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________________ दिगम्बर जैन [वर्ष १७ दिया है और वे बङ्गाल प्रांतके सभी तीर्थोके RRENandedlekasRER मालिक बनना चाहते हैं इससे रानगिरिका जैन समाचारावलि केस भी हमें बहुत पैरवीके साथ लड़ने का है । इसमें भी निःस्वार्थ भावसे पैरवी RESERESERVERS E करने के लिये बाबू अजितपप्तादजी वकीलने नागौरका शास्त्रभंडार-अभी श्रुतपं. स्वीकारता दी है परन्तु सबसे अच्छी बात तो चमीके दिन पूज्य ब• शीतप्रसादजी सुजान. यह है कि ये तीर्थों के झगड़े कभी मिटनेवाले गढ़से डेप्यूटेशन लेकर नागौर पहुंचे थे और नहीं हैं-एक नहीं तो दूसरा, दूसरा नहीं तो शास्त्रभेडार खुलवानेके लिये बहुत कोशिश की तीसरा नया २ झघड़ा उपस्थित होता ही गई परन्तु भंडार नहीं खुला तब बंद भंडारके रहेगा इससे खास जरूर तो वर्षों से यही सा सामने दूसरा शास्त्र रखकर पूनन की थी। है कि किसी प्रकार भी कोशिश करके सेठ विनोदीराम वालचंदनीके मूनीम जोहरीदिगम्बरी श्वेताम्बरी दोनोंकी एक संयुक्त मलजीने कहा कि भंडारकी ताली हमारी पास कमेटी नियत हो और वह तीर्थोके झगडेका कहीं नहीं है । यह तो भट्टारकके पास है जो निवटेरा करदे वह सबको मंजूर हो और तीर्थो में औरंगाबादकी तरफ है। फिर दूसरी ओरसे आ शांति स्थापन के लिये वही कमेटी कायम रहे। सुन पड़ा कि वीसपंथी सेठ रामदेवजीके पास हर्ष है ऐसा एक प्रस्ताव मुजफ्फरनगरकी भारत० भडारकी चाविये हैं परन्तु उन्होंने भी इन्कार दि. जैन परिषदमें हुआ है और उसकी कमेटी किया इससे कुछ भी सफलता न हो सकी। क्या इस बातकी कोशिश भी कररही है और वे जाने इप्स अपूर्व भंडारका जीर्णोद्धार कब होगा ? किसी बडे भारी नेताको बीच में रखकर तीर्थोके सुजानगढ़ में प्रभावना-सुनानगढ़में झगडेका निवटेरा कराने के प्रयत्नमें जीतोड़ ज्येष्ट सुद १ से वेदी प्रतिष्ठा थी तब ब. परिश्रम कर रही है। यदि ऐसा प्र.ल सफल शीतलप्रप्त दनी खास पधारे थे व जैनयुवक हो जाय तो हमे शहके लिये तीर्थोके झाडे मिट सम्मेलनका वार्षिकोत्सव सेठ रिद्धकरण नीके जाय और जैनोंके लाखो रुपये वकील वेरिष्टरों में .स " सभापतित्वमें तीन दिन तक हुमा था निसमें व सरकारमें जाते बचेंगे और कौममें शांति कई उपयोगी प्रस्ताव पास हुए हैं जिनमें स्थापित हो जायगी और ऐसे बचाव व ऐक्यसे औषधालय खोलना निश्चित होकर उसके भविष्यमें जैन कोम मध्यस्थ जैन बैंक व जैन लिये ८०००) का चंदा उसी समय होगया कालेज स्थापित करने को तैयार हो सकेगी है । हर्ष है कि यहां धर्मप्रेम बहुत है । नित्य जिसकी कि बहुत आवश्यक्ता है । 'त्रिकाल शास्त्रप्सभा होती है व सुबह शाम दो समय पूनन होती है। ब्रह्मचारीजीके दो व्याख्यान बड़े महत्वके हुए थे। --0XCe--
SR No.543197
Book TitleDigambar Jain 1924 Varsh 17 Ank 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1924
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Digambar Jain, & India
File Size7 MB
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