Hero, I would name the આચાર્યશ્રીની સાહિત્ય પ્રવૃત્તિના અંગે જેટલુ' great Vijaya Dharma, the conqueror લખી મે તેટલું લખાય તેમ છે, પરંતુ ન તેટલો of Raga ( Attachment and love ) સમય કે ન તેટલું સ્થાન. જેણે પોતાની જીવનના and Dvesha (Repulsion and Hatred) પ્રારંભિક એક વર્ષને છેડી છે આખી જીંદગી the most powerful of Human સાયની સેવામાં જ વ્યતીત કરી છે, જેણે જિન enemies. પ્રવચનને જન્મત્તું સાહિત્ય માની સાહિત્ય મંદિ- 0 Vaishya, if you like to see રમાં દેશ કે જાતિ, ધર્મ કે સમાજ, કોઈ પણ the Wea'thiest man, stand before જતને ભેદ રાખ્યા સિવાય એક સરખો સે ને the great Vijaya Dharnma who is આશ્રય આપ્યો છે, જેણે પરમાત્મા મહાવીર possessed of “Right Faith,” Right ઉદાર ભાવનાને રૂધિર અને તેમાં વહેતી કરી Knowledge,” and “Right conduct” Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ fetare il [ 98 po the three.priceless gems of purest out of this stormy sea of harted ray serene. and depravity. of deep calamity O Sadra, if yon have not yet and grief, directs our poor and properly learnt what service is, vexed looks upwards to hegihts then follow the great Vijaya Dha of eternal harmony, the harmony rma, the truly humble and unselfish which was all over His great and servant of Humanity... - divine personality, the harmony Harisatya Bhattacharji, which governs the univers, and M. A, B. L...... which all creatures long-for friendBengal. liness. His exertions in the cause of education, and his constant Shastravisharad Jainacharya per-occupation with plans for the Shri Vijaya Dharma suri fulfilled foundation of enstitution, and the jn our day an old Indian ideal of publication of periodicals, texts and a great man. Having secured the studies revived and invigorated mastery of human passions, he was his community. His example, which actuated by a selfless benevolence. was an inspiration to his contemEntirely loyal to the doctrines of poraries survives as an inheritance his faith, he realized them with a to his successors. philosophic insight. His teaching Dr. F. W. Thomas, and preaching were invested with London. (3) reasonablepess and sweetnes, while Veneration to the Divine saint, his advanecs to members of other or to whom this tempal is hallowed ! sects, countries and culturos were Veneration to Shri Vijaya Dharma characterized by an unseigned all Suri, the benefactor of mankind, that were around Him; warming the promoter of humanity and all creatures by the pure and self science ! deuyiug love, the all embracing His earthly life was like a calm com possion of his noble heart, and splendid flame, warming and elucidaing the spheres of his ethic clucidating Veneration to Shri and scientific adivity by the bright Vijaya Dharma Suri, the benefactor beams of his dear miod, of His of mankind the promoter of refined and harmonious erudition. humanity and science. To those, however, who are far Dr. Ch. Krause, from him, separated by space and Leipzig. time. His noble life is like a calm 4:- ACULL duos me, and splendid gunding star, which, laulet, naast ubi&is. 'sn- . voce. Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ७] दिगम्बर जैन । @900099 सय यज्ञशालामें वध (बलिदान ) की नायगी © अहिंसा धर्म। थोड़े समयके लिये इनपर दया हमने की भी 50000000065 . तो किस उपयोगकी ? इस निर्दयता पूर्ण वाक्य [ लेखक पं०-शंकरलाल व्यास-कसराबद । ] को बुद्ध नीने श्रवणकर उप्त लंगड़ी भेड़को अपने अहिंसा धर्म सब धर्म कर्मों में श्रेष्ठ है। इसकी कंधे पर रखके उन भेड़े के साथ ही साथ चले महिमा सब शास्त्रकारोंने गाई है निधर देखो और जिस रानाके यहां बलिदान होता था उधर अहिंसा देवीकी आरती उतारी जारही है वहां जाकर उस रानाको अहिंसा धर्मपर बहुत और सभी व्रत नियम इसीके आधारपर विश्राम कुछ उपदेश किया। ले रहे हैं। सभी हिन्दु धर्मावलम्बी इस अहिंसा कोटि धन्यवाद उस कुदरतको है जिसने धर्मका प्रतिपादन करते हुए उच्च स्वरसे "अहिंसा ऐसी २ मोक्ष आत्माएं उत्पन्न की नो संसारका परमो धर्मः" श्रुति वाक्य गारहे हैं। जैनधर्मकी यथा समय उकार करती हैं। तो स्वास नीव ही अहिंसा धर्मपर उठी हैं। इस समय देशकी दशा बड़ी शोचनीय हो निसनी ख्याति जन धर्मने अहिंसा धर्मपर रही है लाखों गौवे वध हो रही हैं। देश पाई है उतनी किसी भी धर्मावलम्बीको आज- रसालको चला जा रहा है। तक प्राप्त नहीं हुई । असिव्रत जैसा व्रत नहीं महात्मा । धीनी कहते हैं-भारतको सच्ची परन्तु खेद है कि हम लोग जान बुझकर भी सम्पत्ति अगर है तो एक मात्र गौ है । इम व्रतका पालन नहीं करते। देवी जगदम्बा है पहिले जमाने में र ज ओं तथा ऋषेमुनियों के तो जगत के पशुओं की भी माता है और माता यहां गौरूपी ही धन श्रेष्ट माना जाता था तभीसे सदः पुत्र २ ला होती है। फिर माता के सामने कहावत चली है कि भातध' दुधकी न दयां पशुओंको सुख मरना चाहिये या उनका वध ? ही थी और भारत समृद्धशाली गिना जता भान बेई, कलकत्ता करावी, मद्राप्त आदि था। ग न श्री कृष्ण नी के समय बाचा नंद नीके बड़े २ शहरों में गौवध होरहा है । बिच रे उन यहां नौ ल ख गौवे थ तब ही तो इन देशके छ टे २ पशु मौकी तो बात ही दूर है जिस वा । सुखी थे। समय भगवान बुद्धने यज्ञशालामे वत्र होने वाली वहुत सम की ब त जाने दोनिये। मुसलमान बहुतकी भेड़ें मानी हुई देखी तो उन्हें एक व दशाहोंके वक्त भारत र्षमें चोनों का भाव लंगड़ी भेड़ दिखाई दी उसे देखकर भगवान वितता सता था मिससे आन सुनते ही दांतों । बोन्हने उन भेड़ हांकनेवालेसे पुछा कि अरे भाई ! तले उगली दवाती पड़ी है तथा कई २ महा. इस लंड़ी भेड़को क्यों कष्ट देता है । यदि इसे शय तो .प ही जानेंगे। सुलतान अलाउद्दन • अपने कंधे पर रख ले तो कितना आनंद प्राप्त खिल नीके जाने में घो अधे से एक सेर और हो ? इस पर उत्तर मिला, भजी यह सबकी सुलतान फिर ज तबलखके बक्कमें ढइ पैरोका Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६] - दिगम्बर जैन । [वर्ष १७ . एक सेर, तब सुलतान इब्राहीम लोदीके वक्त एक टर जमीदार मुंसिफ जज आदि गृहस्थों के यहां रुपयेका पांचसेर था। इसी प्रकार अकबरबाद अवलोकन कीनिये दम दम पांच पांच घोड़े शाह के वक्त आठ भाने मन गेहूं, चावल दो बन्धे मिलेंगे। अगर यह नहीं तो दो चार बकरी रु ये मन, दाल छ आने मन, गुड़ देढ़ रुपये तथा कुत्ते तो अवश्य मिलेंगे परन्तु गौका पता मन, नमक डेढ़ आने मन भादि। मतलब कि उस नहीं। यदि उन्हें गौ पालनके विषयमें प्रश्न किया जमाने में सब वातु सस्ती थी। नहांपर बादशाहके जाय तो यह कहके टाल देते हैं कि हमें गौ समय एक युरोपियन बिलायतसे न्दुिस्थान पालने का शौक नहीं। हाय भारतवर्ष ! तेरे आया था वह दिखता है कि यहां एक आदमी श्रीमंत पुत्रोंके यहां सैकड़ों गाड़ी घोड़े मोटरें एक मानेमें अपना उदर पोषण र रता है। तथा साइकलें रखने के लिये स्थान परन्तु जो इसी प्रकार धीरे धीरे वस्तुओंका भाव बढ़ता अनेक रोगोंसे बचाती हैं, शरीरको बलिष्ट करती गया और आज यहां तक नैवत भा पहुंची हैं, बुद्धिको बढ़ाती हैं ऐसी गौ माताके लिये कि एक मनुष्य अपना गुजर दस रुपये में मुश्कि. स्थान नहीं । अफसोस ! सद् अफसोस !! लसे करता है । घी छ छटाक एक रुपये का निप्त भारतमें कृष्णनीसे योगी गौ सेवा बिकता है । पाठको ! यह सब गौ वधका ही करते थे, उप्त भारतमें सभ्यताकी डींग मारनेकारण है इस लिये गौरक्षा करना हिन्दु मात्रका वाले बड़े २ पदाधिकारी कुत्ते बिल्लियों की सेवा परम कर्तव्य है। भावान कृष्ण गीतामें वैश्योंके भले ही करले परन्तु गौ माताकी सेवा कदापि कर्म बताते हुए कहते हैं नहीं करेंगे । क्योंकि अभी भारतीय बन्धुओं का कृषि गौरक्ष वाणिज्यम् वैश्य कर्म ध्यान गौ सेवाकी ओर विशेष नहीं लगने का स्वभावजम् । कृषि गौरक्षा और वाणिज्य कारण यही है कि उसके दूधके लाभोंपर अभी ये तीन वैश्यों के कर्म हैं। इन तीनों पैकी वैज्ञानिक रूपसे हट नहीं गई है। इसके अतिवाणिज्य का मूल कृषि तथा गौ रक्षा है और रिक्त गोसे भारत नहीं बल सारी सृष्टि का दोनों में भी कृषिका मूळ गौरक्षा है। उपकार होता है गौमाता तृण भक्षण करके दुध मूलो नास्ति कुतः शाखा । नव मूक ही न उत्पन्न करती है । दृषसे घृत और घृतसे यज्ञ रहेगा तो छिन्ने मूले नैव शाखा व पत्रम् तथा यज्ञसे मेघोत्पत्ति होकर वृष्टि होती है । शाखा और परसव रूपि खेती (कष ) और वृष्टसे सन्न पेदा होता है निमसे सारा संसार वाणिज्य कहां रहेगे । जब वैश्योंकी अवनति पलता है इसलिये गीतामें कहा है किहुई तो ब्रह्मण क्षत्रीय किस तरह बच सकेंगे यज्ञाद्भवति पर्जन्यो पर्जन्य दन्नमभवः इस लिये देशकी अवनतिका कारण गौ सेवका पहिले जमाने जैसे अब यज्ञ होकर वायु न होना ही है। शुद्धि दूर रही परन्तु चुरुट बिड़ी हुक्का तथा माजकल बड़े १ सेठ साहुकार वकिल बैरि- मीलोंके धुएंसे ऐसी वायु बिगड़ती है कि प्लेग Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंक ७ दिगम्बर जैन । है ना एन्फ्ल्यू एं ना आदि बिमारियों के मरे अर्थात शत्रु दामों में तृण दबाकर जब शरण भारतवासियों के नाकमें दम है। इस साल पं नाबमें अता है तब उसे कोई मारता नहीं इस लिये प्लेग तो गत साल बगारमें है ना, किसी साल जहां ना ! हम गरीब गौवें तो दीन रात मुइमें सी. पी.में तो किसी साल बंबई में यों क्रमानुसार तृण लिये शरण चाह रही हैं सिवाय अमृत कहीं न कहीं रोग बना ही रहता है। समान दुध तथा बछडे देकर जनता का उपकार इसका कारण यज्ञका न होना ही है और करती हैं तथा हपमें यह पक्षपात नहीं कि यज्ञ तब ही हो सकेंगे जब गौ सेवा अच्छी हिन्दुको अमृत तुल्य दुध दें और यवन हमें प्रकार होगी मारते हैं अतः उन्हे विषयुक्त, हम तो सबको अकबर बादशाहके समय नरहरि कविने एक समान ही दूध देती हैं इस पर हमें क्रूर कसाई मर्मभेदी तथा मित्त कर्षक युक्ति की थी उसे मारते हैं यह सून बादशाहने गौ वध रोक सुनके बड़ा हर्ष होताई। .. दिया था। अकबरबादशाह के समय मुसलमान बहुत गौ पारे भारत वासियों ! गौ वध बंद करवाने के बध करते थे उसे बंद करानेके लिये नरहरि लिये तनमन और धनसे तैयार हुनिये क्योंकि कविने बहुतसी गौवोंका टोला एकत्रित किया उसके अमृत समान दृधसे शरीर बलिष्ट होकर और उन सब गौवों में जो एक सुंदर गौको आत्म बल बढ़ता है पर इस समय ऐसे अमूल्य आगे कर उसके गले में एक ताम्रपत्र बांधकर पदाथे दुग्धशनको छोड़कर चाह, सोडा वाटर, दरवारमें वह टोला पेश किया। जब बादशाहने लेमन आदि वस्तुओंका सेवन करने लगे हैं बहतसी गौवे दरबार में लाने का कारण नरहरि जिससे धर्मभ्रष्ट होनेके साथ २ शारिरिक कविसे पूछा तो कविने कहा, जहापना यह गौवें हनि होती है अतः गौरक्षा कीजिये तथा मापसे कुछ प्रार्थना करना चाहती है और वह अहिंसा व्रतको पालते हुए छोटे २ जीवोपर प्रार्थना इस ताम्रपत्र पर लिखी हुई है उसे भी दया करो। किसीको मत सताओ । हमारे का सेठ साहुकार बडे अहिंसा व्रती होकर भी मरित तृण गहहिं, ताहि जग मारत नहि कोई। गरीबोंके गले कलम रूपी छुरीसे तरासने में कुछ हम संतत तृण चरहिं, बचन उच्चरहिं दीन होई। मी कसर नहीं रखते। यह भी एक बड़ीसे बड़ी अमृत पय नहिं सुवर्षि, वासमहि थंभन नावही हिंसा है। अहिंसा का मतलब है किसी जीवको न हिन्दु हि मधुर न देतहि,कटु तुरक हि न पियावहि। सताना एतदर्थ मेरे निवेदन को पाठक हृदयमें नरहरि सुन शाह अकबर विनवत गौ मोरे करन। स्थान दग। कि हिं अपराध मारियत मुंहि, मुए हुं चाम __ शांति ! शांति ! शांति ! सेक्त चरन । मैं सुनाता हूं Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ ] दिगम्बर जैन नीतिरत्न - माला-४. 1 निर्बलको बल भूप है, रोदन बल तिय जान तस्करबल अमृत बचन, शठवल मौन बखान ७६ यथोक्त वादिनिस्टहि क्षमी, वाक्पटु शौर्यवान बहु श्रुतज्ञ परचित्तगत, दूत श्रेष्ठ पहचान ७७ अलोम प्राज्ञ स्वामी भगत, वाक्पटु लेख प्रवीन सतवादी जो सो करो, भांडा गारि कुलीन ७८ प्रहेलिका- दूरगाम अपद, साक्षर नहीं विद्वान अमुख किंतु वक्ता स्फुट, कहो नाम मतिमान ७९ पर पदन्यास सुवर्णमय, सरमा सालंकार पुन्य हीनंको नहीं मिले, अर्या वा इम नार ८० कविता वनिता सोहिवर, श्रवण दरश जिस होत प्रफुलित चित मन सरलता, तरल शांति उद्योत ८ विनय अहिंसा निष्कपट, तप सुशीलता ज्ञन इन गुण चिन केवल पठित, संज्ञा घर विद्वान ८२ शास्त्र अरथको पठनकर, करहु क्रिया निज योग्य चिंतत औषध रोगिको, करे नहीं आरोग्य ८३ यथा हृदय बाचा तथा बाचा बत कर ते मनसा वाचा कर्मणा, एक रूप सुधि नेम ८४ आन न पद्मदलाकृति, चंद्रन सम हिमवान् हृदय कोष संयुक्त ये, लक्षण धूर्त बखान ८१ • श्लेषम दुर्जन दुहुनकी, कैसी प्रकृति साम्य मधु कोप करें द्विगुण, कटुनें होवें शाम्य ८६ मनोरथ निरधन पुरुषके, उठ २ होय विलीन दुग्ध बाल वैधव कुचा, निम उवि होय मलीन विद्या मित्र प्रवासिको, भार्या मित्र गृहस्थ धर्म मित्र मरणोन्मुख, और मित्र अस्वस्थ ८८ पराश्रित निर्देयि धैर्यगत, चिंतित क्रोधित और सोष रहित ये षष्ठ जन, रहें दुखी सब ठौर ८९ [ वर्ष १७ उन्मत कामी मद्यम, क्षुधित तृषित कोपिष्ट कायर लोभि न जान हैं, निजसर इष्ट निष्ट ९० बहुत लोभ निंद है, बहुत बाद अपमान बहुत दानवें निरधना, बहुत मौन अज्ञान ९१ पितु विधो माता निधन, गानव और अहार बांधव कुल वर इच्छत्रे, कन्या रूप अपार ९२ कुल विद्या वय शील धन, अवस्थारूप रु देश देखि श्रेष्ट दो क यका, चाहो सुख अशेष २३ भक्षत मारग मल चलो, हाम्य युक्त बच मास नष्ट पंद रथ शोक नहिं स्वतः न गुण परकास ९४ श्रृंगी दंती अरु नखी, दुर्जन जान पुमान नारि नदी अरुकूलको, करो विश्वान क दान २५ गाडीसे पन हाथ के घोट कसे दश हाथ दस्तीसे सौ दाथके, दूर चलो नहिं साथ ९१ गुरू बली व्याधित मृतक भूर श्रेष्ठ गुणवान बाहन युत इनके लिये, देहु मार्ग घीमान ९७ शत्रु काम नारि जित, अपनी निवऋगवान पाचक अरिवश पुरुष सो, जीवित मृतक समान २८ आश्रित बन्धु मित्र जन, कवी गुरू हितकार नारी भिक्षुक मूर्ख सों, करो न वाद विचार ९९ हो सहायक निरवली, करै बलीसों रार कामी तस्कर धन क्षमी, नरौ सुनिद्रा च्यार १०० द्रव्य सम्मती बाहुबल, बंधू धी बलजान मानव चल ये पञ्चत्रा, धी वळ सर्व प्रधान १०१ मैत्री | अनैक्यता, पर प्रहार संहार ये गुण तिष्टें जाससो, मंत्री श्रेष्ठ विचार १०२ बालक राजा तिथ पत्रल, कपटी संग प्रसंग जहां तहां सो दुख लड़ें, जेम अपांव विहंग १०३. Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंक ७ ] एR USUALURUSURYAL अग्नि । 2 En PRI ani दिगम्बर जैन | raaaaaaa ( लेखक:- बाबू ताराचंद जैन झालरापाटन सीटी ) मैं क्यों जलूं ? जगतमें विशालकाय गजेन्द्र से लेकर अति सूक्ष्म अमीबा तक समस्त प्राणी स्वार्थ के अर्थ प्रयन्त किया करते हैं। मुझे इस आत्म दहनसे क्या लाभ ? ब्रह्मण मुझे गुरु मानते हैं । परन्तु काम लेते हैं सेवक या दूतका । यज्ञमें मेरे द्वारा देवों और देवताओंको बलि पहुंचाई जाती है, मन्दिरोंमें धूप जला के देवस्थानोंमें सुगन्ध विस्तीर्ण करनेका काम मेरे सिर रक्खा जाता है और घरमें रसोई मेरेसे पकाई जाती है। यह झूठे भला है गुरु भक्तिका नमूना ! हिन्दु मुझे स्वयं पवित्र और पवित्र बतलाते हैं । और इस कारण मेरी और मेरी मिट्टीकी बड़ी दुर्दशा की जाती है । मृतक देह से मुझे छुअते हैं और मेरी राखको विष्ठा पर डालते हैं या बर्तन साफ करने में कम लाते हैं। यह भी कोई आदर है ? पारसी मेरी पूजा करते हैं । वे मेरे सेवक कहाते हैं । परन्तु बास्तविक दृष्टिसे देखा जाय तो मुझे प्रतिदिन २४ घंटे और सालभर में ३५९ दिन २९ घंटे उनकी चाकरी करनी पडती हैं । ये जो ताता आदि मिल चल रहे हैं वे मेरे ही तो कारण हैं। इनमें मुझे प्रति दिवस विवश होके सहस्रों निरपराध धातुओंका विच्छेदन करना, उनको गलाना जैसे अनेक क्रूर और भोपण कर्म करने पड़ते हैं। क्या यही देव भक्ति है ? [ २९ अंग्रेजी पढे लिखे बाबू और उनके अनुयायीगण सिग्रेटों को जलाकर धूम्रपान कर मेरी इज्जन तीन कौड़ीकी कर देते हैं । तमापत्रके प्रेमी मेरी देहको गलीच कर डरते हैं । यह अपमान नहीं तो क्या है ! कविगण और दार्शनिक पंडित मेरी क्रोध से उपमाकर मुझे बदनाम करते हैं । परन्तु क्या वास्तव में मैं बुद्धिहीन और क्रोधी हूँ ? वसुंबरा पहले मममय थो। यदि मैं दयाकर ठंठा नहीं होती तो ये गगनस्पर्शी हिमशिखर और शान्त शीतल विस्तीर्णम्बुधि कहां आते ? यदि मैं गंभीर और अश्वेश और भयंकर काननों को भस्मीभूत नहीं करती तो ये मनोरम पुरियें और हरे २ धान्य क्षेत्र अस्तित्वमें कैसे अते ? और ये बहु मूल्य और उपयोगी धातुओं की खाने कहां मिलती ? पृथ्वी और सूर्यकी उष्णता से ही अखिल प्राणी जगत प्राणको धारण कर रहा है । क्या यह मेरे बिना संभव होत ? अपार शक्ति रहते भी जन्तुजनित अपमानको धैर्य और शांति पूर्वक सहती हूं। क्या यह क्रोधीका लक्षण है ! हाँ तो क्यों मैं इस दुःखदाता कारार्थ अपने आपको नष्ट करूँ, लिए अपने आपको जलाऊँ ? संसारके उपइन कृतन्नों के शीवाई दीन जन सप्रेम मेरा अव्ज्ञानन करते हैं। क्या मुझे इनकी प्रार्थनाको अस्वीकार करना उचित है ? जब बिम्बोष्ठो चन्द्रमुखी कोमलांगी युवतियें चूल्हा जलाते समय कर पल्ल वोंमें पंखा लेकर या सुगंधित श्वाससे सुगंधित कर अश्रुपूरित कमल नेत्रोंसे मेरी ओर देखती Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ are ३.] दिगम्बर जैन । [८१७ हैं तब उन्हें पतिदेवके क्टूक्ति कष्ठानुपरित हूं। मेरी निर्मल कीर्ति दशों दिशाओं में फैल कोपसे बचाने के लिए स्वपाणोत्सृनन कर देना जाती है और मेरे नामका जयघोष विश्वम्भामें क्या कोई बड़ी बात है ? क्या पाण भिक्षुक गूंजने लगता है। मैं अमरत्वको प्राप्त कर संसारको मरने देना चाहिये ? नहीं, कदापि लेती हूं। यह सब क्यों ? ... नहीं। स्वधर्म पालन कभी निष्फल नहीं जाता । परोपकार मेरे कुल का धर्म है। लकड़िये मेरी सकर्म कभी नष्ट नहीं होते। निस्वार्थसेवाका जननी हैं और अनिल मे प्रिय सखा लकड़िय अद्भुत महात्म्य है। मैं जलती हं. पर परोपधीर, वीर, महात्मा, दानी और सतत परोपकारी कारके लिए जलती हूं । तरुवरोंसे उत्पन्न होती हैं। भला मैं ऐसे उच्च और निस्वार्थ वंशमें जन्मले कर परहित विमुख . होकर स्वार्थकी ओर क्या ध्यान देने लगे। जानयोक लिये-आकाशबाणी। क्या कुलको कलंक लगाना पूर्वजोंके निर्मल धर्मः ।-दिगम्बर श्वेताम्बर और स्थानकवाप्ती को जलांजलि देना उचित्त है ? मिलकर एक जैन विश्वविद्यालय (Jain Uni__ अच्छा आत्म विनाशसे मुझे क्या काम ? narsity) की स्थापना करो जिसमें विदेशोंसे देखो जक्तक मैं सुस्त रहती हूं तबतक भी आकर विद्यार्थी लोग जैन धर्मकी शिक्षा मृतप्रायः किसी कोने में पड़ी रहती हूं। न तो प्राप्त कर सकें। मुझमें कोई तेज ही रहता है और न कोई २-जैन सिद्धन्तों का अंग्रेजी, जरमनी, चीन, विक्रम ही। स्वधर्मकी उपेक्षा करनेसे मेरी जापानी आदि भाषाओं में उल्था Translation सारी देह काली रहा करती है। मेरा नाम कराकर लाखों की संख्या ट्रेक्ट छपवाकर विदे. होता है कोयज्ञा । भला यह भी कोई जीवनमें शोंमें बितरण करो। विदेशी विद्वानों में जैन जीवन है। धर्मका ज्ञान कराओ। ___ परन्तु जहां स्वधर्मको ग्रहण किया कि मेरी दशामें विचित्र परिवर्तन हो जाता है। मैं ३-जैन ऐतिहासिक खोनके लिये एक मृतशय्यासे जीवित हो उठती हूं। मेरी देह विभागकी स्थापना करो। स्वर्ण से अधिक सुन्दर हो जाती है और उससे ४-बंगाल और बिहारकी सराक जातिका तेन और प्रकाश का मानों फौवारा छुटने लगता उद्धार करो, इप्त पान्नमें जगह जगह अध्यापक है। दीन और भदोन, धनी और निर्धन, सब कायम करो और इन लोगों में अपने प्राचीनधर्म के मेरी शरण में आते हैं और सुख प्राप्त करते हैं। ज्ञान की प्राप्ति के लिये बंगालीमें ट्रेक्ट लिखाकर तकउन्हें सुखी देखकर मेरा उत्साह दुगना हो सीम करो । इस कार्यमें अपना पैसा लगाओ। माता है और मारे प्रसन्नताके मैं लाक हो उठती -देशकी भावाजमें पूरा पूरा साथ दो। Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AmAAWAJ.AAAAAAAVAANA.AAVaranasannnnnn hep अझ ७ ] दिगम्बर जैन। अस्तित्वके युद्ध में विन प्राप्त करो। साबित YRICICICITEREDESICHORM पदम खड़े होकर मैदान में काम करो। श्रतपंचमी पर्व। ६ सार्वजनिक कार्यों में आगे होकर भागलो। जैनपन के गौरवको बढ़ाओ । जैन धर्मके मइ. त्वको सार्वजनिक बनाओ। ७ स्त्री समानके अधिकारों का गला मत बूंटो। निसके लिये हम वर्षभरसे, लौ लगाये आ रहे । सस्कारकी तैयारियांकर, श्रेष्ट भाव उपा रहे ॥ स्त्री समानकी उन्नति पर ही देशकी उन्नति यह पर्व हमको मिल गया, इससे हमें कहना यही । निर्भर है। ८ बाल विवाह और वृद्ध विव ह आदि र धन्य है दिन आज का, अरु धन्य यह विरिया सही ॥ सामाजिक कुरीतियों को भान ही अमि भेट कर दो। श्रुत पञ्चमी है नाम उत्तम, पर्व जैनी मात्रका । ९ वीर शासनकी जय नयकारसे वायुमंडलको सो आगया स्वागत करो, भाषा हुआ सत्पात्रका ॥ गुंजा दो । सारे संसारमें महिंसा धर्मकी पावन मैं प्रथम ही इस बात का, तुमसे निवेदन कर चुकू । पताका फहरादो। पून लेखनीको साम्हने रख, सन सारा कर मकू ॥ १. अपने अधिकारों की रक्षाके लिये प्राणों की परवाह मत करो । कायरताको छोड़ दो। मैन यह पर्व कवसे है शुरू, इस श्रेष्ठ भारतवर्ष में । धर्म बनियों और कायरों का धर्म बतलाया नाम्हा प्रचलित किया किसने इसे, उसको सुनो तुम हर्ष में। है । इस कलंकको सबके पहले धो कर जैनधर्मको वते वर्ष हजार दो, जसे हुआ निर्वाण है । वर का धर्म होना साबित कर दो। जैनधर्मकी बीना प्रकट मुनि पुष्पदंत, अरु भृतिबलि सज्ञान हैं। विनयका डंका बना दो। मुठभेड़ के लिये। धर्मिक भुनाओं को बलबान बना दो। धवल--आदिक शास्त्रों की, मूल रचना उन करी । ११ शादी गमी आदि अवसरोंपर लाखों जेष्ट शुक्ला पञ्चमीको, प्रथम स्थापन करी ॥ रुपया ज्योनारों और फिजूल खर्थियों में न उड़ा- स.म्हने सब संघके अति, भावसे पूना करी । कर जिनवाणीके प्रचारमें लगाओं, कौमकी तबसे यहां इस पर्वकी, १२भावना सबने करी ॥ विधवाओं की दशा सुधारो, नातिके गरीब बात.. को ही शिक्षा में अपना द्रव्य लगाओ, देश और किन्तु यह लिखने मुझे, अफसोस होता है बड़ा । धर्षकी सेवा में पैसा रूचं रो। और सुनते ही कले ना, हिल उठता है कड़ा । मोतीलाल पहाड्या-कुडी। क्या शास्त्रोका भाइ , हमने किया सन्मान है। TRAKO . या पूर्व ऋषयोके बताये, मार्ग का अनुमान है। Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२] दिगम्बर जैन। AAAMKARANANAwronvi Anw अलमारियां हैं बंद जिनमें, शास्त्र बहुतक हैं घरे। दा शब्द। निममें हजारों छिद्र, चूहों दीमकोने हैं करे ॥ मैंने स्वयं निन नेत्रसे यह, दृश्य देखा है सही। किन्तु अब कुछ होरहा, उद्धार सो पूरन नहीं ॥ (लेखक-श्री. जानकीबाई जैन, अम। । ) (७) . सारे संसारमें यह बात निर्विवाद सिद्ध है कारण प्रबल हैं एक हूलका, जो सुनाऊं मैं तुम्हें । कि जो कुछ पुरुषार्थ कर सक्ता है वह कोई किन्तु सुनकर शीघ्र ही, इस ओर आना है तुम्हें ॥ नहीं कर सकता क्योंकि मानवमें शक्तिकी आव. प्रेम विरोधी व्यक्तियोंने, काम है के सा किया । श्यकता है। शक्तिकी कहावत चरितार्थ है-जिसकी शास्त्र रख. मलमारियों में, फिर नहीं दर्शन कियालाठी उसकी भेस, सो वर्तमानमें प्रत्यक्षमें दिख लाई पड़ रही है। करते प्रकाशत हैं नहीं, अप्स करन देते हैं नहीं। इस लिये प्रत्येक पुरुष स्त्रीको चाहिये कि उन पूर्व ऋषियों का परिश्रम, संफल करते हैं नहीं ॥ पुरुषार्थ के लिये उपाय करें और पुरुषार्थ जब इत्यादि कारण हैं अनेकों, सो सुनाऊँ मैं कहा । होगा तब आपका शरीर निरोग हो, शरीर बस इसीसे जन मारग, लोप होता जा रहा ॥ निरोगसे यथार्थ अध्ययन हो और अध्ययनसे बन्धुओ ! यदि भाप जो, उहार अपना चाहते। ही अपने परायेका ज्ञान हो, ज्ञान होने से ही तो निनागम उतिका, मगयों न प्रसारते ॥ हम कुछ कर सकेंगे इस लिये सबसे पहिले जो क्त हो सच्चे श्री. जिन नी माताके यहीं। अपनेको निरोग, साहसी, उद्य गी. परिश्रमी. तो निम्न अंतम विनयपर, तुम ध्यान अपना दोसकी। धी', बलवान बनावें नहीं तो याद रखो " संसार में आपको पैर रखने को स्थान न मिलेगा। शिक्षा प्रचार अपार हो, यह भावना भावो सदा । इसलिये शीघ्र ही अपने को समालो और बलवान ज्ञाकी हो वृद्धि तुम- अज्ञान नहिं फैले कदा ॥ बनो निर्बलों और मनोरों का जमाना नहीं है। पाठशाला हैं खुले, अरु जो खुले भागे कभी। अपर मेरा वाक्य आप न अपनायेंगे तो सच तन, मन, तथा धनसे, सहायक आप हो जाना सभी॥ समझों वह दिन जलद वेगा. निस दिन (११) आपको कोई न पूछेगा। और रोग और काय. भापको यह ज्ञात, जिन सिद्धांतसे है हो रहा । रताके सदन बन जाओगे। प्यारे भाइयों ! मेरा ज्ञान बिना यह जीव, जग जंजाल में फँप रोरहा। कहना अरसे इसलिये है कि आपने अपने को ज्ञानसे दुख दूरकर वार, सार- सुख हासल व.रो। विषयव सनाका लोलुपी भ्रमर बनालिया है उसीसे प्रार्थना यह "प्रेम"की नित ज्ञान का आर्जन करो| आप लोगों की मणना कम नोरोंमें होगई है। पं० प्रेमचंद पंचरत्न-भिंड। मैं आपसे ही नहीं कहती, सारे जैन समानसे Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ વાહી હું વદિ મુદ્દે સારા સંસાર શ્રી રમે વરકન્યા વચ્ચેને ચાર વર્ષને અંતર રાખવાને ઠરાવ ઘણે અંશે પળા નથી એ વાત આપ ग्रसित दिखलाई पड़ रहा है। और वह मरन સારી રીતે જાણે છે છતાં પણ તેને અમલ થત નથી તે આજે રાત્રે આ૫નું પંચ મળવાનું છે હૈિડે છે નક્કી કરી પત્રો પરણે વિતિ તે પ્રસ ગે આપની પાસે આપના પંચને અમારી દોરાણીસે આજ અવનેજો રદ્ધા ગૌર અને નમ્ર વિનંતી છે કે જે કંઇ આજ સુધી બની ગયું વધી રક્ષા કા આજ રોગોને અવની નાની છે તે માટે કંઇપણ ઉદાહ ન કરતાં હવે પછી जो विना कारण वीर्योका नाश किग है उसीसे તે માટે ઓછામાં ઓછો એ કરછ આત ઠરાવ તો અવશ્ય કરો કે હવે પછી કષ્ટ પણ બાન પાર સંસાર નર રોલે કથિત હો રહ્યાં માબાપ કે વડીલ પિતાની છોકરીની ઉમર સાત વર્ષની થાય નહી ત્યાં સુધી તેની સગાઈ એટલે કે વીવાહ નજ કરે અને વરની ઉમર કન્યા કરતાં ગાગો ઔર અને વર્ષો વરાઓ નહીં તો ઓછામાં ઓછી ચાર વર્ષ મોટી રાખે અને આ ઠરાવ ભંગ કરે તો કન્યાવાળા પાસે ભારે कुछ दिनोंबाद निःसन्तान होकर पिताके अधि. દંડ લેવાની યોજના કરવી. જો કે અમે તો કન્યાની વાર સુતર નાના સર્વસ્વ નારાજ ને ઉમર ઓછામાં ઓછી દશ વર્ષની થયા સિવાય મા બાપની સેવા માટે અને ત્રીજે - સગાઈ ન જ થવી જોઈએ એવા દઢ નિશ્ચય શાળા નેકી ત્રિશા ઔર કુછ વૈદ્ય ગુણવે તથા માન- સ્થિતિ જોતાં હાલ તુરત સાત વર્ષને ઠરાવ છીએ છતાં પણ આપના પંચની આધુનિક સિક કથન પર રેયાને વેષિત જી કરવાને અમે ભલામ કરી એ છ એ. આશા છે કે મેરે વન અબર ૪ ટ સ હ તો માઝ આપતી પંચ આ વખતે આ બાબત અવશ્ય ઠરાવ - करना। मैं आपकी भगिनी ही सच्चे दुःखसे ર કરશે કે જેથી અમે બધાનું આવવું સાર્થક ગણાય. પંચાયતી ફરછ બાત ઠરાર વગર બાળ देखकर लिख रही हूं। વિવાહ (સગાઈ) ની રૂઢો બંધ નહીં થઈ શકે વીસામેવાડાની પંચને વિનંતિ એમ અમારું માનવું છે તેથી જ આ વે પંચાયતી ઠરાવ કરવાની અમોએ જરૂર જણાવો છે. - સેજથી પાછા ફરતાં અમે ત્રણે એક જથી પછિ: ૨તા અને ત્રી એક વાર સંવત ૨૪૫૦ વૈસાખ વદી ૭ ૨૩ વિનંતિ પત્ર પંચમાં વાંચવા માટે આપી આવ્યા આપના જાતિ સે કોહતા તે નીચે મુજબ હતું— મુલચંદ કસનદાસ કાપડીય- તુરત - પરમનેહી પરમ વિવેકા વીસામેવાડ ભ ઇ છોટાલાલ ઘેલામાઇ માંઉં- કંકલેશ્વર એની પંચ સમસ્તને હજારો અત્રેથી જતા જતાં છગનલાલ ઉત્ત નચંદ સેરેય:- સુરત છેવટે વિનંતી કરતા જવાની અમને જરૂર જણાય આ વિનંતિ ૫૧ વદી ૮ ની પંચમાં શેઠ છે કે ગઇ કાલની સભાના વિવેચનોથી આપ જાણી જેસંગભાઈ ગુલાબચદે વ ચી સંમલાવ્યું હતું જે ગયા હશેજ કે આપને ત્યાં અનેક પ્રકારના રોત સમયે એ બાબત ચર્ચા ચાલી હતી પશુ કંઇ ઠરાવ રીવાજે અતિ ઉત્તમ પ્રકારના અને વખાણવા થયો નહોતે છતાં પણ આ વિષ વીસામેવાડા લાયક છે છતાં પણ જાતિ ઉન્નત્તિ ના મૂળને નવયુવક ભાઇઓમાં બહુ ચર્ચા ઉત્પન કરી કઢક રૂપ એ એક બાળ વિવાહ એટઢે છે અને ભવિષ્યમાં એ, બાલ સગાને રિવાજ બાળ સગાઈનો રિવાજ પ્રચલિત છે તથા બંધ થવાની ઉમેદ રાખી શકાય છે. સં. Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "Digamber Jain" Regd. No. B. 744. - ખડકની ચાર પાઠશાળા-ઘોડાદરના સમાજ- સુરતમાં ત્રણ સંસ્થાઓને મેળાવડાસેવક મોડાસીયા ફતેહુચંદભાઈ તારાચંદ જ શાવે સુરતની દિ૦ જૈન પંઢ ગાળા, દિ૦ જૈન શ્રાવિકા છે કે હાલમાં હ’ અમારી ચારે પાઠશાળાની પરીક્ષા પાઠ શલઇ તથા વકાર કન્યાશાળાના બાળક બાળલેવા ગયો હતો તેમાં તા ૦ ૨૧-૨૨ મેએ નવા કીએ તુજા સ્ત્રી એને ઇનામ આપવાનો ભેગા મેળોગામ ગયા ત્યાં ૭૦ વિધાથી" ની હાજરીમાંથી વડે શા. વેરચ'દ સુથા- શા. કસ્તુરચંદ પર પરીક્ષામાં બેઠે! તેમાં ૪૮ પાસ થયા છે જે બેચરદાસ તરફથી નવાપરામાં જાહેર સડક પર, vળ સંતોષજનક છે. સભા ભરી ઉપદેશ આપ્યા જેઠ સુદી ૧૭ ની રાત્રે ૮ થી ૧૧ વાગ્યા સુધી તેથી ૫૦) ઇનામ ફંડમાં આવ્યા ને ૫૦) શેઠ - / ક = ભારે ઠ ઠમાઠથી ૫૦ ઉલક રાયજી દિ૯૩ી નિવ 5 મળી ૧૦ ) થયા તેમાંથી ૭૦) નાં પુસ્તકો ને સીના પ્રમુખપણુ નીચે થયે હતા જે પ્રસંગે ૩૦) રાકડા વહે એ’. મારતરને પગાર ચ ર રૂપી. આ શરે ૩ ૦ ૦ થી ૪૦૦ સ્ત્રી પુરુષે હાજર હતા. વધારવા પડ્યા છે. અત્રેની પાઠશાળા ઉત્તમ રીતે - પ્રથમ ગાયને મંગળાચરણ પછી શ’. ઠાકોરદાસ ચાલે છે પણ પૈસાની તંગી છે માટે તીર્થક્ષેત્ર કમેટીએ વધુ મદદ આપવી જોઈએ. જમનાદા સ ચુડગર તથા શા. છ મનલાલ કસ્તુરચ દે તાહ ૨૩ મીએ નાગજીભાઈ સાથે છાણી ગયા. રિપોર્ટ વાંચતા જણાવ્યુ' હતું કે પાઠશાળામાં પર વિદ્યાર્થીમાંથી ૪૦ પરીક્ષામાં બેઠા જેમાં થી ૪૨ વિધાથ લાભ લે છે, શ્રઃવિકા પાઠ શાળામાં ૩૬ પાસ થયાં. સભા ભરી ઉપદેય પિવાથી ઇનામ ૩૦ સ્ત્રી એ ને ૪૦ છોકરીઓ રોજ બપોરે ત્રણ ૬ ડેમાં ૩૦) ઉ૫યા ને ૨૬) શેઠ લલભાઈ લખ મી. કલાક ભણે છે તથા કુલકાર કન્યાશાળામાં ૮૭ ચદે આપ્યા જેમાં થી પુસ્તકો ને રાક ઇનામ ‘ય’ જન અને બાળકી એ ધાર્મિક ને વેડારિક બંને અન્નેના માસ્તરે વિશેષ ખંતથી કામ કરવું જોઈએ. | શિક્ષશુ લે છે. ૫ર ક્ષાફળ સીતોષજનક છે એ પછી તા.૦ ૨૪ મીએ દેવલ જઈ પરીક્ષા લીધી. પાઠશાળા તથા શ્રાવિકા પાઠ શાળાને ગત વર્ષને કર માંથી ૨૮ પાસ થયા. ગામના ભાઈએ તર- (1ગતવાર હિસાબ વાંચી સંભળાવવામાં આવ્યા થી ૩૦ ૨૮૫ ના પુસ્તકા વેરપા તથા સંધવી હતે. બાદ વિદ્યાર્થી અને બાળાઓએ અનેક સંવાદ, વીરચંદભાઇ તુ થી ૨૪) નું કાપડ વેચાયું ને ગીત, ગરબા, રાસ, લ, ગાયન વગેરે બે કલાક ઘડિયાળ ભેટ આપી તા. ૨૫ મી એ બાવલવાડા ધી કરી બતાવી છેાતાને આનંદિત કયો હતા ગશે. પહ માંથી ૪૦ પરિક્ષા માં બેઠા તેમાંથી ૩૮ જે પછી મૂકચ'દ કેસનદાસ કાપડિયા, શ્રે'મતી પાસ થયા. માસ્તર દુણીજ ખ તથી કામ કરે છે. મગન ડેન (મુંબ૪), શ્રીમતી લલિાતા 3ન (અંકનામ ૬ ૩થી ૨ ૦ ૨૨ ને સભા વખતે ૩૦) લેશ્વ-) તથા છગનલાલ સ૨Jય જી એ આ ત્રણે. ઉપજેલા તે મળી ૨૦ પર:1 નું ઇનામ વહે ચે યું. સંસ્થાઓની સમાલોચના કરી બાળક બાળકી એના નવા ગામમાં વિધાર્થી ઓએ અનેક બાધદાયક કાર્ડથી સતિષ દર્શાવ્યું હતો અને થવસ્થાની સંવાદો ભજવી બત.વ્યા હતા, જેમાં અન્ય મતીએ ખામી ને દુર કરવા ભલામણ કરી હતી જે પછી પણ ભાગ , ધે હતે. ૧૦ જ છે તો ૬ રૂ માં મ ખાદીના લુ મડાં, એટરસીએ, ખાદી, ચેક, પુસ્તકા છે:વ્યા હતા. વળી વીરચંદભાઈ એ નવાગામમાં ભીડાઈ વગેરે બાળક બાળકી ને સ્ત્રી વેચવામાં / વિદ્યાર્થીને મારો ભેટ આપ્યા હતા ને ભારત અ,વવા પછી પ્રમુખનું સમયાનુકુલ વિદ્ધ ના પૂરું રતે ૫] ઇનામ આ યુ’ હતુ. એકંદર ચરે પાઠ ભાપણુ હિંદી ભાષામાં થયું હતું જે સમયે શા છે શાળામાં નવાગામ પ્રથમ, બાવેલવાડા બીજી, છાણી મલુ કચંદ કસ્તુરચંદે જJાવ્યું કે પાહે શાળાને દર ત્ર છે તે દેવલની પાઠશાળા ચાથે નજરે આવી છે. વર્ષ ૫૧) અને શ્ર વિકા પાઠ શાળાને દર વર્ષે ૨પ) વળી આ ખડક દેશમાં ઉપદેશની બહુજ છે ૨૨ છે શા ખચંદ ઝવેરચંદ તરફથી આપવામાં માટે જીબિલીબાં ટ્રસ્ટ ફંડ તરફથી આ વિભા- આવો. એ પછી હારતોરા પાન ગુલાબ લઈ મેળાગમાં એક ઉપદેશક ૭૪ રૂર. મેક ક્ષ વી જોઇએ. વડા જયવાન વચ્ચે વિસર્જન થયા હતા. "जैन विजय " प्रिन्टिग प्रेस खपाटिया चकला-सुरतमें मूलचंद किसनदास कापड़ियाने मदित किया। और "दिगम्बर जैन" आफिस चंदावाड़ी-सुरतसे उन्होंने ही प्रकट किया।