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दिगम्बर जैन
नीतिरत्न - माला-४.
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निर्बलको बल भूप है, रोदन बल तिय जान तस्करबल अमृत बचन, शठवल मौन बखान ७६ यथोक्त वादिनिस्टहि क्षमी, वाक्पटु शौर्यवान बहु श्रुतज्ञ परचित्तगत, दूत श्रेष्ठ पहचान ७७ अलोम प्राज्ञ स्वामी भगत, वाक्पटु लेख प्रवीन सतवादी जो सो करो, भांडा गारि कुलीन ७८ प्रहेलिका- दूरगाम अपद, साक्षर नहीं विद्वान अमुख किंतु वक्ता स्फुट, कहो नाम मतिमान ७९ पर पदन्यास सुवर्णमय, सरमा सालंकार पुन्य हीनंको नहीं मिले, अर्या वा इम नार ८० कविता वनिता सोहिवर, श्रवण दरश जिस होत प्रफुलित चित मन सरलता, तरल शांति उद्योत ८ विनय अहिंसा निष्कपट, तप सुशीलता ज्ञन इन गुण चिन केवल पठित, संज्ञा घर विद्वान ८२ शास्त्र अरथको पठनकर, करहु क्रिया निज योग्य चिंतत औषध रोगिको, करे नहीं आरोग्य ८३ यथा हृदय बाचा तथा बाचा बत कर ते मनसा वाचा कर्मणा, एक रूप सुधि नेम ८४ आन न पद्मदलाकृति, चंद्रन सम हिमवान् हृदय कोष संयुक्त ये, लक्षण धूर्त बखान ८१ • श्लेषम दुर्जन दुहुनकी, कैसी प्रकृति साम्य मधु कोप करें द्विगुण, कटुनें होवें शाम्य ८६ मनोरथ निरधन पुरुषके, उठ २ होय विलीन दुग्ध बाल वैधव कुचा, निम उवि होय मलीन विद्या मित्र प्रवासिको, भार्या मित्र गृहस्थ धर्म मित्र मरणोन्मुख, और मित्र अस्वस्थ ८८ पराश्रित निर्देयि धैर्यगत, चिंतित क्रोधित और सोष रहित ये षष्ठ जन, रहें दुखी सब ठौर ८९
[ वर्ष १७
उन्मत कामी मद्यम, क्षुधित तृषित कोपिष्ट कायर लोभि न जान हैं, निजसर इष्ट निष्ट ९० बहुत लोभ निंद है, बहुत बाद अपमान बहुत दानवें निरधना, बहुत मौन अज्ञान ९१ पितु विधो माता निधन, गानव और अहार बांधव कुल वर इच्छत्रे, कन्या रूप अपार ९२ कुल विद्या वय शील धन, अवस्थारूप रु देश देखि श्रेष्ट दो क यका, चाहो सुख अशेष २३ भक्षत मारग मल चलो, हाम्य युक्त बच मास नष्ट पंद रथ शोक नहिं स्वतः न गुण परकास ९४ श्रृंगी दंती अरु नखी, दुर्जन जान पुमान नारि नदी अरुकूलको, करो विश्वान क दान २५ गाडीसे पन हाथ के घोट कसे दश हाथ दस्तीसे सौ दाथके, दूर चलो नहिं साथ ९१ गुरू बली व्याधित मृतक भूर श्रेष्ठ गुणवान बाहन युत इनके लिये, देहु मार्ग घीमान ९७ शत्रु काम नारि जित, अपनी निवऋगवान पाचक अरिवश पुरुष सो, जीवित मृतक समान २८ आश्रित बन्धु मित्र जन, कवी गुरू हितकार नारी भिक्षुक मूर्ख सों, करो न वाद विचार ९९ हो सहायक निरवली, करै बलीसों रार कामी तस्कर धन क्षमी, नरौ सुनिद्रा च्यार १०० द्रव्य सम्मती बाहुबल, बंधू धी बलजान मानव चल ये पञ्चत्रा, धी वळ सर्व प्रधान १०१ मैत्री | अनैक्यता, पर प्रहार संहार ये गुण तिष्टें जाससो, मंत्री श्रेष्ठ विचार १०२ बालक राजा तिथ पत्रल, कपटी संग प्रसंग जहां तहां सो दुख लड़ें, जेम अपांव विहंग १०३.