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दिगम्बर जैन। अस्तित्वके युद्ध में विन प्राप्त करो। साबित YRICICICITEREDESICHORM पदम खड़े होकर मैदान में काम करो।
श्रतपंचमी पर्व। ६ सार्वजनिक कार्यों में आगे होकर भागलो। जैनपन के गौरवको बढ़ाओ । जैन धर्मके मइ. त्वको सार्वजनिक बनाओ। ७ स्त्री समानके अधिकारों का गला मत बूंटो।
निसके लिये हम वर्षभरसे, लौ लगाये आ रहे ।
सस्कारकी तैयारियांकर, श्रेष्ट भाव उपा रहे ॥ स्त्री समानकी उन्नति पर ही देशकी उन्नति
यह पर्व हमको मिल गया, इससे हमें कहना यही । निर्भर है। ८ बाल विवाह और वृद्ध विव ह आदि
र धन्य है दिन आज का, अरु धन्य यह विरिया सही ॥ सामाजिक कुरीतियों को भान ही अमि भेट कर दो।
श्रुत पञ्चमी है नाम उत्तम, पर्व जैनी मात्रका । ९ वीर शासनकी जय नयकारसे वायुमंडलको सो आगया स्वागत करो, भाषा हुआ सत्पात्रका ॥ गुंजा दो । सारे संसारमें महिंसा धर्मकी पावन मैं प्रथम ही इस बात का, तुमसे निवेदन कर चुकू । पताका फहरादो।
पून लेखनीको साम्हने रख, सन सारा कर मकू ॥ १. अपने अधिकारों की रक्षाके लिये प्राणों की परवाह मत करो । कायरताको छोड़ दो। मैन यह पर्व कवसे है शुरू, इस श्रेष्ठ भारतवर्ष में । धर्म बनियों और कायरों का धर्म बतलाया नाम्हा प्रचलित किया किसने इसे, उसको सुनो तुम हर्ष में। है । इस कलंकको सबके पहले धो कर जैनधर्मको वते वर्ष हजार दो, जसे हुआ निर्वाण है । वर का धर्म होना साबित कर दो। जैनधर्मकी बीना प्रकट मुनि पुष्पदंत, अरु भृतिबलि सज्ञान हैं। विनयका डंका बना दो। मुठभेड़ के लिये। धर्मिक भुनाओं को बलबान बना दो। धवल--आदिक शास्त्रों की, मूल रचना उन करी ।
११ शादी गमी आदि अवसरोंपर लाखों जेष्ट शुक्ला पञ्चमीको, प्रथम स्थापन करी ॥ रुपया ज्योनारों और फिजूल खर्थियों में न उड़ा- स.म्हने सब संघके अति, भावसे पूना करी । कर जिनवाणीके प्रचारमें लगाओं, कौमकी तबसे यहां इस पर्वकी, १२भावना सबने करी ॥ विधवाओं की दशा सुधारो, नातिके गरीब बात.. को ही शिक्षा में अपना द्रव्य लगाओ, देश और किन्तु यह लिखने मुझे, अफसोस होता है बड़ा । धर्षकी सेवा में पैसा रूचं रो।
और सुनते ही कले ना, हिल उठता है कड़ा । मोतीलाल पहाड्या-कुडी। क्या शास्त्रोका भाइ , हमने किया सन्मान है।
TRAKO . या पूर्व ऋषयोके बताये, मार्ग का अनुमान है।