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________________ - ७] दिगम्बर जैन । @900099 सय यज्ञशालामें वध (बलिदान ) की नायगी © अहिंसा धर्म। थोड़े समयके लिये इनपर दया हमने की भी 50000000065 . तो किस उपयोगकी ? इस निर्दयता पूर्ण वाक्य [ लेखक पं०-शंकरलाल व्यास-कसराबद । ] को बुद्ध नीने श्रवणकर उप्त लंगड़ी भेड़को अपने अहिंसा धर्म सब धर्म कर्मों में श्रेष्ठ है। इसकी कंधे पर रखके उन भेड़े के साथ ही साथ चले महिमा सब शास्त्रकारोंने गाई है निधर देखो और जिस रानाके यहां बलिदान होता था उधर अहिंसा देवीकी आरती उतारी जारही है वहां जाकर उस रानाको अहिंसा धर्मपर बहुत और सभी व्रत नियम इसीके आधारपर विश्राम कुछ उपदेश किया। ले रहे हैं। सभी हिन्दु धर्मावलम्बी इस अहिंसा कोटि धन्यवाद उस कुदरतको है जिसने धर्मका प्रतिपादन करते हुए उच्च स्वरसे "अहिंसा ऐसी २ मोक्ष आत्माएं उत्पन्न की नो संसारका परमो धर्मः" श्रुति वाक्य गारहे हैं। जैनधर्मकी यथा समय उकार करती हैं। तो स्वास नीव ही अहिंसा धर्मपर उठी हैं। इस समय देशकी दशा बड़ी शोचनीय हो निसनी ख्याति जन धर्मने अहिंसा धर्मपर रही है लाखों गौवे वध हो रही हैं। देश पाई है उतनी किसी भी धर्मावलम्बीको आज- रसालको चला जा रहा है। तक प्राप्त नहीं हुई । असिव्रत जैसा व्रत नहीं महात्मा । धीनी कहते हैं-भारतको सच्ची परन्तु खेद है कि हम लोग जान बुझकर भी सम्पत्ति अगर है तो एक मात्र गौ है । इम व्रतका पालन नहीं करते। देवी जगदम्बा है पहिले जमाने में र ज ओं तथा ऋषेमुनियों के तो जगत के पशुओं की भी माता है और माता यहां गौरूपी ही धन श्रेष्ट माना जाता था तभीसे सदः पुत्र २ ला होती है। फिर माता के सामने कहावत चली है कि भातध' दुधकी न दयां पशुओंको सुख मरना चाहिये या उनका वध ? ही थी और भारत समृद्धशाली गिना जता भान बेई, कलकत्ता करावी, मद्राप्त आदि था। ग न श्री कृष्ण नी के समय बाचा नंद नीके बड़े २ शहरों में गौवध होरहा है । बिच रे उन यहां नौ ल ख गौवे थ तब ही तो इन देशके छ टे २ पशु मौकी तो बात ही दूर है जिस वा । सुखी थे। समय भगवान बुद्धने यज्ञशालामे वत्र होने वाली वहुत सम की ब त जाने दोनिये। मुसलमान बहुतकी भेड़ें मानी हुई देखी तो उन्हें एक व दशाहोंके वक्त भारत र्षमें चोनों का भाव लंगड़ी भेड़ दिखाई दी उसे देखकर भगवान वितता सता था मिससे आन सुनते ही दांतों । बोन्हने उन भेड़ हांकनेवालेसे पुछा कि अरे भाई ! तले उगली दवाती पड़ी है तथा कई २ महा. इस लंड़ी भेड़को क्यों कष्ट देता है । यदि इसे शय तो .प ही जानेंगे। सुलतान अलाउद्दन • अपने कंधे पर रख ले तो कितना आनंद प्राप्त खिल नीके जाने में घो अधे से एक सेर और हो ? इस पर उत्तर मिला, भजी यह सबकी सुलतान फिर ज तबलखके बक्कमें ढइ पैरोका
SR No.543197
Book TitleDigambar Jain 1924 Varsh 17 Ank 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1924
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Digambar Jain, & India
File Size7 MB
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