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________________ अंक ७] दिगम्बर जैन । - म. गांधीजी-ने 'आर्यप्तमान' के विषयमें श्री सम्मेदशिखरजी पर-सेठ हजाअपना अभिपाय प्रगट किया है कि 'मैंने आर्य रीमलजी, हरखचंदजी और प्रतापमलनीकी समाजकी बाई बिक 'सत्यार्थपकाश'को पढ़ा है। ओरसे तेरापंथी कोठीमें पंचरल्याणक प्रतिष्ठा मित्रों ने मुझे तीन कोपी भेजी थी जब मैं येरोडा करने का निश्चित हुमा है और उसके लिये जेलमें था। इतने बड़े सुधारककी लिखी इतनी २१०००) अलग निकाले गये हैं। बड़ी निराशजनक पुस्तक मैंने दूसरी नहीं पढ़ी जैन बाला विश्राम--भाराका वार्षिकोहै । उन्होंने सत्यपर खड़े रहने का दावा दिया त्सव वैशाख सुदी १५ को श्रीमती जगमगहै परन्तु अज्ञानतासे मैनधर्म, ईसलाम, ईसाई, बीवी (स्व० वा. हरप्रसादनी,के सभापतित्वमें मत तथा स्वयं हिन्दू मतको औरका और बत. हआ था। इसमें रिपोर्ट, व्याख्यानादि होकर लाया है आदि।" सभापतिने १०००) आश्रमको भेंट दिये तथा आलंद-में सेठ माणेकनंद मोतीचंदने पा बा० निर्मलकुमारजीने मिष्टान्न बांटकर प्रीतिभोज ठशाला व औषधालयके लिये ४००००) खर्च किया था। करके मकान बनवाया है उसका उद्घाटन मुहूर्त रतलामकी-मा० पा० दि. जैन बोर्डिता. ७-६-२४ को होगया । पाठशाला २३ गमें ४० छात्र रखने की योजना की गई है। वर्षसे चलती है निप्तके लिये १८६२९) का प्रथम श्रेणीसे दशवी श्रेणी तकके विद्यार्थी स्थायी फंड होगया तथा केशरबाई कन्याशाला लिये जायगे । इसलिये प्रवेश होनेवाले शीघ्र ही खोकने का उत्सव श्रीमती मगनव्हेनके हस्तसे सुपरिन्टेन्डेन्टको अर्जी भेनें । इस बोर्डिगमें हुभा था । इसके लिये भी १०४३६)का चंदा यात्रियोंके ठहरनेके लिये धर्मशालाका भी उत्तम होगया है। रुकड़ी-में पंच कल्याणक प्रतिष्ठा व रत्नत्रय प्रबन्ध है । १०० तक यात्री ठहर सकते हैं। संवर्धिनी सभाका नैमित्तिक अधिवेशन गत बम्बई सरस्वति भवन-बम्बईमें ऐलक मासमें होगया । मुनि शांतिसागरनी भी पधारे पन्नालाल दि. जैन सरस्वति भवनका वार्षिकोथे। सभाके सभापति पं. धन्नालालनी हए थे त्सव श्रुतपंचमीके दिन सुखानंद धर्मशालामें और विधवाविवाह निषेधका प्रस्ताव हआ था। रात्रिको <॥ बजे सेठ हीराचंद नेमचंद दोशी उदैपुर-में संभवनाथ मंदिरकी तरफसे सोलापुरके सभापतित्वमें हुआ था जिसमें रिपोर्ट धानमंडीमें धर्मशाला स्थापित हुई है जहां या- भादि पढ़ा गया व पं० खुबचन्दनी तथा पं० त्रियोंको ठहरनेका सब प्रकारका सुभता है। धन्नालाल नीका जैन साहित्य पर व्याख्यान आवश्यकता-बड़वानीमें मेघराज दि०. हुआ था। अंतमें सभापतिजीने कहा कि आजतक जैन पाठशाला व बोर्डिगके १२से २० छात्रोंके भवनने सामग्री जुटाने का कार्य किया है परन्तु लिये स्थान खाली है। यहां सब प्रकारका अब जैन साहित्य का अच्छी तरहसे पठनपाठन सुभीता है। हो ऐसी कोई व्यवस्था बबईमें होनी चाहिये।
SR No.543197
Book TitleDigambar Jain 1924 Varsh 17 Ank 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1924
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Digambar Jain, & India
File Size7 MB
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